केंद्र ने जानबूझकर वकील की हाईकोर्ट जज के तौर पर नियुक्ति में की देरी : सूत्र

सूत्रों ने बताया कि कॉलेजियम ने नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम की चार बार सिफारिश की जो कि हाईकोर्ट की जज की नियुक्ति के मामले में दुर्लभ बात जैसी ही है.

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प्रतीकात्‍मक फोटो
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  • सियासी पार्टी से "संबद्धता" के कारण सिफारिश की गई अस्‍वीकार
  • कॉलेजियम ने नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम की चार बार सिफारिश की
  • सरकार ने नाइक की फाइल को मंजूरी देने में जानबूझकर देर की
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नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से एक वकील की कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश को सरकार द्वारा तीन बार इसलिए अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि उनकी एक सियासी पार्टी से "गहरी संबद्धता" थी. सूत्रों ने NDTV को यह जानकारी दी. सूत्रों ने यह भी बताया कि इस मामले में कॉलेजियम के संवाद (Communication) पर सरकार ने जानबूझकर यह इंगित करते हुए फाइल आगे बढ़ाने में देरी की कि यह कानून के खिलाफ है.सूत्रों ने बताया कि कॉलेजियम ने नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम की चार बार सिफारिश की जो कि हाईकोर्ट की जज की नियुक्ति के मामले में दुर्लभ घटना जैसी ही है. पहली बार 3 अक्‍टूबर 2013 को सिफारिश की गई, इसी तरह वर्ष 2021 में दो बार और इस वर्ष जनवरी में एक बार ऐसी सिफारिश की गई.   कॉलेजियम ने कहा कि सरकार ने नाइक की फाइल को मंजूरी देने में जानबूझकर देरी की. सूत्रों के अनुसार,  'कम्‍युनिकेशन' में कहा गया है कि इस तरह की देरी " किसी वकील के पेशेवर तौर पर प्रभावित करने के साथ-साथ संस्थान को भी प्रभावित करती है."

दूसरी बार भेजे गए नाम को सरकार को करना होता है स्‍वीकार

सूत्रों के अनुसार, कॉलेजियम ने सरकार को बताया है कि उसकी यह कार्रवाई ऐसे मामले में निर्धारित कानून का उल्लंघन है. उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेजियम ने राजनीतिक संबद्धता और आपराधिक रिकॉर्ड के आरोपों को ध्यान में रखते हुए वकील के नाम की सिफारिश की थी. पत्र में कहा गया है कि परंपरा के तहत सरकार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा दूसरी बार भेजे गए नाम को स्वीकार करना होता है. कॉलेजियम ने कहा कि इस वकील के खिलाफ आपराधिक शिकायतों से संबंधित जानकारी निराधार प्रतीत होती है और इन पर पहले भी विचार किया गया था. सूत्रों ने कहा कि इसलिए कॉलेजियम ने 16 जनवरी, 2023 को तीसरी बार नियुक्ति की अपनी पहले की सिफारिश को दोहराया था. गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने न्यायाधीशों के नामों को लेकर कॉलेजियम की ओर से की गई सिफारिश को बार-बार रोक दिया था क्योंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर शीर्ष अदालत की राय से उसकी असह‍मति थी.

जनवरी माह में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उठाया था ऐतिहासिक कदम

गौरतलब है कि जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में RAW और IB रिपोर्ट को भी सार्वजनिक कर दिया था. इसके साथ ही केंद्र की आपत्तियों का खुलासा करते हुए इसका विस्‍तार से जवाब दिया गया था. CJI डीवाई चंद्रचूड़ के कॉलेजियम ने चार दिनों तक विचारविमर्श के बाद यह फैसला लिया था. जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के टकराव के बीच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने ये कदम उठाया था. केंद्र के रुख का जवाब देने के लिए CJI की अगुवाई में कॉलेजियम ने तय किया था कि इस बार सारे मामले को सार्वजनिक किया जाए. यहां तक कि कॉलेजियम की सिफारिशों में केंद्र की आपत्तियों, RAW व IB की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जाए.  साथ ही ऐसे मामलों में कॉलेजियम की राय को भी सिफारिशों में शामिल किया जाए. 

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