World Zoonoses Day 2025: जानवरों से इंसानों में फैलने वाले जूनोटिक रोग क्या हैं? कैसे करें इनसे बचाव, जानिए

World Zoonoses Day: हर साल भारत में विश्व जूनोसिस दिवस के दिन (6 जूनोटिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के लिए कई एक्टिविटीज आयोजित की जाती हैं. खासतौर पर देशभर में चिड़ियाघर में पर्यटकों और छोटे बच्चों के बीच इसकी जागरूकता फैलाई जाती है.

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World Zoonoses Day 2025: हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है.

World Zoonoses Day 2025: जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है. इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है. इसमें रेबीज, टीबी, स्वाइन फ्लू और डेंगू जैसे रोग शामिल हैं. विश्व जूनोसिस दिवस हमें यह समझने में मदद करता है कि मानव और पशु स्वास्थ्य आपस में जुड़े हैं और इन रोगों से बचाव के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं.

क्यों और कैसे मनाया जाता है विश्व जूनोसिस दिवस?

हर साल भारत में विश्व जूनोसिस दिवस के दिन (6 जूनोटिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के लिए कई एक्टिविटीज आयोजित की जाती हैं. खासतौर पर देशभर में चिड़ियाघर में पर्यटकों और छोटे बच्चों के बीच इसकी जागरूकता फैलाई जाती है, ताकि वे दूसरे लोगों में जूनोटिक बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाएं.

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इसके अलावा सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, जैसे पशु चिकित्सा विभाग, स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से जूनोटिक रोगों जैसे रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस और स्वाइन फ्लू के खतरों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं.

 विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास

शहरी और ग्रामीण इलाकों में सेमिनार, कार्यशालाएं और रैलियां आयोजित की जाती हैं ताकि लोग स्वच्छता, पशु संपर्क से बचाव और टीकाकरण के महत्व को समझें. विश्व जूनोसिस दिवस मनाने के पीछे एक लंबा इतिहास है. इसकी शुरुआत 6 जुलाई 1885 को फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुई पाश्चर की उपलब्धि के सम्मान में हुई थी जिन्होंने रेबीज का पहला टीका विकसित किया था. यह टीका एक जूनोटिक रोग के खिलाफ महत्वपूर्ण कदम था.

रेबीज भी एक जूनोटिक रोग

जूनोटिक रोग में रेबीज भी शामिल है. भारत में रेबीज पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि यहां दुनिया के रेबीज मामलों का एक बड़ा हिस्सा दर्ज होता है. इस दिन मुफ्त टीकाकरण और जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं. शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पशु स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित किए जाते हैं, जहां पशुओं को जूनोटिक रोगों से बचाने के लिए टीके और दवाएं दी जाती हैं.

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इन कार्यक्रमों के पीछे एकमात्र मकसद यह है कि इन एक्टिविटीज के माध्यम से जूनोटिक रोगों के जोखिम को कम किया जाए, सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिले और मानव-पशु-पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखा जाए. भारत के लिए यह दिन काफी जरूरी है क्योंकि यहां पशुधन और मानव आबादी का डेंसिटी ज्यादा है, जिससे जूनोटिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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