पीएम मोदी के फ़ैसले से अखिलेश के PDA का क्या होगा !

केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बुधवार को जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया गया है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है

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जाति जनगणना पर सभी दलों ने सेंकी रोटियां
नई दिल्ली:

देश में इस साल सबसे बड़ा चुनाव बिहार में है और अगले साल बंगाल में. दो साल बाद यूपी का चुनाव है. मोदी सरकार के जाति जनगणना कराने के फैसले का सबसे बड़ा असर बिहार और यूपी में होने वाला है. जाति जनगणना की मांग सबसे पहले बिहार से ही आई थी. हाल के दिनों में राहुल गांधी के लिए ये सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. यूपी और बिहार में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के भरोसे हैं. दशकों से इन दोनों राज्यों में कमंडल बनाम मंडल का चुनावी संघर्ष चलता रहा है. 

कांग्रेस से लेकर बीजेपी क्यों टालती रही जाति जनगणना

जाति जनगणना कराने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में इसका क्रेडिट लेने की होड़ शुरू हो गई है. ये भी सच है कि इस मामले में कोई भी दूध का धुला नहीं है. कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक सब इसे टालते ही रहे. विपक्ष में रहने पर ये मुद्दा बना, सरकार में आते ही भुला देने की पंरपरा रही. पर शुरूआती टालमटोल के बाद मोदी सरकार ने ये बड़ा फैसला लिया है. जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष को जाति में बांटने का पाप करने का आरोप लगाते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार की तरफ से कहा गया था कि अभी इसकी ज़रूरत नहीं है. 

जाति जनगणना पर विपक्ष क्यों रह गया तांकता

बीते लोकसभा चुनाव के बाद से ही ख़तरे की घंटी बज गई थी. यूपी में विपक्ष का जाति जनगणना से लेकर संविधान बचाने का मुद्दा चल गया. नुक़सान बीजेपी का रहा. यूपी में बीजेपी के सहयोगी दलों के लिए भी नतीजे ख़राब रहे. मोदी सरकार के ताज़ा फ़ैसले से विपक्ष के हाथ से एक बड़ा एजेंडा छिन गया है. वरना ये मुद्दा हर मंच से उठता रहता. इसी बहाने बीजेपी को ओबीसी और दलित विरोधी पार्टी बताने का नैरेटिव चलता रहता. अब इस पर विराम लग सकता है. 

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आखिर क्यों इतनी जरूर हो गई जाति जनगणना

जाति भारतीय समाज का सच है. देर से ही सही, मोदी सरकार के इस फ़ैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.  जाति  जनगणना होनी ही चाहिए. लंबे समय से इसकी मांग रही है.  हिंदू समाज जातियों में बंटा समाज है. कोई भी नीति सही तरीके से तब तक नहीं बनेगी जब तक जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर ठोस अध्ययन नहीं हो. इसके लिए जातीय जनगणना बहुत जरूरी है. जनगणना के वक्त ये भी ध्यान रखना होगा कि गिनती समूह के आधार पर नहीं हो, बल्कि जाति के आधार पर हो. तभी ये भी पता चलेगा कि जातीय आधार पर लागू की गई नीतियों का लाभ किस जाति को अधिक और किसे कम मिला है. इससे भविष्य में सुधार के विकल्प खुले रहेंगे.

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जाति जनगणना के मुद्दे पर हुई जमकर सियासत

जब भी विपक्ष की तरफ से जाति जनगणना का मुद्दा उठा, बीजेपी में OBC समाज के नेता हो जाते थे. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सदन से लेकर सड़क तक इस मांग को उठाते रहे. समाजवादी पार्टी हमेशा उन्हें घेरने की कोशिश में रही. जाति जनगणना की तारीख़ तो बताओ. अपना दल की अनुप्रिया पटेल और सुहेलदेव समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर भी परेशान थे. गठबंधन का धर्म भी निभाना है और जाति जनगणना भी ज़रूरी है. इसी कश्मकश में रहे. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की स्थिति भी यही थी. अब जब मोदी सरकार का फैसला आ गया है तो सबने चैन की सांस ली है. 

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यूपी में पिछले कई दशकों से कमंडल बनाम मंडल की लड़ाई

यूपी में पिछले कई दशकों से कमंडल बनाम मंडल की लड़ाई होती रही है. मोदी और शाह युग में बीजेपी ने हिंदुत्व के साथ सोशल इंजीनियरिंग कर विपक्ष को हाशिए पर रखा. बीएसपी और समाजवादी पार्टी मिल कर भी यूपी में बीजेपी के विजय अभियान को नहीं रोक पाए. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामाजिक समीकरण में दरार आ गईं. समाजवादी पार्टी के PDA वाले फार्मूले ने खेल कर दिया. यादव और दलित साथ नहीं हो सकते वाली धारणा भी बदल गई. अखिलेश यादव तो हाल के दिनों में थानेदारों में जाति का गिनती शुरू कर दी थी. लेकिन मोदी सरकार के जाति जनगणना कराने के फ़ैसले ने विपक्ष से एजेंडा ले लिया है.

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