चीन की आक्रामकता को लेकर भारत और अमेरिका की चिंताएं समान : ध्रुव जयशंकर

ORF के कार्यकारी निदेशक ध्रुव जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा को बेहद महत्‍वपूर्ण बताया.

विज्ञापन
Read Time: 24 mins

हमें उम्मीद है कि हम कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गति देखेंगे- ध्रुव जयशंकर

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के कार्यकारी निदेशक ध्रुव जयशंकर का कहना है कि चीन के उदय और उसकी आक्रामकता को लेकर भारत और अमेरिका की समान चिंताएं हैं. उन्‍होंने कहा कि चीन की परवाह किए बिना भारत-अमेरिका के बीच काफी सहयोग हो रहा है. 

ध्रुव जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा को बेहद महत्‍वपूर्ण बताया. उन्‍होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा है. इस यात्रा का महत्व यह प्रदर्शित करना होगा कि संबंध कितने व्यापक हैं और भारत एवं अमेरिका किस प्रकार आज लगभग हर बड़े मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि हम कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रक्षा सह-उत्पादन और रक्षा व्यापार में कुछ आगे की गति देखेंगे जो भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा कि तकनीकी सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा के कई क्षेत्रों में रक्षा एक बड़े मुद्दे का हिस्सा है और अमेरिका-भारत बहुत निकटता से जुड़ रहे हैं और बहुत निकटता से सहयोग कर रहे हैं. 

Advertisement

रूस पर बोलते हुए, ध्रुव ने कहा कि यह "ये बड़ी चिंता" है. उन्‍होंने कहा, "भारत अपनी रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए, अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए, अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए, बल्कि होने वाले बड़े भू-राजनीतिक बदलावों के प्रभावों को महसूस कर रहा है. कुछ क्षेत्रों में, मुझे लगता है कि गहनता से विचार किया जा रहा है. लेकिन अन्य क्षेत्रों में जहां मतभेद हैं, मुझे लगता है कि पीएम मोदी ने अतीत में जिन मुद्दों पर काम किया है, और यहां इसकी सराहना की गई है, उन मतभेदों पर भी खुलकर चर्चा की गई है. 

Advertisement

विशेष रूप से भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार अब 191 बिलियन अमरीकी डालर के करीब है. इसके अलावा, भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. 

Advertisement

अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के बारे में बात करते हुए ध्रुव ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि हमारे पास जल्द ही कोई एफटीए होगा, क्‍योंकि इसके कई कारण हैं. दरअसल, अमेरिका किसी भी देश के साथ एफटीए के लिए बहुत उत्सुक नहीं है. न सिर्फ भारत, बल्कि विशेष रूप से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ. मुझे लगता है कि भारत के पास अन्य एफटीए का एक क्रम है, जो बातचीत कर रहे हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह इतना महत्वपूर्ण है. मेरा मतलब है, अमेरिका और यूरोप में कोई एफटीए नहीं है, यूएस और ईयू, और यूएस और जापान के पास कोई एफटीए नहीं है, और ये कुछ करीबी रिश्ते हैं जो यूएस के हैं."

Advertisement

ये भी पढ़ें :-