1877 से 2024 तक की कहानी : 7 पॉइंट्स में समझें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वाला पूरा केस

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साल 1968 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय माना था...
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल बरकरार करते हुए तीन जजों की एक बेंच को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के पुन: निर्धारण के लिए रेफर किया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों, प्रोफेसरों ने खुशी व्यक्त की है.

  1. सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले को नयी पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया और 1967 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर विचार के लिए मानदंड निर्धारित किए.
  2. सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत में कहा कि मामले के न्यायिक रिकॉर्ड को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए, ताकि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर निर्णय करने के लिए एक नयी पीठ गठित की जा सके. फैसले के पक्ष में सीजेआई, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत रहे। जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा.
  3. जनवरी 2006 में उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था. अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि चार अलग-अलग मत हैं, जिनमें तीन असहमति वाले फैसले भी शामिल हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने अपने और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा है. 
  4. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले लिखे हैं. न्यायमूर्ति सूर्यकांत अपना असहमति वाला फैसला सुना रहे हैं. पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1967 में एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले में फैसला दिया था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता.
  5. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सात जजों की पीठ को सौंप दिया था. सात जजों की संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के संबंध में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई की और बाद में फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने इस मामले की आठ दिनों तक सुनवाई की थी.
  6. साल 1968 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय माना था, लेकिन साल 1981 में एएमयू अधिनियम 1920 में संशोधन लाकर संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया गया था. एएमयू अधिनियम, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है, वहीं 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त करने का प्रावधान करता है.
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  8. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी. वर्षों बाद 1920 में, यह ब्रिटिश राज के तहत एक विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया.

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