नई रिसर्च में यह पता चला है कि शिस्टोसोमा हेमेटोबियम नामक परजीवी (जो दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है) महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) की अंदरूनी परत में कैंसर से जुड़ी जीन एक्टिविटीज को शुरू कर सकता है. यह बदलाव इलाज के बाद और भी ज्यादा हो जाते हैं. यह जरूरी अध्ययन ऑस्ट्रिया में हुए 'ईएससीएमआईडी ग्लोबल 2025' कार्यक्रम में प्रस्तुत किया गया. यह दिखाता है कि यह परजीवी बीमारी, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, कैसे गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के खतरे को आणविक (मॉलिक्यूलर) लेवल पर बढ़ा सकती है.
इलाज के बाद शरीर में कुछ जैविक प्रक्रियाएं (जैसे सूजन, टिश्यू की मरम्मत और गर्भाशय ग्रीवा की सुरक्षा करने वाली परत का टूटना) ज्यादा सक्रिय हो गईं. इसके साथ ही ब्लड वेसल्स का बनना, कैंसर से जुड़ी प्रक्रियाओं का तेज होना और असामान्य सेल्स को नष्ट करने वाली प्रक्रिया (जिसे एपोप्टोसिस कहा जाता है) में कमी देखी गई.
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गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के प्रति ज्यादा सेंसिटिव
इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका डॉ. अन्ना मारिया मर्टेल्समैन ने बताया कि यह संक्रमण महिलाओं में ऐसे बदलाव शुरू कर सकता है जो उन्हें गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के प्रति ज्यादा सेंसिटिव बना देते हैं, खासकर इलाज के बाद. एक चिंताजनक बात यह भी देखी गई कि इलाज के बाद गर्भाशय ग्रीवा को मजबूत और सुरक्षित रखने वाले जीन कम सक्रिय हो गए. इससे एचपीवी के संक्रमण और उसके लंबे समय तक टिके रहने का खतरा बढ़ सकता है, जो कि गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का एक मुख्य कारण है.
डॉ. मर्टेल्समैन ने बताया कि जिन महिलाओं को प्राजिक्वेंटेल नाम की दवा दी गई, उनमें कैंसर से जुड़ी जीन में ज्यादा बदलाव देखे गए. इससे यह सवाल उठता है कि इलाज के लंबे समय बाद क्या असर होते हैं और क्या इलाज के बाद महिलाओं की सावधानी से निगरानी करनी चाहिए.
शिस्टोसोमा हेमेटोबियम और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बीच संबंध
यह अध्ययन 'बीयॉन्ड' नामक शोध पत्रिका में छपा है और यह शिस्टोसोमा हेमेटोबियम और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बीच संबंध को समझने की दिशा में पहला कदम है. अभी 180 महिलाओं पर एक और विस्तृत अध्ययन चल रहा है, जो 12 महीने तक चलेगा.
भविष्य में यह भी देखा जाएगा कि क्या यह परजीवी संक्रमण महिलाओं को लंबे समय तक एचपीवी से संक्रमित रहने का कारण बनता है और क्या इससे कैंसर का खतरा और बढ़ता है.
शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं में होने वाले फिमेल जेनाइटल सिस्टोसोमियासिस (एफजीएस) की जानकारी बढ़ाना बहुत जरूरी है, क्योंकि शिस्टोसोमा हेमेटोबियम से संक्रमित कई महिलाओं को यह बीमारी भी होती है, जिसे पहचानना मुश्किल होता है.
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संक्रमित महिलाओं की नियमित जांच होनी चाहिए
डॉ. मर्टेल्समैन ने सलाह दी कि शिस्टोसोमा हेमेटोबियम से संक्रमित महिलाओं की नियमित जांच होनी चाहिए ताकि समय रहते किसी भी असामान्यता को पकड़ा जा सके. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सूजन कम करने या इम्यूनिटी को संतुलित करने वाली दवाएं इलाज के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकती हैं.
इसके अलावा, बड़े पैमाने पर एचपीवी टीकाकरण गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के खतरे को कम करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है, खासकर उन महिलाओं के लिए जिन्हें सिस्टोसोमियासिस है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)