लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी और दलितों को साधने में जुटी बीजेपी

ओमप्रकाश राजभर का एनडीए में शामिल होना यह दर्शाता है कि जातिगत जनगणना की कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की मांग के मद्देनजर बीजेपी ने भी जवाबी कदम उठाना आरंभ कर दिया है.

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उत्तर प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता ओमप्रकाश राजभर एनडीए में शामिल हो गए हैं.
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के नेता ओम प्रकाश राजभर का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खेमे में शामिल होना हिंदीभाषी क्षेत्र में वंचित जातियों के बीच अपनी उपस्थिति बढ़ाने के सत्तारूढ़ दल के प्रयासों को रेखांकित करता है. वह भी ऐसे समय में, जब विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में उसे घेरने के लिए ओबीसी जनगणना सहित कई मुद्दों पर जोर दे रहा है.

राजभर का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होना यह दर्शाता है कि जातिगत जनगणना की कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की मांग के मद्देनजर भाजपा ने भी जवाबी कदम उठाना आरंभ कर दिया है. केंद्र सरकार ने अब तक ओबीसी जनगणना की मांग पर चुप्पी साध रखी है. यह समुदाय मतदाताओं का सबसे बड़ा वर्ग है. 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए यह वर्ग प्राथमिकता में रहा है.

छोटे दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले और एक विशेष पिछड़ी या दलित जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले कई नेताओं ने हाल के महीनों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का रुख किया है. दरअसल, गठबंधन के मामले में भाजपा विपक्षी दलों से पिछड़ रही थी, इसलिए वह एनडीए को मजबूत करने की कोशिशों में जुटी हुई है.

वर्ष 2014 से भाजपा का गढ़ बन चुके उत्तर प्रदेश में राजभर और संजय निषाद जैसे ओबीसी नेताओं के एनडीए में शामिल होने से उसे मजबूती मिली है. इन दोनों नेताओं का नाविकों और मछुआरा समुदायों में खासा प्रभाव है. केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाला अपना दल (सोनेलाल) पहले से ही एनडीए का हिस्सा है. निषाद ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी 'निषाद' पार्टी का भाजपा के साथ गठजोड़ किया था. पटेल 2014 से भाजपा की सहयोगी हैं.

पड़ोसी राज्य बिहार में कुशवाहा समुदाय के नेता उपेंद्र कुशवाहा और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस-वाम गठबंधन छोड़ दिया है. मांझी पहले ही एनडीए में शामिल हो चुके हैं, जबकि कुशवाहा की भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें भी हो चुकी हैं. भाजपा चिराग पासवान को भी अपने खेमे में वापस लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. उनके नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को बिहार के सबसे अधिक आबादी वाले दलित समुदाय, पासवान का समर्थन प्राप्त है.

वर्ष 2014 में मोदी के नेतृत्व में पहली बार लोकसभा चुनाव स्पष्ट बहुमत के साथ जीतने के बाद से भाजपा उत्तर प्रदेश में एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत रही है, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों में राजभर और अपना दल के एक प्रतिद्वंद्वी खेमे के साथ गठबंधन करके समाजवादी पार्टी (सपा) 'पूर्वांचल' क्षेत्र में उसमें (भाजपा के वोट बैंक में) सेंध लगाने में कामयाब रही थी.

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-आरएलडी गठबंधन 2022 में जाट वोट को विभाजित करने में कुछ हद तक सफल रहा था. भाजपा द्वारा राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के नेता चौधरी जयंत सिंह को अपने पाले में लाने की अटकलें राज्य की सभी 80 लोकसभा सीट जीतने के लक्ष्य को हासिल करने में पार्टी की गंभीरता को रेखांकित करती हैं.

भाजपा नेताओं का मानना है कि विभिन्न पिछड़ी और दलित जातियों से जुड़े छोटे दलों के नेताओं को अपने पाले में लाकर वे एनडीए को अपने दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों लालू प्रसाद नीत राष्ट्रीय जनता दल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) की तुलना में सामाजिक रूप से अधिक प्रतिनिधित्व वाले गठबंधन के रूप में पेश कर सकते हैं. इस विपक्षी गठबंधन ने 2015 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को करारी शिकस्त दी थी.

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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कर्नाटक में अपनी जीत से उत्साहित कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जातिगत जनगणना की मांग और कल्याणकारी योजनाएं लाने के वादे के साथ वंचित वर्गों के बीच अपना अभियान तेज करेंगे.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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