2002 गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित SIT ने जाकिया जाफरी के बड़ी साजिश के आरोपों को नकारा

कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के लिए मिलीभगत एक कठोर शब्द है. ये वही एसआईटी है, जिसने अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी और आरोपियों को दोषी ठहराया था.

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2002 गुजरात दंगों में तत्कालीन सीएम मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ याचिका
नई दिल्ली:

2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका दायर की गई है. दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने जाकिया जाफरी के बड़ी साजिश के आरोपों को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले में एफआईआर या चार्जशीट दर्ज करने के लिए कोई आधार नहीं मिला. जाकिया की शिकायत पर गहन जांच की गई लेकिन कोई सामग्री नहीं मिली. यहां तक कि स्टिंग की सामग्री को भी अदालत ने ठुकरा दिया. एसआईटी की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच को बताया कि यह स्क्रिप्ट का एक हिस्सा था. एसआईटी को एफआईआर  या चार्जशीट दर्ज करने में कोई सार नहीं मिला. एसआईटी ने उन 9 में से तीन अलग-अलग अदालतों में स्टिंग सामग्री अदालत को दी थी. एक विशेष अदालत ने स्टिंग की सामग्री को भी खारिज कर दिया था. 

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2002 के गुजरात दंगों में एक बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहन जांच की गई. जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी. शिकायत की गहन जांच की गई और बयान दर्ज किए गए. एसआईटी इस नतीजे पर पहुंची कि पहले से दायर चार्जशीट के अलावा, 2006 की उसकी शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी. राज्य पुलिस आदि पर आरोप तेज़ी से लग रहे थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी नियुक्त की. 

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2009 में  गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका में चूंकि एसआईटी पहले से ही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया के मामले की जांच के लिए भी कहा था. जब एसआईटी ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने कई चार्जशीट और कई आरोपी जोड़े. फिर तहलका टेप सामने आया. टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन एसआईटी ने पाया कि टेप की सामग्री में स्टिंग ऑपरेशन आदि से लेकर खेतान के सामने दिए गए बयानों से अविश्वास पैदा हुआ है. दरअसल जाकिया जाफरी ने एसआईटी पर आरोपियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है. पिछली सुनवाई में  सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई थी. 

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कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के लिए मिलीभगत एक कठोर शब्द है. ये वही एसआईटी है, जिसने अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी और आरोपियों को दोषी ठहराया था. उन कार्यवाही में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली. जाकिया जाफरी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जब एसआईटी की बात आती है, तो आरोपी के साथ मिलीभगत के स्पष्ट सबूत मिलते हैं. एसआईटी ने मुख्य दस्तावेजों की जांच नहीं की और स्टिंग ऑपरेशन टेप, मोबाइल फोन जब्त नहीं किया. क्या एसआईटी कुछ लोगों को बचा रही थी? शिकायत के बावजूद अपराधियों के नाम नोट नहीं किए गए. यह राज्य की मशीनरी के सहयोग को दर्शाता है. लगभग सभी मामलों में एफआईआर की कॉपी नहीं दी  गई.

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बता दें कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. रिपोर्ट में राज्य के उच्च पदाधिकारियों द्वारा गोधरा हत्याकांड के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़काने में किसी भी "बड़ी साजिश" से इनकार किया गया है. 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया की विरोध शिकायत को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज करने के खिलाफ उसकी चुनौती को खारिज कर दिया था.

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