अमेरिका कर रहा है 'बहु-ध्रुवीय विश्व से सामंजस्य' : एस जयशंकर

जयशंकर की यह टिप्पणी अमेरिकी वार्ताकारों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के लिए 27 से 30 सितंबर के बीच होने वाली उनकी वाशिंगटन यात्रा से पहले आई है. विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया अधिक लोकतांत्रिक हुई है और अधिक सार्वभौमिक तरीके से अवसर प्राप्त हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी परिस्थिति में स्वभाविक है कि उत्पादन और उपभोग के अन्य केंद्र उभरेंगे और विश्व में शक्तियों का पुनर्विभाजन होगा, जो हुआ है.’’

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नई दिल्ली: विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा कि अमेरिका ‘बहुध्रुवीय विश्व से सामंजस्य' कर रहा है, भले ही वह इस शब्द का स्वयं इस्तेमाल नहीं करे. ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन' में मंगलवार को बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा कि अमेरिका सक्रिय तरीके से उन शक्तियों को आकार देना चाहता है जो ध्रुव (विश्व शक्ति) हो सकते हैं और यह भी आकलन करने की कोशिश कर रहा है कि उक्त ध्रुव की क्या ताकत होगी और उससे अमेरिका को क्या लाभ हो सकता है.

जयशंकर की यह टिप्पणी अमेरिकी वार्ताकारों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के लिए 27 से 30 सितंबर के बीच होने वाली उनकी वाशिंगटन यात्रा से पहले आई है. विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया अधिक लोकतांत्रिक हुई है और अधिक सार्वभौमिक तरीके से अवसर प्राप्त हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी परिस्थिति में स्वभाविक है कि उत्पादन और उपभोग के अन्य केंद्र उभरेंगे और विश्व में शक्तियों का पुनर्विभाजन होगा, जो हुआ है.''

जयशंकर ने कहा कि यद्यपि अमेरिका इस शब्द का इस्तेमाल न करे लेकिन वह ‘बहु ध्रुवीय विश्व से सामंजस्य कर रहा है.' अपने इस दावे को तार्किक करार देते हुए विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इसके कुछ भाग में इराक और अफगानिस्तान के दीर्घकालिक असर शामिल हैं. यह उसका एक महज एक हिस्सा है. इसमें यह भी (शामिल) है कि यदि आप विश्व में अमेरिका के वर्चस्व तथा अन्य के संदर्भ में उसकी ताकत को देखेंगे तो पिछले एक दशक में उसमें बदलाव हुआ है.''

जयशंकर ने कहा, ‘‘संभवत: हम ऐसी दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं जहां अमेरिका अब नहीं कह सकता कि मैं केवल अपने साझेदारों के साथ ही काम करूंगा.'' उन्होंने कहा कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की सदस्यता वाला ‘क्वॉड' यह प्रतिबिंबित करता है. जयशंकर ने कहा कि क्वॉड में भारत साझेदार देश नहीं है जबकि ऑस्ट्रेलिया और जापान संधि आधारित साझेदार हैं.

विदेश मंत्री ने कहा कि इसकी बहुत अधिक संभावना है कि भारत और अमेरिका एक दूसरे के हितों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ अगर अमेरिका दुनिया को देखे और कहे कि क्या प्रतिस्पर्धा है और कहां पर साझेदार (वास्तविक या संभावित) हैं, हम भी वहीं कर रहे हैं, मेरा मानना है कि मतभिन्नता की तुलना में विचारों का मिलना अधिक प्रभावी है.''

जयशंकर से प्रश्न किया गया भारत-अमेरिका साझेदारी की सीमा कौन सी हैं. इसके उत्तर में उन्होंने कहा, ‘‘भारत और अमेरिका के सरोकारों को देखेंगे तो आप देखेंगे कि आज की हम एक दूसरे के हितों को आगे बढ़ाने में भूमिका निभा सकते हैं. मेरा मनना है कि इसमें असीम संभावनाएं है जिसको लेकर सहमति है.''

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उन्होंने कहा, ‘‘मैं वास्तव में अब यह नहीं देखता कि सीमा कहां हैं. मैं कहूंगा कि वास्तव में अवसर कहां हैं और हम कितनी तेजी से आगे बढ़ सकते हैं? हम कैसे चीजों को आगे ले जा सकते हैं.''

जयशंकर ने कहा कि गत पांच वर्ष में ही भारत और अमेरिका के सुरक्षा और राजनीति संबंध बदल गए हैं. उन्होंने कहा कि आज भारत-अमेरिका साझेदारी‘ बहुत ही मजबूती से' से प्रौद्योगिकी पर केंद्रित है.
 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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