ओडिशा के पुरी समेत देशभर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की धूम, पीएम मोदी ने दी बधाई

पीएम मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि रथ यात्रा की सभी को शुभकामनाएं. हम इस पवित्र अवसर का उत्सव मना रहे हैं, ऐसे में भगवान जगन्नाथ की दिव्य यात्रा हमारे जीवन को स्वास्थ्य, खुशी और आध्यात्मिक समृद्धि से भर दे.'

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की धूम (फाइल फोटो)

ओडिशा के पुरी और भुवनेश्वर समेत आज देशभर के कई शहरों में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है. सुबह से ही रथ यात्रा में शामिल होने लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के अवसर पर देशवासियों को बधाई दी और सभी के अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और आध्यात्मिक समृद्धि की कामना की. 

पीएम मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि रथ यात्रा की सभी को शुभकामनाएं. हम इस पवित्र अवसर का उत्सव मना रहे हैं, ऐसे में भगवान जगन्नाथ की दिव्य यात्रा हमारे जीवन को स्वास्थ्य, खुशी और आध्यात्मिक समृद्धि से भर दे.' प्रधानमंत्री ने ‘आषाढ़ी बीज' के अवसर पर सभी को, खासतौर पर दुनिया भर में रहने वाले कच्छी समुदाय के लोगों को बधाई दी. रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक त्योहार है. यह उसी दिन मनाया जाता है, जिस दिन गुजरात के कच्छी समुदाय के लोग अपना नया साल मनाते हैं.

इससे पहले पुरी श्रीमंदिर में सोमवार को हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के ‘‘नबजौबन दर्शन'' किए. श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के एक अधिकारी ने बताया कि अनुष्ठान निर्धारित समय सुबह 8 बजे से 45 मिनट पहले 7 बजकर 15 मिनट पर शुरू हुआ. एसजेटीए के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास ने पत्रकारों को बताया कि ‘‘नबजौबन दर्शन'' के लिए मंदिर में दाखिल होने का मौका पाने के लिए करीब सात हजार श्रद्धालुओं ने टिकट खरीदे. बाद में आम लोगों को पूर्वाह्न 11 बजे तक दर्शन की अनुमति मिली. इसके बाद प्रसिद्ध रथयात्रा के मद्देनजर अनुष्ठान के लिए मुख्य मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए.

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‘‘नबजौबन दर्शन'' का अर्थ है देवी-देवताओं के युवा रूप का दर्शन. ‘स्नान पूर्णिमा' के बाद देवी-देवताओं को 15 दिन के लिए अलग कर दिया जाता है. इसे ‘अनासारा' कहा जाता है. पौराणिक मान्यता है कि ‘स्नान पूर्णिमा' को अधिक स्नान करने से देवी-देवता बीमार हो जाते हैं और आराम करते हैं. ‘‘नबजौबन दर्शन'' से पहले पुजारी विशेष अनुष्ठान करते हैं जिसे ‘नेत्र उत्सव' कहा जाता है. इस दौरान देव प्रतिमाओं की आंखों को नए सिरे से पेंट किया जाता है.

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दास ने बताया कि विशेष इंतजाम होने की वजह से श्रद्धालुओं को देवताओं के दर्शन में कोई परेशानी नहीं हुई.पूर्वाह्न 11 बजे के बाद किसी श्रद्धालु को मुख्य मंदिर के अंदर आने की इजाजत नहीं दी गई, हालांकि उन्हें मंदिर के अंदरूनी परिसर में जाने और अन्य देवताओं के दर्शन की अनुमति थी.

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इस बीच, तीन रथ मंदिर के मुख्य द्वार ‘‘सिंह द्वार'' के सामने खड़े हैं जो मंगलवार को देवी देवताओं को लेकर गुंडीचा मंदिर जाएंगे जहां देवी-देवता एक सप्ताह रहेंगे. भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष, भगवान बलभद्र का रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा का रथ द्वर्पदलन कहलाता है. तीनों रथों का निर्माण हर साल विशेष वृक्षों की लकड़ी से किया जाता है. परंपरा के अनुसार, इन्हें बढ़इयों का एक दल पूर्ववर्ती राज्य दासपल्ला से लाता है. ये बढ़ई वह होते हैं, जो पीढ़ियों से यह कार्य करते आ रहे हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)