राही, जून , सारा... हर्षिल और धराली में रेस्क्यू के 'फरिश्तों' पर टिकी सबकी आस, पढ़ें क्यों है ये इतने खास

सेना की डॉग यूनिट के ये 6 लेब्रा डॉग्स अपना काम बखूबी से कर रहे हैं. ये सभी रेस्क्यू ऑपरेशन में माहिर हैं. इनकी उम्र साढ़े तीन साल से आठ साल के बीच है.

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डॉग गहराई तक इंसानी गंध को सूंघ लेते है जहां तक मशीन पहुंच नहीं पाती हैं.
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  • हर्षिल और धराली में राहत और बचाव अभियान में सेना के डॉग्स अहम भूमिका निभा रहे हैं.
  • ये डॉग्स मेरठ, देहरादून, लखनऊ से लाए गए हैं. इन्हें एडवांस ट्रेनिंग दी गई है. ये गहरी गंध सूंघने में सक्षम हैं
  • हर एक डॉग एक घंटे में पांच एकड़ क्षेत्र की जांच कर सकता है जो 20 जवानों के बराबर काम है
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धराली:

राही (8 साल), जून (7 साल), सारा (4.5  साल), हेजल (4 साल), ओपना (4 साल) और जांसी (3.5 साल)...  साढ़े तीन से आठ साल की उम्र के ये डॉग्स आर्मी यूनिट के लैब्राडोर डॉग्स हैं. ये उत्तराखंड में बादल फटने के बाद आई भयंकर तबाही के बाद राहत और बचाव अभियान में जुटे है. हर्षिल और धराली में सेना की ओर से चलाये जा रहे मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान में ये डॉग्स अहम भूमिका निभा रहे हैं. खासकर ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार , जेवर राडार और टोही रडार डॉग्स के साथ मिलकर इंसानी जिदंगी के खोज में लगे हुए है.

सभी डॉग्स रेस्क्यू ऑपरेशन में माहिर

ऐसे अभियानों में इन डॉग्स की भूमिका इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि ये 15 से 18 फीट तक गहरी गंध को सूंघ सकते हैं. यह पूरी तरह प्रशिक्षित होते है. हर डॉग्स 30 से 35 मिनट तक लगातार काम करता है. 10 मिनट के ब्रेक के बाद ये डॉग्स फिर से अपने मिशन में लग जाते हैं. इसके बाद लगातार 3 घंटे तक खोज का काम जारी रखते हैं. ये 6 लेब्रा डॉग्स सेना की डॉग यूनिट के एक्सपर्ट हैं जो अपना काम बख़ूबी से कर रहे हैं. ये सभी रेस्क्यू ऑपरेशन में माहिर हैं. इस वक्त वहां भारतीय सेना के कुल 6 लैब्राडोर मिशन में लगे हैं. इनकी उम्र साढ़े तीन साल से आठ साल के बीच है. इन्हें मेरठ, देहरादून और लखनऊ से एयरलिफ्ट कर उत्तराखंड लाया गया हैं. इनमें ओपना, सारा और जांसी ने हाल ही में आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज से एडवांस सर्च एंड रेस्क्यू ट्रेनिंग ली थी.

इससे पहले वे केरल के वायनाड और हिमाचल के रामपुर में भी राहत व बचाव का काम में मदद कर चुके हैं. वहीं जून डॉग्स तो पहले से ही हर्षिल में मौजूद था जबकि राही को देहरादून से लाया गया हैं. साथ में 6 अगस्त को ओपना , सारा, जांसी और हेजल को देहरादून पहुंचाया गया. बाद में मौसम साफ होने पर 7 अगस्त को उन्हें हवाई रास्ते से हर्षिल लाया गया. ये डॉग गहराई तक इंसानी गंध को सूंघ लेते है जहां तक मशीन पहुंच नहीं पाती हैं.

ये डॉग करते हैं 20 जवानों के बराबर का काम

हर डॉग एक घंटे में 5 एकड़ तक की जगह को स्कैन कर सकता है. यह काम करीब 20 जवानों के काम के बराबर है. इनकी मदद से कई फंसे लोगों को समय पर सुरक्षित बाहर निकाला गया. कई जगहों पर इनकी मदद से शव भी बरामद किए गए. सेना के मेरठ के रीमाउंट वेटरिनरी सेंटर में अलग-अलग तरह के ऑपरेशन के लिए डॉग्स को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. ध्यान रहे अलग अलग ब्रीड के डॉग की ट्रेनिंग अलग अलग होती है ताकि उन्हें अलग-अलग मिशन के लिए तैयार किया जाता है. फिलहाल सेना के पास 25 से ज्यादा डॉग यूनिट हैं जिसमें 600 से ज्यादा डॉग्स हैं.

इन सबकी ट्रेनिंग मेरठ के रीमाउंट वेटरिनरी कोर में होती है. यहां डॉग्स की ब्रीडिंग से लेकर ट्रेनिंग तक होती है. ये ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 7-8 साल तक सेना का हिस्सा रहते हैं. ये  पेट्रोलिंग , गार्ड ड्यूटी , विस्फोटकों को सूंघने, ड्रग्स सहित दूसरी प्रतिबंधित चीजों का पता लगाने, टारगेट पर हमला करने और हिमस्खलन सहित दूसरे मलबे में से किसी का पता लगाने, आंतकियों का पीछा करने सहित कई तरह के अभियान के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. सेना में लैब्रोडोर,गोल्डन रिट्रीवर,रॉटविलर, जर्मन शेफर्ड, बेलजियन मैलिनोइस जैसी ब्रीड के डॉग को शामिल किया जाता है.

आपको बता दें कि हर्षिल के धराली में आई आपदा में 10 मिनट के भीतर ही भारतीय सेना की टीम यहां राहत और बचाव के लिए पहुंच गई थी. सेना के साथ उनके छह डॉग्स भी राहत और बचाव अभियान में जी जान से जुटे है.

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