हरियाणा की अशोक यूनिवर्सिटी में छात्रों द्वारा जातिवाद नारे लगाए जाने से हंगामा हो गया है. इस वजह से सोशल मीडिया पर लोग विश्वविद्यालय के छात्रों पर सवाल उठा रहे हैं और इसकी आलोचना कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी के गलियारों में नारेबाज़ी के कई वीडियो एक्स पर सामने आए तो इस नारेबाजी की व्यापर रूप से निंदा की गई. इनमें से अधिकतम नारे ब्राह्मणों और बनियों पर निर्देशित थे.
विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा, "वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जोरदार बहस को बहुत महत्व देता है, लेकिन यह आपसी सम्मान को भी बहुत महत्व देता है. विश्वविद्यालय, कैंपस में शांति और सद्भावना को बनाए रखने के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है."
2014 में स्थापित हुआ अशोक विश्वविद्यालय पहले अपनी फैकल्टी के राजनीतिक विचारों को लेकर भी सुर्खियां बटोर चुका है. इसमें 2021 में प्रताप भानू मेहता और अरविंद सुब्रहमण्यम का फैकल्टी से बाहर होना भी शामिल है. लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया या दिल्ली विश्वविद्यालय के विपरीत, छात्रों ने लो प्रोफाइल बना रखी थी.
हालांकि, छात्रों द्वारा "ब्राह्मण-बनियावाद मुर्दाबाद" के नारे और "हमें जातीय जनगणना की जरूरत है" के नारे लगाए जाने के बाद पूर्व इंफोसिस सीफ फाइनेंशियल ऑफिसर मोहनदास पई ने एक्स पर एक मैसेज में सवाल उठाते हुए कहा कि अशोक यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच इतनी नफरत क्यों है.
एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किए गए एक बयान में, विश्वविद्यालय ने कहा कि वह "किसी भी व्यक्ति या समूह के खिलाफ नफरत की अभिव्यक्ति की निंदा करता है." बयान में कहा गया है कि, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर अशोक विश्वविद्यालय के दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता असीमित नहीं है और इसमें दूसरों के अधिकारों और संवेदनाओं का सम्मान शामिल है. अशोक विश्वविद्यालय में समुदाय की भावना को संरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है. ऐसे कार्य जो माहौल को डराने वाले बनाते हैं इसलिए, व्यक्तियों या समूहों को धमकी देना या शत्रुता करना गंभीर अपराध माना जाता है और विश्वविद्यालय अनुशासनात्मक प्रक्रिया के अधीन है."