बिहार की 'महाभारत' के दो संजय- एक की हार, दूसरे का जबरदस्त प्रहार

बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद आइए हम बात करते हैं उन दो संजय की जिनका अपनी पार्टी में कद बहुत बड़ा है. आइए देखते हैं कि दोनों के रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन कैसा रहा है.

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  • JDU के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने पार्टी के सीट बंटवारे और चुनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
  • संजय झा 2012 में बीजेपी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए और अब नीतीश कुमार के भरोसेमंद सहयोगी हैं
  • RJD के राज्य सभा सांसद संजय यादव तेजस्वी यादव के प्रमुख सलाहकार हैं और पार्टी की रणनीतियों में सक्रिय रहे हैं
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नई दिल्ली:

भारत में लोगों को महाभारत की कथा मुंह जबानी याद है. लोग मौके-बेमौके पर इस कथा को याद करते रहते है. चुनाव के समय राजनीतिक दलों की लड़ाई को लोग महाभारत का नाम दे देते हैं. इस महाभारत को एक प्रमुख पात्र है- संजय. यह पात्र ही कौरवों के पिता धृतराष्ट्र को युद्ध भूमि की लाइव कमेंट्री सुनाता है. धृतराष्ट्र को संजय पर विश्वास है. आज जब राजे-रजवाड़े खत्म हो गए और राजनीतिक दल सरकार बनाने-बिगाड़ने लगे है. इस समय भी आज हर पार्टी में एक संजय है. वह ही पार्टी के सारे काम करता है. कुछ का नाम ही संजय हो तो कुछ संजय जैसा काम कर रहे हैं. बिहार चुनाव में भी दो संजय थे.इन दोनों की भूमिका भी बहुत बड़ी थी. इनमें से एक संजय हैं- जनता दल यूनाइटेड के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और दूसरे हैं राष्ट्रीय जनता दल के राज्य सभा सांसद संजय यादव.आइए जानते हैं कि इस चुनाव में इन दोनों का प्रदर्शन कैसा रहा है.

जेडीयू के संजय झा, जो बने तारणहार

सबसे पहले बात करते हैं कि बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा का. ये वाले संजय बीजेपी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड में आए हैं. यह उनका राजनीतिक कौशल ही है कि जिस पार्टी में वो 2012 में शामिल हुए, वो 2023 से उस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए हैं.इस समय वो राज्य सभा के सदस्य है.संजय पर नीतीश का भरोसा कितना है, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि वो नीतीश कुमार की सरकार में सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री का ओहदा संभाल चुके हैं. इस विभाग का काम सरकार की छवि को चमकाना होता है. इसमें वो सफल भी रहे. बिहार सरकार के बारे में कोई भी नकारात्मक खबरें में मीडिया में आने से वो बचाते रहे. आज के समय वो नीतीश कुमार के आंख और कान बने हुए हैं. 

संजय झा 2012 में बीजेपी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए थे.

विधानसभा चुनाव के लिए हुए सीट बंटवारा में भी संजय की ही भूमिका रही. इसका परिणाम यह हुआ कि बड़े भाई की भूमिका में रहने वाली जेडीयू इस चुनाव में बीजेपी के बराबर हो गई. दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि ऐसी खबरें आईं कि संजय के इस कदम से नीतीश कुमार नाराज हैं. लेकिन इसका खंडन करते हुए संजय झा ने कहा कि सीट बंटवारे पर सहमति उन्होंने नीतीश कुमार से बात करने के बाद दी थी. इसका असर अब चुनाव परिणाम में दिख रहा है. जेडीयू करीब 85 सीट जीतती हुई नजर आ रही है. यह उसके 2020 के प्रदर्शन का करीब दो गुना है. इस चुनाव में संजय झा जेडीयू के तारणहार की भूमिका में थे. चुनाव प्रबंधन से लेकर राजनीति फैसले लेने तक. और चुनाव परिणाम उनके फैसलों पर मुहर लगा रहे हैं. इस संजय की भूमिका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि शुक्रवार को जब नतीजे आ रहे थे तो नीतीश ने अपने आवास पर जिन दो लोगों के साथ बंद कमरे में बैठक की, उनमें से एक संजय झा थे. 

इस ऐतिहासिक हार के राजद के संजय का क्या होगा

अब बात दूसरे संजय की. इनका पूरा नाम है संजय यादव. ये इस समय राज्य सभा के सदस्य हैं. उन्हें राजद ने राज्य सभा भेजा है. वो तेजस्वी यादव के आंख-कान माने जाते हैं. बिहार के राजनीतिक हल्के में यह कहा जाता है कि तेजस्वी यादव कोई भी बड़ा फैसला संजय यादव से पूछे बिना नहीं लेते हैं. हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले संजय यादव को तेजस्वी का सारथी माना जाता है.कहा जाता है कि दोनों ने दिल्ली में एक साथ क्रिकेट खेली है.वहीं तेजस्वी के बड़े भाई और पार्टी-परिवार से निष्कासित तेज प्रताप यादव उन्हें इशारों-इशारों में जयचंद की उपाधी देते हैं. कई बार वो इशारों में ही बता चुके हैं कि उन्हें निकलवाने में संजय की ही हाथ था. तेजस्वी की बहनें भी संजय पर इशारों में ही कई बार आरोप लगा चुकी हैं. लेकिन संजय इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं. 

हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले संजय यादव को तेजस्वी यादव का सबसे करीबी सलाहकार माना जाता है. 

संजय यादव 2015 के विधानसभा चुनाव से ही राजद के लिए काम कर रहे हैं. उस विधानसभा चुनाव में संजय यादव ने राजद के प्रचार की रणनीति बनाई थी. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की आरक्षण की समीक्षा वाली टिप्पणी को जोर-शोर से उठाने के पीछे संजय यादव का ही हाथ माना जाता है. इसका फायदा राजद को जबरदस्त हुआ था. उस चुनाव के बाद जब राजद प्रमुख लालू यादव चारा घोटाले में जेल गए तो, संजय तेजस्वी के करीब आते गए और पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाते चले गए.  

संजय का राजद में जितना उभार हुआ, उतना ही उनके साथ विवाद भी जुड़े. इस चुनाव में विधानसभा चुनाव में संजय की भूमिका काफी बड़ी थी. इस चुनाव के दौरान वो तेजस्वी के साथ हर जगह नजर आए. इस साल टिकट बंटवारे में राजद के कई नेताओं ने पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया. उन्होंने इसके पीछे संजय यादव का ही हाथ बताया. राजद 2020 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन इस चुनाव में वह तीसरे नंबर पर पहुंच गई है. अब राजनीतिक हल्के में इसके लिए भी संजय यादव को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. कांग्रेस के राज्य सभा सांसद अखिलेश प्रताप सिंह ने तो महागठबंधन के सीट बंटवारे में हुए विवाद का ठीकरा संजय यादव और कृष्णा अल्लावरु पर ही फोड़ा.

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