बिहार (Bihar) में नीतीश कुमार सरकार (Nitish kumar Government) ने विधानसभा में बिहार सशस्त्र पुलिस को विशेष अधिकार देने का एक विधेयक पेश किया हैं लेकिन जहां इसके विरोध में सदन के अंदर जमकर हुआ, वहीं अब नीतीश कुमार से राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari)ने वापस लेने की मांग की हैं. एक बयान में शिवानंद तिवारी ने कहा हैं कि बात-बात पर गांधी का नाम लेने वाले और लोहिया तथा जयप्रकाश के स्कूल से राजनीति की शुरुआत करने वाले नीतीशजी की सरकार बिहार को पुलिस राज में तब्दील करने वाला कानून बनाने के विषय में सोच भी कैसे सकती है!
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उन्होंने कहा कि प्रस्तावित ‘बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक' के समर्थन में भी जिन परिस्थितियों का जिक्र किया गया है वे तथ्य से परे हैं. एक समय बिहार में रणवीर सेना और नक्सलवादियों के बीच जनसंहार का दौर चला था. उसके पहले जयप्रकाशजी को उग्रवाद को शांत करने के लिए मुजफ्फरपुर के मुसहरी में डेरा जमाना पड़ा था. वे परिस्थितियां अब इतिहास का विषय बन गई हैं. लेकिन उन दिनों भी किसी भी पक्ष द्वारा पुलिस को इस तरह का निरंकुश अधिकार देने की चर्चा तक नहीं हुई थी. शिवानंद ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में नेपाल की सीमा पर की परिस्थितियों की चर्चा की गई है. एक समय जब नेपाल में माओवादी हिंसा अपने चरम पर थी, तब भी बिहार के सीमावर्ती इलाकों में उसका प्रभाव नगण्य था. अब तो वहां माओवादी लोकतांत्रिक धारा के साथ जुड़ गए हैं और आजकल आपस में ही सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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शिवानंद ने कहा कि हमारा समाज, भारी गैर बराबरी वाला समाज है. सामाजिक और आर्थिक, दोनों तरह की गैर बराबरी हमारे समाज में व्याप्त है. ऐसे समाज में पुलिस को इस प्रकार का अधिकार देने का अर्थ है गरीब और कमजोर लोगों के खिलाफ ताकतवर लोगों के हाथ को और मजबूत करना. प्रस्तावित क़ानून में बग़ैर वारंट संदेह के आधार पर किसी को भी गिरफ़्तार कर लेने का अधिकार होगा. बग़ैर तलाशी के वारंट के किसी के घर में प्रवेश करने और तलाशी लेने का भी अधिकार प्रस्तावित है. अगर गिरफ़्तार व्यक्ति को पुलिस पदाधिकारी प्रताड़ित करते हैं तो न्यायालय को भी उक्त पदाधिकारी के विरुद्ध संज्ञान लेने का अधिकार नहीं होगा. इस क़ानून के अंतर्गत न्यूनतम सज़ा सात वर्ष और अधिकतम उम्रभर की कैद का प्रावधान है. एक पुराने सहयोगी और साथी के नाते नीतीशजी से मैं अनुरोध करता हूं कि इस विधेयक को वे वापस लें.