' मेरठ अब रावण की ससुराल नहीं, राम का घर बन गया'; चुनाव जीतने के बाद अरुण गोविल

रावण की पत्नी मंदोदरी जिस मंदिर में पूजा करने जाती थीं. वो बिल्लेश्‍वर नाथ महादेव का मंदिर आज भी मेरठ में मौजूद बताया जाता हैं.

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मेरठ में अरुण गोविल ने लहराया जीत का परचम

1857 की क्रांति गुलामी के ख़िलाफ़ भारत की पहली जंग भी मानी जाती है. जिसकी शुरुआत यूपी के मेरठ से हुई. जब-जब भारत की आजादी का जिक्र होता है, तब मेरठ का जिक्र भी जरूर होता है. 1857 की क्रांति के अलावा मेरठ यूं तो देशभर में कैंची बनाने के लिए भी प्रसिद्ध है. लेकिन इस पुराने शहर की एक और पहचान है, जिस वजह से इसे खास शहर माना जाता है. दरअसल मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता है. चुनाव में यहां से जीत दर्ज करने के बाद अरुण गोविल ने कहा कि अब तक मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता था, लेकिन अब यह राम का घर हो गया है. दरअसल चुनाव जीतने के बाद अरुण गोविल के मेरठ स्थित अस्थाई निवास पर बधाई देने वालो का तांता लगा हुआ था. इस दौरान अरुण गोविल ने कहा कि मेरठ भले ही पहले रावण की ससुराल माना जाता रहा, मगर अब मेरठ राम का घर बन गया है. अरुण गोविल ने कहा कि राम जी की कृपा से राजा (वो खुद) अब अपना राजपाट संभालेंगे और नतीजे पहले से बेहतर होंगे.

मेरठ को क्यों कहा जाता है रावण की ससुराल

यूपी के मेरठ शहर को रावण की ससुराल कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी मेरठ की ही रहने वाली थी. मेरठ पहले मय दानव का राज्य था और इसे मयराष्ट्र के नाम से जाना जाता था. अब इस जगह को अब मेरठ के नाम से पहचाना जाने लगा. कहा जाता है कि भैंसाली मैदान के सामने विलेश्वर नाथ मंदिर है जहां पर मंदोदरी पूजा करने जाती थी. यहां पर दशहरा के समय रावण की पूजा भी होती है और पुतला दहन भी. कभी मेरठ का हिस्सा रहे बागपत जिले में एक गांव का नाम ही रावण उर्फ बड़ा गांव है.

ऐसी मान्यता है कि विलेश्वर नाथ मंदिर में पूजा करने जाती थी. यहां पर दशहरा के समय रावण की पूजा भी होती है और पुतला दहन भी. कभी मेरठ का हिस्सा रहे बागपत जिले में एक गांव का नाम ही रावण उर्फ बड़ा गांव है.

रावण की पत्नी मंदोदरी जिस मंदिर में पूजा करने जाती थीं. वो बिल्लेश्‍वर नाथ महादेव का मंदिर आज भी मेरठ में मौजूद बताया जाता हैं. ये भी मान्यता है कि शिव भगावन ने मंदोदरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें इसी मंदिर में दर्शन दिए थे. तब मंदोदरी ने वरदान मांगा था कि उनका पति सबसे बड़ा विद्वान और शक्तिशाली हो. इसी मंदिर के करीब मां काली का भी मंदिर है.

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कौन हैं अरुण गोविल

अरुण गोविल ने रामानंद सागर की रामायण के श्रीराम की भूमिका निभाईं. उनके इस किरदार ने लोगों के दिलों में ऐसी छाप छोड़ी कि उनकी तस्वीर घर-घर में लगने लगी थी. अरुण गोविल मेरठ के ही हैं, साल 1975 में वह व्यवसाय करने मुंबई चले गए. जहां पहुंचकर उन्होंने अभिनय की दुनिया में काम करना शुरू किया. कुछ काम करने के बाद रामानंद सागर के धारावाहिक विक्रम-बेताल में उन्हें विक्रमादित्य की भूमिका मिली. उनके इसी काम से प्रभावित होकर सागर ने उन्हें रामायण में श्रीराम बनाया.

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मेरठ में बीजेपी ने लिया था रिस्क

बीजेपी ने राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर यूपी की मेरठ सीट से अरुण गोविल को उम्मीदवार बनाया था. राजेंद्र अग्रवाल पिछले तीन चुनाव से लगातार जीत हासिल कर रहे थे. ऐसे में माना जा रहा था कि इस बार बीजेपी ने मेरठ सीट पर अरुण गोविल को उम्मीदवार बनाकर रिस्क लिया है. अरुण के सामने सपा ने सुनीता वर्मा को खड़ा किया, जो मेरठ की मेयर रह चुकी हैं,वहीं बसपा ने देवव्रत त्यागी को टिकट दिया. लेकिन फिर भी अरुण गोविल मेरठ सीट से जीतने में कामयाब रहे. मेरठ में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान हुआ था, यहां 58.94 फीसदी वोटिंग हुई थी.

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