देखिए जब वक्फ बिल पास करवाने के बाद सुबह 4 बजे राज्यसभा से निकले अमित शाह 

राज्यसभा में चर्चा के बाद बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े जबकि 95 सदस्यों ने इसके विरोध में वोट किया. राज्यसभा में इस बिल पर बहस होने के बाद अब इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा.

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राज्यसभा में वक्फ संसोधन बिल के पास होने के बाद संसद से निकले अमित शाह
नई दिल्ली:

वक्फ संशोधन बिल 2025 अब राज्यसभा में भी पारित हो गया है. इससे पहले इस बिल को लोकसभा में भी पारित किया जा चुका है. राज्यसभा में बिल के पारित होने से पहले 12 घंटों से ज्यादा की मैराथन चर्चा हुई. इस चर्चा के बाद बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े जबकि 95 सदस्यों ने इसके विरोध में वोट किया. राज्यसभा में इस बिल पर बहस होने के बाद अब इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. वहां से मंजूरी मिलने के बाद ये कानून बन जाएगा. बिल पर चर्चा के दौरान बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता सदन में मौजूद रहे. खुद गृहमंत्री अमित शाह बिल के पास होने के बाद तड़के (सुबह) चार बजे संसद से बाहर निकले.

राज्यसभा में बिल के पास होने के बाद निकले अमित शाह

विधेयक से मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होगा: रिजिजू

राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज कर दिया है. जिसमें कहा गया था कि सरकार अल्पसंख्यकों को डराने के लिए यह विधेयक लाई है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को डराने और गुमराह करने का काम विपक्ष कर रहा है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि विधेयक से मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होगा.

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विपक्षी सांसदों से मुसलमानों को गुमराह न करने की अपील करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो फैसला लिया है,वह बहुत सोच-समझकर किया है. वे (विपक्षी सदस्य) बार-बार कह रहे हैं कि हम मुसलमानों को डरा रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. हम नहीं, बल्कि आप मुसलमानों को डराने का काम कर रहे हैं.जिन लोगों ने कहा था कि सीएए पारित होने के बाद मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.आप इस बिल को लेकर मुसलमानों को गुमराह नहीं कीजिए."

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उन्होंने कहा कि जब यह बिल ड्राफ्ट हुआ तो उसमें सभी के सुझाव को ध्यान में रखा गया. वक्फ बिल के मूल ड्राफ्ट और मौजूदा ड्राफ्ट को देखें तो उसमें हमने कई बदलाव किए हैं. ये बदलाव सबके सुझाव से ही हुए हैं. जेपीसी में ज्यादातर लोगों के सुझाव स्वीकार हुए हैं. सारे सुझाव स्वीकार नहीं हो सकते. जेपीसी में शामिल दलों के सांसदों ने आरोप लगाया कि उनके सुझाव को नहीं सुना गया. लेकिन ऐसी स्थिति में हमने बहुमत से फैसला किया. लोकतंत्र में ऐसा ही होता है.

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