आरक्षण पर गुरुवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में सब कैटेगरी बनाने के फैसले का विरोध किया है. इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने सवाल पूछा है कि सरकार ने इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला था. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण पर गुरुवार को दिए फैसले में कहा था कि एससी-एसटी की सूची में सब कैटेगरी बनाने को लेकर कोई संवैधानिक रोक नहीं है.
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मायावती ने कहा क्या है
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के एक दिन बाद शुक्रवार को मायावती ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी. उन्होंने एक्स पर लिखा, ''सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीड़न कुछ भी नहीं. क्या देश के खासकर करोड़ों दलितों और आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है. अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?''
उन्होंने लिखा है,''देश के एससी, एसटी और ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों और सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं. वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं वरना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गई होती.''
बीजेपी के राज्य सभा सदस्य ने क्या कहा
वहीं बीजेपी के राज्यसभा सदस्य और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष बृजलाल ने भी इस फैसले पर प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी के इस नेता ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का वो स्वागत करते हैं. इस वर्ग के वे लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर वरिष्ठ अधिकारी बन चुके हैं, कई पीढ़िया लाभ पाकर संपन्न हो चुकी हैं,उनको इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए.उन्होंने कहा है कि इस वर्ग के वंचित लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए.
क्या है आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण पर गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया था. अदालत ने कहा था कि एससी-एसटी की सूची में सब कैटेगरी बनाया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि इसको लेकर कोई संवैधानिक रोक नहीं है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सात जजों के संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया.इस पीठ में शामिल जस्टिस बेला एम चतुर्वेदी ने ही इस फैसले से सहमति नहीं जताई. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति जनजाति की सूची में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. वहीं पीठ में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने तो एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर तक की वकालत की.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राजनीति भी शुरू हो गई है. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी जैसे बड़े राजनीतिक दलों ने इस पर अभी चुप्पी साधी हुई है. वहीं दक्षिण भारत में राजनीति करने वाले अधिकतर दलों ने इस फैसले का समर्थन किया है.वहीं दलितों की राजनीति करने का दावा करने वाले दल इसका विरोध करते हुए नजर आ रहे हैं.
ये भी पढ़ें: बहुत मेहरबानी हुई जो नाले के पानी का चालान नहीं काटा : कोचिंग हादसे पर हाई कोर्ट ने सबको अच्छे से सुना दिया