अतीत में RSS और माओवादियों पर प्रतिबंध लगाना प्रभावी साबित नहीं हुआ: CPI-M

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) ने बुधवार को कहा कि वह ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (PFI) के अतिवादी विचारों का विरोध करती है, लेकिन सरकार जिस तरह प्रतिबंध लगाकर मामले से निपट रही है उसका वह समर्थन नहीं करती.

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सरकार ने PFI और उससे संबद्ध अन्य संगठनों पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है.
नई दिल्ली:

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) ने बुधवार को कहा कि वह ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' (PFI) के अतिवादी विचारों का विरोध करती है, लेकिन सरकार जिस तरह प्रतिबंध लगाकर मामले से निपट रही है उसका वह समर्थन नहीं करती. वामपंथी दल ने एक बयान में यह आरोप भी लगाया कि केरल और तटीय कर्नाटक क्षेत्र में हत्याओं और बदले लेने के लिए की जाने वाली हत्याओं के मामलों में पीएफआई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संलिप्त हैं तथा ये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए माहौल को खराब कर रहे हैं.

उसने कहा, ‘‘बहरहाल, यूएपीए कानून के तहत पीएफआई को अवैध संगठन करार दिए जाने वाली अधिसूचना जारी करना वो तरीका नहीं है जिससे इस समस्या से निपटा जाए. अतीत के अनुभव बताते हैं कि आरएसएस और माओवादियों को प्रतिबंधित करने का कदम प्रभावी नहीं रहा.'' माकपा का कहना है कि पीएफआई जब कभी किसी गैरकानूनी या हिंसा गतिविधि में शामिल हो तो उसके खिलाफ वर्तमान मानूनों के तहत कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई होनी चाहिए.

सरकार ने आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' (पीएफआई) और उससे संबद्ध अन्य संगठनों पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. आतंकवाद रोधी कानून ‘यूएपीए' के तहत ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन' (आरआईएफ), ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया' (सीएफआई), ‘ऑल इंडिया इमाम काउंसिल' (एआईआईसी), ‘नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन' (एनसीएचआरओ), ‘नेशनल विमेंस फ्रंट', ‘जूनियर फ्रंट', ‘एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन' और ‘रिहैब फाउंडेशन'(केरल) को भी प्रतिबंधित किया गया है.


 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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