- महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MMC) स्पेशल जोन में अब केवल छह नक्सली बचे हैं, जो कभी सबसे खतरनाक इलाका था.
- दर्रेकसा दलम के ग्यारह नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिसमें उनके नेता विकास नागपुरे भी शामिल थे.
- बालाघाट में 10 हथियारबंद नक्सलियों ने CM के सामने हथियार डालकर कान्हा के जंगलों से नक्सलवाद खत्म किया.
दस दिनों का समय… 33 आत्मसमर्पण और तीन दशकों में पहली बार महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MMC) स्पेशल जोन जिसे कभी मध्य भारत का सबसे खतरनाक नक्सली इलाका माना जाता था. अब सिर्फ छह बचे-खुचे नक्सलियों तक सिमट चुका है. जो इलाका कभी गोंदिया से बालाघाट, खैरागढ़ से कबीरधाम तक फैला “लाल किला” कहलाता था, वह आज अपने आखिरी सांसें गिन रहा है.
पूरा ढांचा आज सिर्फ छह नक्सलियों तक सिमट चुका है
MMC ज़ोन दो हिस्सों में काम करता था उत्तरी MMC ज़ोन, जिसमें कान्हा-भोरमदेव डिवीजन (KB) के तीन दलम चलते थे - खातिया मोचा, भोरमदेव और बोर्ला दलम. ये बालाघाट, मंडला (एमपी) और कबीरधाम (छत्तीसगढ़) के जंगलों पर नियंत्रण रखते थे. वहीं, दक्षिणी MMC ज़ोन, जिसे गोंदिया-रायगढ़-बालाघाट (GRB) डिवीजन कहा जाता था, दो खतरनाक दलम-मालाजखंड और दर्रेकसा दलम के साथ काम करता था. इन्हीं में AK-47, INSAS, UBGL और IED एक्सपर्ट वाले सबसे प्रशिक्षित दस्ते तैनात रहते थे. यही पूरा ढांचा आज सिर्फ छह नक्सलियों तक सिमट चुका है.
इस गिरावट की शुरुआत 28 नवंबर को हुई, जब दर्रेकसा दलम के ग्यारह नक्सलियों ने महाराष्ट्र के गोंदिया में आत्मसमर्पण कर दिया. उनके नेता विकास नागपुरे उर्फ़ अनंत जिसने सिर्फ नौ दिन पहले एमपी पुलिस के हॉक फोर्स पर हमले का नेतृत्व किया था जिसमें इंस्पेक्टर आशीष शर्मा शहीद हो गये थे, यह संकेत था कि ज़ोन भीतर से बिखर चुका है.
10 हथियारबंद नक्सलियों ने हथियार रख दिए
इस आत्मसमर्पण ने पूरे उत्तरी MMC ज़ोन को गिरा दिया. ठीक एक हफ्ते बाद, बालाघाट में एमपी के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने KB डिवीजन के 10 हथियारबंद नक्सलियों ने हथियार रख दिए. इनमें दो स्पेशल जोनल कमेटी मेंबर - कुख्यात सुरेंद्र उर्फ़ कबीर सोड़ी और राकेश उर्फ़ मनीष भी शामिल थे. एक ही कार्यक्रम में INSAS, AK-47 और देशी हथियारों के साथ नक्सलियों ने सरेंडर किया और इसके साथ ही कान्हा के जंगलों से नक्सलवाद का अंत हो गया.
लेकिन सबसे बड़ा झटका अगली सुबह लगा जब MMC ज़ोन की अंतिम रीढ़ कहे जाने वाले रामधेर मज्जी ने भी 11 साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. वह CPI (Maoist) की केंद्रीय समिति का सदस्य, दक्षिणी MMC के 14-सदस्यीय “एलीट असॉल्ट स्क्वॉड” का प्रमुख, राजनांदगांव-खैरागढ़-बालाघाट कॉरिडोर का नियंत्रक और कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था. उसके हथियार डालते ही माना गया कि MMC का पूरा ढांचा ढह चुका है.
इंटेलिजेंस रेकॉर्ड बताते हैं कि सितंबर से अक्टूबर 2025 के बीच वह लगातार नारायणपुर (छत्तीसगढ़) और बालाघाट (मध्यप्रदेश) के बीच अपना ठिकाना बदलता रहा. रवली, जटलूर, कोंगे-वाटा-बेरिलटोला और रवंडिगु उसके मुख्य छिपने के इलाके थे, जहाँ पुलिस महीनों जंगल खंगालती रही लेकिन उसे पकड़ नहीं सकी.
“सरेंडर करो या मारे जाओ...”
उसके खिलाफ़ कांकेर के कई थानों में हत्या, हत्या के प्रयास, IED धमाकों, पुलिस पार्टी पर फायरिंग और ग्रामीणों की हत्या जैसे गंभीर मामले दर्ज थे. लेकिन अंदर से उसके गुरिल्ला टूट रहे थे. कई कैडर संगठन छोड़ना चाहते थे. बस्तर से आए लड़ाकों पर लगातार थकान हावी थी. केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क टूट चुका था. रसद, दवाइयाँ और संदेश सब रुक चुका था. दस दिनों में 33 आत्मसमर्पणों के बाद MMC में अब सिर्फ छह नक्सली बचे हैं दो रामधेर के बिखरे मालाजखंड दलेम से और चार अनंत के दर्रेकसा दलेम से. तीन राज्यों की पुलिस का मानना है कि ये छह भी ज़्यादा दिन नहीं टिकेंगे. इन पर तीनों राज्यों के फोर्स की संयुक्त रणनीति लागू है “सरेंडर करो या मारे जाओ.”
1990 के दशक से 2020 के दशक तक MMC ज़ोन दंडकारण्य के बाहर सबसे खतरनाक नक्सली ज़ोन माना जाता था. घात लगाकर हमले, IED ब्लास्ट, पुलिस पर फायरिंग, जंगलों में घूमते हथियारबंद दस्तों की आवाज़ यह सब अब इतिहास बनने की कगार पर है.
हालांकि, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि हथियारबंद ढांचा टूट गया है, लेकिन विचारधारा पूरी तरह खत्म नहीं हुई. कुछ सरेंडर नक्सली लोकतांत्रिक तरीके से अपनी विचारधारा फैलाने की कोशिश कर सकते हैं. इसलिए सुरक्षा बलों को अब इस इलाके में स्थायी उपस्थिति बनाए रखनी होगी गाँवों का विश्वास जीतना होगा, विकास कार्य तेज़ करने होंगे और यह सुनिश्चित करना होगा कि जंगल फिर कभी नक्सलियों के ठिकाने न बनें.
MMC का पूरा ताना-बाना जो कभी लोहे की तरह मजबूत था अब सिर्फ छह भागते हुए नक्सलियों में बदल चुका है. इतिहास इस क्षण को उसी तरह याद रखेगा जैसे एक लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय को जब एक पूरा आंदोलन ढह गया और जंगलों ने पहली बार शांति की साँस ली.












