गुजरात दंगों से जुड़ा बिलकिस बानो मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जल्द सुनवाई की मांग की गई है. ये याचिका सुभासिनी अली. रेवती लाल और रूप रेखा वर्मा ने दाखिल की है. CJI ने कहा कि वो इस मामले को देखेंगे. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और वकील अपर्णा भट ने जल्द सुनवाई की मांग की गई है. सिब्बल ने कहा कि मामले की बुधवार को ही सुनवाई हो. उन्होंने कहा कि 14 लोगों की हत्या और गर्भवती महिला से गैंगरेप के 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया है.
बिलकिस ने इसे लेकर कहा था कि इस कदम ने न्याय के प्रति उनके विश्वास को हिलाकर रख दिया है.उन्होंने कहा, "दो दिन पहले, 15 अगस्त 2022 को पिछले 20 साल का दर्द फिर से उभर आया. जब मैंने सुना कि जिन 11 दोषियों ने मेरे परिवारा और मेरी जिंदगी को तबाह किया था और मेरी 3 साल की बेटी को मुझसे छीना था, आजाद हो गए हैं."बिलकिस ने कहा, "मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं. मैं स्तब्ध हूं. मैं केवल यही कह सकती हूं-किसी महिला के लिए न्याय आखिर इस तरह कैसे खत्म हो सकता है? मैंने अपने देश के सर्वोच्च कोर्ट पर भरोसा किया, मैंने सिस्टम पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे इस बड़े 'आघात' के साथ जीने की आदत डाल रही थी."
उन्होंने कहा, "इन दोषियों की रिहाई ने मेरे जीवन की शांति छीन ली है और न्याय के प्रति मेरे विश्वास को हिला डाला है. मेरा गम और डगमगाता भरोसा केवल मेरे लिए नहीं है, बल्कि हर उस महिला के लिए है जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है." इस महिला ने कहा, "इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला लेने के पहले किसी ने भी मेरी सुरक्षा और भले के बारे ममें नहीं सोचा. मैं गुजरात सरकार से अपील करती हूं कि फैसले को वापस ले.बिना किसी भय और शांति से मेरे जीने का अधिकार वापस दें "
उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले को सुनकर उन्हें लकवा सा मार गया है. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैं अभी भी होश में नहीं हूं.'' दोषियों की रिहाई से मेरी शांति भंग हो गई है और न्याय पर से मेरा भरोसा उठ गया है. ''
गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत सभी दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी है. मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में 21 जनवरी 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था.