केंद्र ने राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल से ज्यादा कारावास की सजा काट चुके ए जी पेरारिवलन की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने के तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले का बुधवार को उच्चतम न्यायालय में बचाव किया. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्न की पीठ को बताया कि केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा में छूट, माफी और दया याचिका के संबंध में याचिका पर केवल राष्ट्रपति ही फैसला कर सकते हैं.
पीठ ने केंद्र से सवाल किया कि अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया जाता है तो राज्यपालों द्वारा दी गई अब तक की छूट अमान्य हो जाएगी. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यदि राज्यपाल पेरारिवलन के मुद्दे पर राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को मानने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें फाइल को पुनर्विचार के लिए वापस मंत्रिमंडल में भेज देना चाहिए था.
शीर्ष अदालत ने मामले की दो घंटे तक सुनवाई की और पेरारिवलन द्वारा दायर याचिका पर एएसजी, तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. लिखित दलीलें दो दिनों में दाखिल करने को कहा गया.
शीर्ष अदालत ने पूर्व में कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल पेरारिवलन की रिहाई पर राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से बंधे हैं, और राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने की उनकी कार्रवाई को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वह संविधान के खिलाफ किसी चीज से आंखें बंद नहीं कर सकते. शीर्ष अदालत ने नौ मार्च को पेरारिवलन को जमानत दे दी थी.
अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें से एक में पेरारिवलन ने मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी (एमडीएमए) जांच पूरी होने तक मामले में अपनी उम्रकैद की सजा को स्थगित करने का अनुरोध किया था.
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