बिहार में RCP vs ललन सिंह: UP चुनाव के बहाने नीतीश के 2 करीबियों में तेज हुई सियासी जंग 

यूपी चुनाव के बहाने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और केंद्र में मंत्री और नीतीश कुमार के राजनीतिक उतराधिकारी रामचंद्र प्रसाद सिंह के बीच चल रहा शीत युद्ध सार्वजनिक हो गया है. दोनों नेताओं के बीच शीतयुद्ध की शुरुआत पिछले साल केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार के समय ही शुरू हो गई थी.

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यूपी चुनाव के बहाने ललन सिंह और RCP सिंह के बीच चल रहा शीत युद्ध सार्वजनिक हो गया है. (फाइल फोटो))
पटना:

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) में सत्तारूढ़ बीजेपी से गठबंधन नहीं होने पर बिहार एनडीए के घटक दल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड में दो नेता आमने-सामने आ गए हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने इसके लिए केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को जिम्मेदार ठहाराया है. अब जेडीयू ने यूपी में 26 सीटों पर कैंडिडेट उतारने का ऐलान किया है. जल्द ही उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की जाएगी.

यूपी चुनाव के बहाने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और केंद्र में मंत्री और नीतीश कुमार के राजनीतिक उतराधिकारी रामचंद्र प्रसाद सिंह के बीच चल रहा शीत युद्ध सार्वजनिक हो गया है. दोनों नेताओं के बीच शीतयुद्ध की शुरुआत पिछले साल केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार के समय ही शुरू हो गई थी.

केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल ना होने के बाद खार खाए ललन सिंह ने यूपी चुनावों में तालमेल ना होने और इस स्थिति में जेडीयू को पहुंचाने के लिए आरसीपी सिंह को ज़िम्मेवार ठहराया है. ललन सिंह ने तो यहाँ तक कह डाला कि भाजपा से जो ऑफ़र मिला, उस पर कितनी ईमानदारी से वो काम कर रहे थे. उसका बेहतर उत्तर वो खुद दे सकते हैं और अगर विलंब ना होता तो यूपी में पार्टी अधिक तैयारी से मैदान में उतरती."

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ललन सिंह के ऐसे बयानों से साफ़ है कि वो यूपी में तालमेल ना होने से परेशान नहीं हैं बल्कि इस पूरे प्रकरण का इस्तेमाल वो आरसीपी को घेरने में कर रहे हैं. हालाँकि केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने अब तक ललन के इन बयानों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन माना जा रहा है कि वो इससे नाराज़ हैं. इसलिए सोशल मीडिया पर उनके समर्थक ललन सिंह पर जवाबी हमला कर रहे हैं.

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वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि दोनों ललन सिंह और आरसीपी सिंह पार्टी सुप्रीमो नीतीश के सबसे करीबी हैं लेकिन जनाधार की जहां तक बात आती है तो दोनों अपने बलबूते नगरपालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकते.

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ललन सिंह पिछले विधान सभा चुनावों में अपने संसदीय क्षेत्र मुंगेर में एक भी पार्टी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चत नहीं करा पाए थे. वहीं भाजपा उसी मुंगेर संसदीय क्षेत्र के अंदर अपने कोटे की तीनों उम्मीदवारों को जिताने में कामयाब रही थी. उधर, आरसीपी की पसंद के अधिकांश उम्मीदवार 2020 में विधान सभा का मुँह नहीं देख पाए. यहाँ तक कि उन्होंने कई ऐसे प्रत्याशी उतारे जो या तो बीच में बैठ गए या कुछ निजी कारणों से उन्हें घर बैठना पड़ गया. ललन ने तो नीतीश के ख़िलाफ़ बग़ावत भी की थी लेकिन उसमें भी उनको 2010 में औंधे मुँह गिरना पड़ा था.

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नीतीश कुमार ने पार्टी के अंदर ये साफ़ कर दिया है कि उनके बाद आरसीपी सिंह का ही स्थान है. राजनीति में भले ललन सिंह वरिष्ठ हों लेकिन नीतीश ने उन्हें अपना राजनीतिक उतराधिकारी नहीं माना. इन सबके बीच ललन सिंह का बार-बार इंटरव्यू देकर कहना कि आरसीपी सिंह को यूपी चुनाव के लिए सफ़ाई देनी चाहिए, उससे साफ़ होता है कि इन दोनो नेताओं का सम्बंध ना केवल तनाव पूर्ण है बल्कि अब खेल सार्वजनिक रूप से नीचा दिखाने तक पहुंच गया है.
 

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