भोपाल गैस कांड (Bhopal gas Tragedy) ने सैकड़ों लोगों के परिजनों को छीन लिया. लेकिन सालों बाद मध्य प्रदेश सरकार ने गैस त्रासदी में जो महिलाएं विधवा (Bhopal Gas Victim Widow Pension) हुईं, उनसे उनकी पेंशन छीन ली है. भूख मिटाने के लिए कई बूढ़ी विधवाओं को खाना मांगना पड़ रहा है. सरकारें महज आश्वासन दे रही हैं, लेकिन दिसंबर 2019 से पेंशन बंद है. 18 महीने हो गए, इस बीच कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ चले गए और कमल की सरकार के शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए. इन बूढ़ी विधवाओं ने सरकार की हर चौखट पर गुहार लगी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
भोपाल गैस कांड राहत एवं पुनर्वास से जुड़े मामलों के मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि गैस पीड़ित महिलाओं को बीजेपी के वक्त पेंशन मिलती थी. कमलनाथ ने रोक दिया, हम दिखवा रहे हैं और कोशिश करेंगे कि जल्द शुरू हो. कांग्रेस ने सिर्फ अमीरों का साथ दिया और यह असंवेदनशील काम किया. सारंग ने कहा कि बीजेपी सरकार ने बहनों को 1000 रुपये पेंशन शुरू की थी कांग्रेस सरकार ने उस पर रोक लगाई और केंद्र सरकार को बताया भी नहीं. मुख्यमंत्री ने घोषणा की ये और लंबी चली इसलिये मैंने मंत्री जी से निवेदन किया है कि इसे ताउम्र चलते रहने दिया जाए.
पीड़ित विधवाओं ने कहा कि 18 महीने में मंत्री जी ने 3 बार कैमरे पर गैस पीड़ित विधवाओं की पेंशन शुरू करने का वादा किया, कांग्रेस को जमकर कोसा लेकिन पेंशन अब तक शुरू नहीं हुई.साफिया, शकीला बी, सावित्री बाई, मुन्नी, केसरबाई नामों की फेहरिस्त लंबी है, जो खाली वादों के सहारे जी रही हैं. शकीला बी ने कहा कि दो साल हो गए हैं. कोई सहायता नहीं है, जाते हैं तो भगा देते हैं, सरकार झूठ बोल रही है. रोड बना दिया फव्वारे लगा दिये, लेकिन गरीब के लिये कुछ नहीं. नंदाबाई के चार बेटे हैं, सब अलग रहते हैं, बेटी की मौत हो चुकी है आंखों से कम दिखता है.
नंदाबााई का कहना है कि पेंशन मिल जाए तो सहारा हो जाएगा. लड़के का एक्सीडेंट हो गया. उसके दो बच्चे हैं वो अपने परिवार को पाले या हमें. दरअसल,2010 में केंद्र में मंत्रिस्तरीय समिति की सिफारिशों पर भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग ने गैस पीड़ित विधवाओं को पेंशन देने का फैसला किया था. भोपाल गैस त्रासदी में 5000 से अधिक महिलाएं विधवा हुई थीं. अब कई पीड़ित 75-80 साल की हो चुकी हैं. 350 विधवा महिलाओं की मौत हो चुकी है. इन्हें 1000 रुपये हर महीने इन्हें पेंशन मिलती थी. वर्ष 2011 से इन्हें ये पेंशन दी जा रही है.
पहले 750 रुपये पेंशन मिलती थी,केंद्र सरकार ने इसके लिए जिला कलेक्टर को 30 करोड़ रुपये दिये थे. पेंशन की राशि का 75 फीसदी हिस्सा केंद्र देता था और 25 प्रतिशत राज्य सरकार. अप्रैल 2016 से नवंबर 2017 में भी बिना कारण बताये पेंशन रोकी गई थी.