Importance of Sex Education: भारत में सेक्स एक ऐसा टॉपिक है जिस पर खुल कर बात नहीं किया जाता है. इस वजह से बच्चों को बड़े होने के क्रम में सही जानकारी नहीं मिल पाती है, जिस वजह से वह कई बार मुश्किल में पड़ जाते हैं. अधिकतर भारतीय परिवारों में यह एक निषेध विषय है जिस पर चर्चा तो दूर नाम लेने पर भी रोक होती है. मौजूदा दौर में वेस्टर्न कल्चर को इस कदर अपनाया जा चुका है कि सेक्स एजुकेशन समय की मांग है. टेक्नोलॉजी की वजह से बच्चों को अपनी उम्र से ज्यादा एक्सपोजर मिल रहा है जिस वजह से सेक्स एजुकेशन की अनिवार्यता को गंभीरता से समझना बेहद जरूरी है. इस विषय पर तथ्यात्मक जानकारी के लिए एनडीटीवी ने सेक्सुअल हेल्थ एक्सपर्ट निधि झा से विशेष बातचीत की है.
क्या होता है सेक्स एजुकेशन? What Is Sex Education?
सेक्स एजुकेशन का मतलब सिर्फ एडल्ट लोगों को एसटीआई और कंडोम का सही तरह से इस्तेमाल करने तक सीमित नहीं है. डॉ. निधि झा कहती हैं कि सेक्स एजुकेशन सिर्फ एडल्ट या 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए नहीं है. इसकी शुरुआत महज 2-3 साल में ही हो जाती है. गुड टच और बैड टच के बारे में जब सिखाया जाता है तो वह भी एक तरह का सेक्स एजुकेशन ही है.
सेक्स एजुकेशन का मतलब सेफ सेक्स प्रैक्टिसेज से लेकर किस उम्र में इसकी शुरूआत होनी चाहिए और कब तक जारी रखा जा सकता है ऐसी तमाम जानकारियों से है. एसटीआई या एसटीडी से बचाव से लेकर इस विषय को सामान्य टॉपिक बनाने के लिए सेक्स एजुकेशन बेहद जरूरी है. आमतौर पर इस विषय पर किसी तरह की बातचीत नहीं होती है, जिस वजह से सेक्स और इससे जुड़ी जरूरी और तथ्यात्मक जानकारी की वजह से लोगों को सेहत से जुड़ी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
माता-पिता की जरूरी भूमिका-
सीखने के लिए सबसे उपयुक्त जगह घर है. स्कूल और कॉलेज से पहले दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए माता-पिता हमें तैयार करते हैं. इसीलिए सेक्स एजुकेशन की शुरुआत घर से होना बहुत जरूरी है. माता-पिता को इस संबंध में बच्चों से खुलकर बातचीत करनी चाहिए ताकि गलत इंफॉर्मेशन की वजह से वह किसी परेशानी में न फंस जाए. प्यूबर्टी हिट करने के वक्त बच्चों के शरीर में काफी बदलाव आता है जिसे लेकर माता-पिता को बच्चों को पहले से जानकारी देना चाहिए.
डॉ. निधि का कहना है कि बच्चों के साथ सबसे पहले एक कंफर्ट जोन बिल्ड करना बेहद जरूरी है. बच्चों को हर तरह की बातें शेयर करने के लिए मोटिवेट करें. लड़कियों में अब पीरियड 8 या 9 साल के करीब ही आ जाता है. पैरेंट्स को इससे थोड़े पहले से ही ब्रेस्ट डेवलपमेंट, जेनिटल और पीरियड जैसे तमाम टॉपिक्स पर बातचीत करनी चाहिए. बच्चे को प्यूबर्टी के समय लड़के और लड़की दोनों में होने वाले शारीरिक बदलावों को नॉर्मल ढंग से बताना चाहिए.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)