- असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी ने बिहार में 32 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया
- 2020 के चुनाव में AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटें जीतकर सफलता हासिल की थी
- AIMIM के चुनावी प्रभाव का आधार मुस्लिम आबादी की उच्च प्रतिशतता वाली सीटें हैं जहां वह अधिक मजबूत है
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है और पार्टियों ने अपने पासे फेंकने भी शुरू कर दिये हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम ने बिहार की 32 सीटों पर ताल ठोक दी है. एआइएमआइएम पशुपति पारस की लोजपा और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर रही है. AIMIM ने उन 32 सीटों की लिस्ट भी जारी की, जहां पार्टी चुनाव लड़ने वाली है. बीते दिनों ओवैसी सीमांचल की यात्रा पर थे, पुराने चुनाव के प्रदर्शन और अपने बयानों के कारण उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी. AIMIM के 32 सीटों की लिस्ट जारी करने के बाद फिर यह बहस छिड़ गई कि ओवैसी महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं. क्या वाकई ऐसा है? आइए आंकड़ों के समझते हैं.
2020 चुनाव में AIMIM का स्ट्राइक रेट
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ी पार्टी ने 5 सीटें जीती. इन 5 में से 4 सीटों पर एनडीए दूसरे नंबर पर रहा, सिर्फ एक सीट जोकीहाट पर RJD दूसरे नंबर पर था. यहां पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे आपस में लड़ रहे थे. इन 5 में से 4 विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए थे. AIMIM किसी भी सीट पर दूसरे स्थान पर नहीं रही. 3 सीटों पर पार्टी तीसरे नंबर पर थी. इसके अलावा बाकी सीटों पर चौथे से तेरहवें नंबर तक खिसक गई. यहां तक कि 5 सीटों के अलावा वह किसी भी सीट पर राजद या कांग्रेस के हार का कारण भी नहीं बनी. दिलचस्प यह भी है कि ओवैसी के उम्मीदवार उन्हीं सीटों पर चुनाव जीते जहां मुस्लिम आबादी 60 फीसदी से अधिक है. जिन जिन सीटों पर मुस्लिम आबादी कम होती गई, AIMIM का प्रभाव कम होता गया.
ओवैसी की पार्टी से जुड़ा 60% का आंकड़ा!
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने अभी जिन 32 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. उन्हें 60% से अधिक मुस्लिम आबादी वाली 7 सीटें शामिल हैं. बहादुरगंज, कोचाधामन, किशनगंज, अमौर, बायसी, बलरामपुर, जोकीहाट. 40 से 60 फ़ीसदी के बीच पांच सीटें हैं. - ठाकुरगंज, कस्बा, प्राणपुर, कदवा, अररिया. 25 से 40 फ़ीसदी के बीच 12 सीटें हैं. मनिहारी, बरारी, ढाका, नरकटियागंज, भागलपुर, सिवान, जाले, केवटी, दरभंगा ग्रामीण, गौड़ा बौराम, बाजपट्टी, बिस्फी. यानी 32 में से 24 सीटों पर मुस्लिम आबादी एक चौथाई से अधिक है. इन 32 सीटों में 16 सीटें महागठबंधन ने जीती थी. 5 AIMIM ने और 11 एनडीए ने जीती थी. इन 32 सीटों पर महागठबंधन के आधे उम्मीदवार मुस्लिम हैं.
17 सीटों पर पहली बार चुनाव लड़ेगी AIMIM
इन 32 सीटों में से 17 नई सीटें शामिल हैं. इन सीटों पर AIMIM पहली बार चुनाव लड़ेगी. इनमें 8 सीटें महागठबंधन ने तो 9 एनडीए ने जीती थी. इन 17 में से 7 सीटों पर महागठबंधन ने पिछली बार मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया था और सिर्फ नाथनगर की सीट ही महागठबंधन जीत पाया है. महागठबंधन ने ढाका, जाले, केवटी, गौड़ाबौराम, बिस्फी, गोपालगंज में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. ध्यान देने वाली बात यह है कि जहां भी महागठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवारों का भाजपा या एनडीए के उम्मीदवारों से सामना हुआ वहां मुस्लिम उम्मीदवारों की हार हुई. केवटी से राजद के दिग्गज नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी भी भाजपा के मुरारी मोहन झा से चुनाव हार गए थे. ऐसी सिर्फ एक नाथनगर की सीट पर राजद के अली अशरफ सिद्दीकी ने चुनाव जीता, वहां जदयू ने लक्ष्मीकांत मंडल को उम्मीदवार बनाया था. राजद ने यह सीट 7 हजार वोट से जीती थी, यहां लोजपा के अमरनाथ प्रसाद को 14 हजार से अधिक वोट मिले थे. अगर यहां लोजपा का उम्मीदवार नहीं होता तो समीकरण बाकी सीटों जैसे हो सकते थे. इन सीटों पर अगर ओवैसी उम्मीदवार उतारते हैं तो वह परिणाम को प्रभावित कर सकता है.
हालांकि पिछले चुनाव में 12 सीटें ऐसी थी जहां AIMIM का कोई प्रभाव नहीं दिखा था. कटिहार की प्राणपुर सीट पर तो AIMIM का उम्मीदवार तेरहवें स्थान पर रहा था. आंकड़ों के विश्लेषण से यह साफ है कि AIMIM उन्हीं सीटों पर अच्छा कर पाया है जहां मुस्लिम आबादी आधी या इससे अधिक है. जहां आबादी कम है वहां AIMIM उतना असरदार नहीं हो पाता. इसलिए इन सीटों पर AIMIM के लड़ने का क्या असर होगा यह परिणाम से ही तय होगा.
महागठबंधन के लिए क्या चुनौती?
परंपरागत रूप से मुस्लिम महागठबंधन को वोट करते रहे हैं. CSDS के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, 76% मुस्लिम मतदाताओं ने पिछली बार महागठबंधन को वोट किया था. 11% फीसदी ने ओवैसी के गठबंधन को वोट किया था. अगर इस 76 फीसदी में से और अधिक वोट कटे तो यह महागठबंधन के लिए चुनौती बढ़ाएगा.
चुनाव विश्लेषक आशीष रंजन मानते हैं कि AIMIM के लिए पिछले चुनाव का प्रदर्शन दोहरा पाना आसान नहीं होगा. वे कहते हैं, "पिछले बार दो चरणों के चुनाव के बाद यह लग रहा था कि महागठबंधन की सरकार बनने वाली है. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं के एक वर्ग ने सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि असदुद्दीन ओवैसी से प्रभावित होकर वोट किया. क्योंकि वे अल्पसंख्यकों के राजनीतिक हिस्सेदारी की बात करते थे. राजद का टिकट बंटवारा भी वोट छिटकने का एक कारण था. हालांकि लोकसभा चुनाव में भी यह आंकड़ा बदल गया. इसलिए बहुत संभव है कि इस बार महागठबंधन को मिले 76% वोटों का आंकड़ा बढ़ जाए और AIMIM को पिछले बार की तरह सफलता न मिले."
AIMIM ने फिलहाल 32 सीटों का ही ऐलान किया है. हालांकि पार्टी का दावा सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि AIMIM इस बार कितना असर डाल पाती है.
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