'आर्म्ड फोर्सेज में व्यभिचार को क्राइम ही रहने दें', सुप्रीम कोर्ट से केंद्र की गुहार- 3 जजों ने CJI को भेजा केस

158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द करते हुए तब सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि व्यभिचार अपराध नहीं है.  हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि इसे तलाक का आधार माना जा सकता है लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है.

विज्ञापन
Read Time: 10 mins
केंद्र ने कहा है कि दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार पर दिए गए फैसले को सशस्त्र बलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली:

व्यभिचार (Adultery) को लेकर IPC की धारा 497 को रद्द करने का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सशस्त्र सैन्य बलों (Armed Forces) में व्यभिचार को अपराध ही रहने दिया जाय. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने आज केंद्र सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. साथ ही इसकी सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ में कराने के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस एसए बोबडे के पास भेजा है.

केंद्र ने कहा है कि दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार पर दिए गए फैसले को सशस्त्र बलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए, जहां एक कर्मचारी को सहकर्मी की पत्नी के साथ व्यभिचार करने के लिए असहनीय आचरण के आधार पर सेवा से निकाला जा सकता है. 

कृषि कानूनों के विरोधी हों या समर्थक, सभी किसान समिति के सामने अपना पक्ष रखें: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने केंद्र की याचिका पर ये  नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर 2018 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया था. फैसला सुनाते हुए देश के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा ने कहा था, "यह अपराध नहीं होना चाहिए." 

झारखंड दलबदल केस: विधानसभा स्‍पीकर की याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार, कहा- हाईकोर्ट जाइए

158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द करते हुए तब सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि व्यभिचार अपराध नहीं है.  हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि इसे तलाक का आधार माना जा सकता है लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कोई भी पति महिला का मालिक नहीं है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है.

Advertisement

कोर्ट ने ये भी कहा था कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है. कोर्ट ने कहा था कि यह कानून महिला की चाहत और सेक्सुअल च्वॉयस का असम्मान करता है, इसलिए उसे अपराध नहीं माना जा सकता है.
 

Featured Video Of The Day
Jaipur CNG Tanker Blast: 2 दिन में 3 राज्यों में 3 बड़े हादसे | Bus Fire News