इंदौर में बना ‘एशिया का सबसे बड़ा सीएनजी प्लांट’, PM मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया उद्घाटन

इंदौर के देवगुराड़िया में कभी कचरा डंप होता था, आज यहां 15 एकड़ में 150 करोड़ की लागत से देश का सबसे बड़ा और पूरे एशिया में कई मायनों में अनूठा बायो-सीएनजी संयंत्र तैयार हो चुका है.

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इंदौर में हर रोज औसतन 700 टन गीला कचरा और 400 टन सूखा कचरा निकलता है.
इंदौर:

देश के सबसे साफ शहर इंदौर (Indore) ने कचरे को ऊर्जा में बदल लिया है, शहर में एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट (Asia biggest CNG Plant) बना है जिससे आने वाले कुछ सालों में इंदौर में करीब 400 बसें जल्द ही बायो-सीएनजी से चलेंगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वेस्ट-टू-वेल्थ के इस मूर्त रूप का शनिवार (19 फरवरी) को उद्घाटन किया. पीएम मोदी ने इस दौरान कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर निर्भरता घटाने के लिए जैव ईंधनों को अपनाए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने पिछले 8 सालों के दौरान पेट्रोलियम उत्पादों में इथेनॉल के मिश्रण का स्तर 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत के आसपास पहुंचा दिया है. पीएम मोदी ने इंदौर में 150 करोड़ रुपये की लागत से बने बायो-सीएनजी संयंत्र ‘‘गोबर-धन'' का उद्घाटन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया.

इंदौर के देवगुराड़िया में कभी कचरा डंप होता था, आज यहां 15 एकड़ में 150 करोड़ की लागत से देश का सबसे बड़ा और पूरे एशिया में कई मायनों में अनूठा बायो-सीएनजी संयंत्र तैयार हो चुका है. 35 लाख की आबादी वाले इंदौर में हर रोज औसतन 700 टन गीला कचरा और 400 टन सूखा कचरा निकलता है. '3 आर' यानी - रिड्यूज, रीयूज और रीसाइकिल - के मंत्र पर इंदौर और ये संयंत्र चल रहा है.

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प्रोजेक्ट हेड नीतेश त्रिपाठी कहते हैं, इंदौर शहर में गीले-सूखे कचरे को 100 फीसद अलग किया जाता है इसी वजह से ये स्वच्छता में नंबर वन है. जैविक कूड़े को नगर निगम प्लांट में लाता है, जैविक कूड़े को डीप बंकर में लोड करते हैं फिर वहां से ग्रैब क्रेन से उठाकर प्री-ट्रीटमेंट एरिया में लाते हैं, यहां मिलिंग होती है, स्लरी में कंवर्ट करते हैं, ये तकनीक डेनमार्क से आई है, जो ऑटोमैटिक कंवर्ट हो जाता है, स्लरी को डायजर्स में डाइजेस्ट करते हैं 20-25 दिन तक उससे बायोगैस बनाते हैं, फिर बायोगैस को स्टोरेज एरिया में ले जाते हैं. जिसमें मीथेन 55-60 होता है फिर उसे गैस क्लीनिंग और अपग्रेडेशन में ले जाते हैं.

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बायोगैस से सीएनजी बनाने के लिये मीथेन को अपग्रेड करना पड़ता है यानी 55-60 मीथेन को 90-95 से ऊपर ले जाएंगे तब उसे बायो सीएनजी बोला जाएगा इसलिये इसे अपग्रेड करते हैं कि जो भी अपशिष्ट है सीओ-2, एच-2 या जो और कचरा है उसे हटाते हैं फिर मीथेन रिच बायो सीएनजी बनता है जिसे सिलेंडर्स में भरते हैं.

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हम आपको हर चरण में समझाते हैं ये होता कैसे है-

-सबसे पहले शहर के कचरे को डीप बंकर में डाला जाता है. ग्रैब क्रेन की मदद से इसे प्रसंस्करण उपकरण तक पहुंचाकर अजैविक और फायबरस पदार्थों को अलग किया जाता है.

-फिर सेपरेशन हैमर गीले कचरे को अच्छी गुणवत्ता के फीड यानी स्लरी में बदल देता है.

-पूरी प्रक्रिया कंट्रोल रूम के कंप्यूटर और मशीनों से संचालित होती है.

-तीसरे चरण में स्लरी को आम भाषा में पचने के लिये हैमर मिल से तैयार करके अपघटन टैंकों में भेजा जाता है, महीने भर से कम वक्त तक ये डाइजस्टर टैंक स्लरी को पचाते हैं जिससे इनका बायो मिथेनेशन हो सके और एक रासायनिक प्रक्रिया से यहां बायो गैस तैयार होती है जिसे डायजेस्टर टैंक के ऊपरी हिस्से में इकट्ठा किया जाता है. सीएसटीआर मिजोफिलिक तकनीक से बने ये टैंक डेनमार्क से आए हैं.

-चौथे चरण में बायो गैस में चूंकि मीथेन 55-60 प्रतिशत होता है इसे गैस पाइपलाइन से इन स्टोरेज गुब्बारों में भेजा जाता है, ये खास तरह के गुब्बारे के अंदर भी एक गुब्बारा है जिसके बीच में हवा है... ये सस्ते लेकिन बेहत मजबूत हैं.

-बायोगैस बलून से इन्हें आखिरी चरण में इस प्लांट में भेजा जाता है जहां वैक्यूम प्रेशर स्विंग एडसार्प्शन तकनीक से शुद्धिकरण कर इसमें मीथेन की मात्रा को 95-95 प्रतिशत किया जाता है.

-जिसके बाद इसे सिलेंडर में भरकर बाहर भेजा जाता है, यहां गैस स्टेशन भी तैयार है जिससे 400 बसें और 1000 से ज्यादा गाड़ियां चलाने की, रोज़ाना 17-18000 लीटर डीजल बचाने की योजना है.

इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने कहा जितनी सिटी बसे हैं 100 कंवर्ट हो रही हैं बायो सीएनजी में... यहीं से सीएनजी खरीदेंगी इसमें जो एग्रीमेंट हुआ है तो ये कंपनी अवंतिका गैस जो यहां सीएनजी सप्लाई करती है उससे 5 रु कम में हमें गैस बेचेंगे. तीसरा ये फायदा है कि सभी बसें सीएनजी में कंवर्ट हो रही हैं तो ये डीजल को रीप्लेस करेंगी 1.30 लाख मीट्रिक टन उससे जो कार्बन उत्सर्जन होता वो रूक रहा है जो बसें डीजल से चल रही थीं उनसे भी उत्सर्जन रूकेगा.

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संयंत्र को 18 महीने में बनाया जाना था लेकिन कोरोना की चुनौतियों के बावजूद ये संयंत्र 15 महीने में बनकर तैयार हो गया, अब इंदौर की तैयारी स्वच्छता का छक्का लगाने की है. इंदौर नगर निगम कमिश्नर प्रतिभा पाल कहती हैं,पिछले 5 वर्षों की ये यात्रा है... इंदौर की, इस वर्ष का जो गाइडिंग प्रिंसिपल होता है... मिनिस्ट्री टूल किट लॉन्च करता है जिसे स्वच्छता सर्वेक्षण की टूल किट कहते हैं उसमें इस बार प्रोसेसिंग के नंबर बहुत ज्यादा है ये हमारा लिये माइलस्टोन होगा कि प्रोसेसिंग कि जो फेसेलिटी है उसे वेस्ट टू कंपोस्ट से वेस्ट टू बायोसीएनजी में बदल रहे हैं, इंदौर जैसे हर बार बेहद मजबूती से अपनी दावेदारी रखता है इस बार भी रखेगा.

इंदौर सबसे साफ शहर है तो सबसे बड़ी वजह यहां के लोग हैं, प्रशासन है.

सूखा-गीला कचरा 100 फीसद घर से ही अलग होकर आता है. गीले कचरे का संयंत्र तैयार है, सूखा पहले से ही काम कर रहा है जहां कुछ इस तरह मशीनों और हाथों से प्लास्टिक और पेपर सहित करीब 12 तरह के सूखे कचरे को अलग-अलग किया जाता है और इससे भी शहर के पर्यावरण को फायदा हो रहा है, कचरे से कमाई भी हो रही है.

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