कथावाचक मामले में अखिलेश के समर्थन में उतरे बीजेपी के बाहुबली नेता, बता दिया 'कृष्ण वंशज'

हाल ही में अखिलेश यादव ने कुछ कथा वाचकों और उनके आयोजनों को लेकर एक बयान दिया था, जिस पर बीजेपी समेत कई दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह ने उस बयान को भी एक अलग नजरिए से देखा और अखिलेश का बचाव करते हुए उसे 'राजनैतिक मजबूरी' करार दिया. 

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  • अखिलेश यादव ने कथावाचकों के खिलाफ बयान दिया, बीजेपी ने उन पर निशाना साधा.
  • बृजभूषण शरण सिंह ने अखिलेश को कृष्ण का वंशज बताया और प्रशंसा की.
  • सवाल उठ रहे हैं कि कहीं ब्रजभूषण अपनी राजनीतिक राह तो नहीं बदलने वाले.
  • यूपी में 2027 में चुनाव होंगे, कहीं उससे पहले बृजभूषण राह तो नहीं बदलने वाले
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कथावाचकों की पिटाई का मुद्दा उठा तो अखिलेश यादव बीजेपी के निशाने पर आ गए. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने बागेश्वर शास्त्री को खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि वे एक कथा के लिए 50 लाख रुपये लेते हैं. बीजेपी अब अखिलेश यादव को सनातन विरोधी बता रही है. बीजेपी के नेता इसी बहाने उन्हें मुस्लिम समर्थक प्रचारित करने में लगे हैं. ऐसे में पार्टी के एक धाकड नेता उनके समर्थन में आ गए हैं. अब सब हैरान हैं. आखिर इसके पीछे क्या राजनीति है. बीजेपी के पूर्व सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह ने तो अखिलेश को सच्चा हिंदू बताया है. बृज भूषण के एक बेटे सांसद और दूसरे बेटे विधायक हैं.

राजनीतिक राह बदलने के लिए तो नहीं चलने वाले बड़ी चाल?

बस्ती में एक स्वागत समारोह के दौरान बृजभूषण सिंह के एक  बयान ने राजनीतिक पंडितों को सकते में डाल दिया है. इस बात को लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया है कि क्या बृजभूषण सिंह अपनी राजनीतिक राह बदलने की कोई बड़ी चाल चलने वाले हैं? बृजभूषण शरण सिंह ने अपने बयान में न केवल अखिलेश यादव को सीधे तौर पर भगवान कृष्ण का वंशज बताया, बल्कि उनके द्वारा बनवाए गए एक मंदिर की भी खुलकर प्रशंसा की.

अखिलेश यादव को बताया- कृष्ण का वंशज

 बृजभूषण ने कहा कि अखिलेश यादव कृष्ण के वंशज हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि अखिलेश यादव ने बहुत बढ़िया मंदिर बनवाया है. बृजभूषण शरण सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में धार्मिक और आध्यात्मिक मुद्दे, विशेष रूप से मंदिर निर्माण और उससे जुड़ी राजनीति, चर्चा का केंद्र बनी हुई है. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुख से सपा के सबसे बड़े चेहरे के लिए ऐसी धार्मिक और सकारात्मक टिप्पणी सुनना, निश्चित तौर पर राजनीतिक गलियारों में बड़े सवाल खड़े कर रहा है. यह दर्शाता है कि बृजभूषण सिंह, जो खुद भी धार्मिक आयोजनों में सक्रिय रहते हैं, अखिलेश के इस पहलू को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर रहे हैं, जो आम तौर पर विरोधी दलों के नेताओं के बीच कम ही देखने को मिलता है. इस बयान के कई गहरे राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, खासकर तब जब अगले लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं.

अखिलेश के बचाव में कही ये बात

हाल ही में अखिलेश यादव ने कुछ कथा वाचकों और उनके आयोजनों को लेकर एक बयान दिया था, जिस पर बीजेपी समेत कई दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह ने उस बयान को भी एक अलग नजरिए से देखा और अखिलेश का बचाव करते हुए उसे 'राजनैतिक मजबूरी' करार दिया. बृजभूषण ने कहा कि अखिलेश की कोई राजनैतिक मजबूरी रही होगी, जो उन्होंने कथा वाचकों पर बयान दे दिया. यह टिप्पणी दर्शाती है कि बृजभूषण शरण सिंह अखिलेश यादव के प्रति किसी भी तरह की व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं रखते, बल्कि उनके बयानों को भी एक व्यापक राजनैतिक संदर्भ में देख रहे हैं. यह सिर्फ एक सामान्य टिप्पणी नहीं थी, बल्कि एक ऐसा स्पष्ट संकेत था जो अखिलेश के प्रति बृजभूषण की सोच में बदलाव को उजागर करता है. उनका यह बयान बीजेपी के उन नेताओं से बिल्कुल अलग था, जो अखिलेश के बयान की कड़ी निंदा कर रहे थे. इस बचाव ने राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया है कि आखिर किस आधार पर बृजभूषण सिंह ने अपने ही दल के रुख से हटकर अखिलेश का पक्ष लिया.

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बृजभूषण के बयान से छिड़ी यूपी की राजनीति में नई बहस

बृजभूषण शरण सिंह के इन बयानों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई और ज्वलंत बहस छेड़ दी है. कैसरगंज लोकसभा सीट से कई बार सांसद रह चुके बृजभूषण शरण सिंह का अपना एक मजबूत जनाधार है, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और आसपास के जिलों में जहां उनकी राजपूत बिरादरी और समर्थक वर्ग का खासा प्रभाव है. उनके इस 'अखिलेश प्रेम' को देखकर हर कोई यह सवाल उठा रहा है कि क्या वह बीजेपी से दूरी बनाकर समाजवादी पार्टी का दामन थामने वाले हैं?

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बृजभूषण शरण सिंह की राजनीतिक यात्रा हमेशा से अप्रत्याशित रही है. वह पहले भी अलग-अलग राजनीतिक दलों में रह चुके हैं – चाहे वह बीजेपी हो या समाजवादी पार्टी – और अपनी स्वतंत्र व बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं. उनका ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि वह सिर्फ एक पार्टी के वफादार सिपाही नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक हितों और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने वाले नेता हैं. ऐसे में उनका यह ताजा बयान सिर्फ एक सामान्य टिप्पणी नहीं मानी जा रही है, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक मायने देखे जा रहे हैं. साल 2027 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हैं. तो क्या उससे पहले ब्रज भूषण पाला बदलने के लिए माहौल बना रहे हैं.

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