एक चौथाई स्कूली बच्चों की पूरी नहीं हो रही नींद, मेमोरी, इम्यूनिटी पर पड़ रहा बुरा असर, स्क्रीन टाइम बड़ी वजह : डॉ. वीके पॉल

Sleep Deprivation in School Children: स्टडी में, 12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार कॉग्नेटिव फंक्शन्स को प्रभावित करती है, इस पर फोकस किया गया.

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12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता.

Sleep Deprivation in School Children: नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. प्रो.वी.के. पॉल ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में नींद की कमी पर एक अध्ययन जारी करते हुए कहा कि हमारे स्कूली बच्चों में से एक-चौथाई उचित नींद से वंचित हैं, जिससे उनमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केन्द्र (एनएचएसआरसी) और सर गंगा राम अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में, 12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार कॉग्नेटिव फंक्शन्स को प्रभावित करती है, इस पर फोकस किया गया.

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स्कूली बच्चों में नींद की कमी

पॉल ने कहा, "नींद ब्रेन के कामकाज, मजबूत इम्यूनिटी, सही परफॉर्मेंस और मेमोरी के लिए जरूरी है. यह एक मौलिक जैविक जरूरत है." उन्होंने कम से कम सात-आठ घंटे की नींद लेने की सलाह दी. उन्होंने कहा, "स्कूली बच्चों में नींद की कमी का स्वास्थ्य पर प्रभाव आज के शैक्षणिक माहौल में एक बड़ा मुद्दा बन गया है."

स्क्रीन टाइन बन रहा नींद की कमी का कारण

उन्होंने भटकावों, खासतौर से स्क्रीन टाइम का जिक्र किया, जो नींद में बड़ी बाधा है. पॉल ने “बच्चों को ज्यादा बुद्धिमान, सक्षम और कुशल बनाने के लिए सकारात्मक नींद को बढ़ावा देने की जरूरत” पर बल दिया. एक्सपर्ट ने हेल्थ प्रोफेशनल्स और नीति निर्माताओं से देश में बच्चों और युवाओं की नींद की स्थिति में सुधार लाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया. इस बीच, अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि 22.5 प्रतिशत किशोर नींद से वंचित हैं, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा चिंता का विषय है.

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स्कूल का रूटीन और पारिवारिक आदतें भी बड़ा कारण

अध्ययन में शामिल 60 प्रतिशत प्रतिभागियों में अवसाद के लक्षण दिखे जबकि 65.7 प्रतिशत किशोरों में कम से मध्यम स्तर की संज्ञानात्मक कमजोरी देखी गई. अध्ययन से पता चला है कि स्क्रीन टाइम के अलावा, स्कूल का रूटीन और पारिवारिक आदतें भी स्लीप क्वालिटी को प्रभावित करती हैं और दिन के समय में अस्वस्थता को बढ़ाती है.

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अस्पताल में बाल स्वास्थ्य संस्थान की वरिष्ठ सलाहकार किशोर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लतिका भल्ला ने कहा, "अध्ययन के निष्कर्ष एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करते हैं. कई किशोरों को पर्याप्त नींद नहीं मिल रही है, जो खराब एकाग्रता, भावनात्मक असंतुलन और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन से निकटता से जुड़ा हुआ है."

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि स्कूलों, परिवारों और नीति निर्माताओं को किशोरों के विकास के लिए नींद संबंधी स्वास्थ्य को जरूरी मानने की तत्काल जरूरत है. यह बच्चों और किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की तत्काल जरूरत पर भी प्रकाश डालता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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