पिछले कई दशकों से बिहार बाढ़ की तबाही से जूझ रहा है. हर साल की वही कहानी, बाढ़ आती है और लाखों जिंदगियां अचानक से बेसहारा हो जाती है. बिहार में बाढ़ की जो तस्वीरें अभी सामने आ रही हैं वो डराने वाली हैं. गंडक, कोसी और बागमती जैसी नदियां उफान पर हैं. खतरा हर दिन बढ़ रहा है. करीब 16 जिले और 16 लाख से ज्यादा लोग इस समय खतरे में हैं. हालात ऐसे कि कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.
बाढ़ से तबाही रोकने में सरकार क्यों नाकाम?
तंज कहें या सच! कहा जाता है कि बिहार में बाढ़ मनाई जाती है. साल बदलते रहे हैं. तारीख बदलती रही है, लेकिन बिहार में बाढ़ की समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है. कोशिशें तो जारी हैं, लेकिन सभी कोशिशें नाकाफी.
साल 1954 में भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच एक समझौते के तहत कोसी नदी परियोजना की शुरुआत की गई. योजना का मकसद बाढ़ को नियंत्रित करना था. 100 करोड़ की इस योजना के शिलान्यास के समय कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा, लेकिन बिहार के हाल आज भी वैसे ही हैं जैसे 70 साल पहले. ये परियोजना भी सरकार के दावों की तरह खोखली साबित हुई. अपने सबसे बड़े उद्देश्य को साधने में अब तक नाकाम रही है.
अब आपको इस कहानी का दूसरा पहलू भी बताते हैं. कोसी नदी पर बना बांध अब तक सात बार टूट चुका है. योजना के तहत जो पनबिजली घर बनाया गया था, उद्देश्य था 19 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करना, लेकिन इस पनबिजली घर का हाल भी बेहाल है.
योजना से जुड़े विवादों को लेकर स्थानीय लोगों का कहना है कि ये परियोजना बाढ़ नियंत्रण के मुद्दे का ठीक से समाधान नहीं कर सकी. बीते सालों में मरम्मत, नए निर्माण, बाढ़ राहत और बचाव के नाम पर जमकर पैसे का हेर-फेर किया जाता रहा है. लगभग हर साल फंड पास होता है, एस्टिमेट बनता है, लेकिन काम क्या होता है? ये बता पाना मुश्किल है.
बिहार में बाढ़ मानो यहां के लोगों की नियति बन चुकी हो. ताजा हालात की बात करें तो बिहार के 16 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, जिनमें पश्चिमी और पूर्वी चंपारण, सीतामढी, मुजफ्फरपुर, सीवान, पटना, जहानाबाद और मधुबनी शामिल हैं. गांव डूब चुके हैं. रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की 15-15 टीम तैनात की गई हैं. अगले कुछ दिनों तक नदियों के जलस्तर पर प्रशासन लगातार नजर बनाए हुए है.