देश में वायु प्रदूषण (Air pollution) के कारण भारत के आठ शहरों मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में एक लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत 2005 से 2018 के बीच हुई. वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने अफ्रीका, एशिया और पश्चिम एशिया के 46 शहरों की वायु गुणवत्ता का अध्ययन कर यह रिपोर्ट दी है. इस अनुसंधान पत्र को पिछले हफ्ते जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित किया गया है जो तेजी से खराब होती वायु गुणवत्ता को दिखाता है और बताया है कि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आना सेहत के लिए घातक है.अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि स्वास्थ्य के लिए सीधे तौर पर हानिकारक नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (No2) के स्तर में 14 प्रतिशत तक और PM-2.5 के स्तर में आठ प्रतिशत तक की सालाना वृद्धि हुई. अमोनिया के स्तर में 12 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है और 11 प्रतिशत पुनप्रतिक्रिया करने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिक बढ़े हैं.
शोधकर्ताओं की टीम में अमेरिका स्थित हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे और उनका कहना है कि वायु गुणवत्ता में तेजी से गिरावट औद्योगिक और घरेलू स्रोतों जैसे सड़क परिवहन, कूड़ा जलाने, बड़े पैमाने पर चारकोल और लकड़ी का इस्तेमाल करने से हो रहा है. शोधपत्र के मुख्य लेखक और ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के कर्ण वोहरा ने कहा, जमीन को साफ करने और कृषि अपशिष्ट को ठिकाने लगाने के लिए जैविक पदार्थो को जलाने का योगदान वायुप्रदूषण में सबसे अधिक है.
बर्मिंघम विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र वोहरा ने कहा, हमारे विश्लेषण से संकेत मिलता है कि हम इन शहरों में वायु प्रदूषण के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं . शोधकर्ताओं ने पाया कि 46 में से 40 शहरों की आबादी ने एनओ2 के प्रदूषण में और 46 में से 33 शहरों ने पीएम2.5 के स्तर में डेढ से चार गुना तक वृद्धि देखी. यह स्थिति बढ़ी हुई आबादी और वायु गुणवत्ता में कमी की वजह से आई. अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण से दक्षिण एशिया के शहरों में असमय मौत का आंकड़ा अधिक है.
शोध के मुताबिक बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 24 हजार अतिरिक्त समय पूर्व मौतें वायु प्रदूषण से हुई जबकि भारत के मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में यह आंकड़ा करीब एक लाख रहा. शोध कर्ताओं ने रेखांकित किया कि भारत के पास गहन निगरानी नेटवर्क है जिसका परिचालन स्थानीय और राष्ट्रीय अधिकारियों के साथ-साथ अनुसंधान संस्थानों द्वारा किया जाता है.