देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है. 25 दिसंबर, 1924 को जन्में अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त, 2018 को हुआ था. भारत रत्न अटल जी एक कुशल राजनेता के साथ-साथ एक जानेमाने कवि भी थे. यही वजह थी कि उनके भाषणों में अक्सर एक कवि की झलक दिखती थी. अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जब भी वो सदन को संबोधित करते थे, तो उस दौरान सत्ता पक्ष ही नहीं... विपक्ष के सांसद भी बड़ी गंभीरता से उनकी बातों को सुनते थे. आज हम उनके ऐसे दो भाषणों के अंश का जिक्र करने जा रहे हैं, जो काफी प्रसिद्ध हुए थे.
"सरकारें आएंगी-जाएंगी मगर..."
31 मई, 1996 को संसद में विश्वास मत के दौरान अटल जी ने एक भाषण देते हुए कहा था कि "देश आज संकटों से घिरा हुआ है. ये संकट हमने पैदा नहीं किया है. जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की. सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए."
"ऐसी सत्ता मैं चीमटे से छूना भी पसंद नहीं करुंगा..."
1996 में अटल जी को सिर्फ 13 दिन की सरकार चलाने का मौका मिला था. दरअसल राष्ट्रपति ने बीजेपी को सबसे बड़े दल होने के नाते सरकार बनाने के लिए बुलाया था. उनको 10 दिन में बहुमत साबित करने का मौका मिला था. समर्थन के लिए उन्होंने कई दलों से बात की थी. लेकिन किसी भी तरह की जोड़तोड़ से अलग रहे. इस दौरान कुछ विपक्षी नेता उनके ऊपर आरोप सत्ता का लोभ होने का आरोप लगाया था. इन आरोपों से अटल बिहारी वाजपेयी को काफी दुख पहुंचा था. उन्होंने सदन में भाषण देते हुए कहा था कि मेरे ऊपर लगाया गया है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है. मैंने सदन में 40 साल बिताए हैं. सदस्यों में मेरा व्यवहार देखा है, आचरण देखा है..पार्टी तोड़कर सत्ता मिलती है तो ऐसी सत्ता मैं चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करुंगा.
साल 1998 में अटल जी की सरकार 13 महीने में गिर गई थी. लेकिन साल 1999 में हुए आम चुनाव में देश की जनता ने एक बार फिर से बीजेपी का साथ दिया और अटल जी की सरकार बनीं. इस बार उन्होंने पूरे पांच साल तक सत्ता संभाली और देश की प्रगति के लिए काम किया.