- बिहार की पहली महिला विधायक और पहली मुस्लिम महिला विधायक को आज भी याद किया जाता है
- वे स्वतंत्रता संग्राम की सक्रिय सदस्य थीं, असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में मुखर भूमिका निभाई थी
- उन्होंने महिलाओं के आत्मनिर्भरता और रोजगार के लिए नारी प्रतिष्ठान संस्थान की स्थापना की थी
Bihar Election 2025: बिहार चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, सीटों के बंटवारे पर समझौते को लेकर कशमकश चल रही है. फिर नामांकन और चुनाव प्रचार भी त्योहारों के बीच रफ्तार पकड़ने लगेगा. ये वक्त उन शख्सियतों को याद करने का भी है, जिन्होंने बिहार के लिए महान योगदान दिया, जिन्हें आज भी याद किया जाता है. इन्हीं में से एक अनीस फातिमा थीं, जो बिहार की पहली महिला विधायक और पहली मुस्लिम महिला विधायक थीं. बिहार की पहली महिला विधायक का नाम अनीस फातिमा था, जिन्हें उनकी प्रगतिशील सोच और मुखर भाषण शैली के कारण लेडी इमाम भी कहा जाता था. वो एक स्वतंत्रता सेना, परोपकारी और टीचर भी थीं, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में पूरे जोशोखरोश से शिरकत की.
नए बिहार की नींव रखी
अनीस फातिमा को आधुनिक बिहार या नया बिहार की नींव रखने वालों में से एक माना जाता है. अनीस फातिमा का निकाह सर सैयद अली इमाम से हुआ था. ब्रिटिश शासन के दौरान जब बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुप्रथा खूब प्रचलन में थीं, अनीस फातिमा ने उस वक्त इसके खिलाफ आवाज उठाई थी.
असहयोग आंदोलन में शामिल, शराब की दुकानों के खिलाफ मोर्चा खोला
1901 में पटना में जन्मीं फातिमा ने बादशाह नवाज रिजवी स्कूल (मदरसा इस्लामिया) से पढ़ाई की.1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान पटना में शराब की दुकानों के खिलाफ मोर्चा खोला. मुखर आवाज और जोरदार भाषण देने में माहिर फातिका को उस वक्त कांग्रेस ने इंग्लैंड जाने वाले उस दल में शामिल किया था, जिसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार का विरोध करना था. उस एक किसी मुस्लिम महिला के लिए एक असाधारण उपलब्धि थी.
महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 15 जुलाई 1930 को अनीस फातिमा और गौरी दास ने करीब 3 हजार महिलाओं के साथ जुलूस निकाला था. अंग्रेजी हुकूमत ने उनके खिलाफ वारंट निकाला और 201 रुपये जुर्माना चुकाने को कहा. लेकिन आजादी के अडिग दीवानों की तरह उन्होंने जुर्माना चुकाने से इनकार कर दिया. उन्होंने अघोर कामिनी (Aghor Kamini) नाम से संगठन बनाया, जो बंगाल और बिहार की महिलाओं की आत्मनिर्भरता से जुड़ा था.
खादी और स्वदेशी को अपनाया
प्रगतिशील सोच वाली लेडी इमाम ने नारी प्रतिष्ठान नामक संस्थान की नींव भी रखी, जिसने उस जमाने में महिलाओं के रोजगार प्रशिक्षण देने का काम किया. महात्मा गांधी के स्वदेशी के आह्वान पर शानोशौकत, विदेशी कपड़े और सुविधाएं त्याग कर अनीस फातिमा के परिवार ने खादी और स्वदेशी को अपनाया.
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निर्दलीय के तौर पर लड़ा पहला चुनाव
लेडी इमाम ने 1937 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वो बिहार से चुनी गईं पहली महिला विधायक बनीं.वो अंजुमन तारीकी ए उर्दू संगठन की सक्रिय सदस्य थीं, जिसने बिहार में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अभियान चलाया. देश की आजादी के बाद बी उन्होंने बिहार में शिक्षा के लिए खूब काम किया और वो खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी से जुड़ी रहीं.
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उनके नाम पर पटना में अनीसाबाद इलाका
अनीस फातिमा की शादी सर सैय्यद अली इमाम से उनकी दूसरी पत्नी मरियम की मृत्यु के बाद हुई थी. सैय्यद अली खुद बड़े बैरिस्टर थे और 1919 के गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था. उन्हें रांची में अनीस कैसल नाम से बड़ा बंगला बनवाया लेकिन 1932 में बंगले का निर्माण पूरा होने के वक्त सैयद अली की मृत्यु हो गई. उन्होंने फिर जीवन राजनीति में लोगों की सेवा में लगा दिया. पटना में आज भी उनके नाम से अनीसाबाद नाम से इलाका है. 1979 में उनका इंतकाल हो गया.