एक चौथाई स्कूली बच्चों की पूरी नहीं हो रही नींद, मेमोरी, इम्यूनिटी पर पड़ रहा बुरा असर, स्क्रीन टाइम बड़ी वजह : डॉ. वीके पॉल

Sleep Deprivation in School Children: स्टडी में, 12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार कॉग्नेटिव फंक्शन्स को प्रभावित करती है, इस पर फोकस किया गया.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
एक चौथाई स्कूली बच्चों की पूरी नहीं हो रही नींद, मेमोरी, इम्यूनिटी पर पड़ रहा बुरा असर, स्क्रीन टाइम बड़ी वजह : डॉ. वीके पॉल
12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता.

Sleep Deprivation in School Children: नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. प्रो.वी.के. पॉल ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में नींद की कमी पर एक अध्ययन जारी करते हुए कहा कि हमारे स्कूली बच्चों में से एक-चौथाई उचित नींद से वंचित हैं, जिससे उनमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केन्द्र (एनएचएसआरसी) और सर गंगा राम अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में, 12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार कॉग्नेटिव फंक्शन्स को प्रभावित करती है, इस पर फोकस किया गया.

यह भी पढ़ें: 3 कॉमन हेल्थ मिस्टेक जो बन गई हैं आपकी आदत, स्वास्थ्य को बुरी तरह पहुंचा रही नुकसान, क्या आप जानते हैं?

स्कूली बच्चों में नींद की कमी

पॉल ने कहा, "नींद ब्रेन के कामकाज, मजबूत इम्यूनिटी, सही परफॉर्मेंस और मेमोरी के लिए जरूरी है. यह एक मौलिक जैविक जरूरत है." उन्होंने कम से कम सात-आठ घंटे की नींद लेने की सलाह दी. उन्होंने कहा, "स्कूली बच्चों में नींद की कमी का स्वास्थ्य पर प्रभाव आज के शैक्षणिक माहौल में एक बड़ा मुद्दा बन गया है."

Advertisement

स्क्रीन टाइन बन रहा नींद की कमी का कारण

उन्होंने भटकावों, खासतौर से स्क्रीन टाइम का जिक्र किया, जो नींद में बड़ी बाधा है. पॉल ने “बच्चों को ज्यादा बुद्धिमान, सक्षम और कुशल बनाने के लिए सकारात्मक नींद को बढ़ावा देने की जरूरत” पर बल दिया. एक्सपर्ट ने हेल्थ प्रोफेशनल्स और नीति निर्माताओं से देश में बच्चों और युवाओं की नींद की स्थिति में सुधार लाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया. इस बीच, अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि 22.5 प्रतिशत किशोर नींद से वंचित हैं, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा चिंता का विषय है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: चेहरे पर जल्दी क्यों दिखने लगती हैं झुर्रियां, क्या इन्हें रोका जा सकता है? जानें झुर्रियों से बचने के उपाय

Advertisement

स्कूल का रूटीन और पारिवारिक आदतें भी बड़ा कारण

अध्ययन में शामिल 60 प्रतिशत प्रतिभागियों में अवसाद के लक्षण दिखे जबकि 65.7 प्रतिशत किशोरों में कम से मध्यम स्तर की संज्ञानात्मक कमजोरी देखी गई. अध्ययन से पता चला है कि स्क्रीन टाइम के अलावा, स्कूल का रूटीन और पारिवारिक आदतें भी स्लीप क्वालिटी को प्रभावित करती हैं और दिन के समय में अस्वस्थता को बढ़ाती है.

Advertisement

अस्पताल में बाल स्वास्थ्य संस्थान की वरिष्ठ सलाहकार किशोर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लतिका भल्ला ने कहा, "अध्ययन के निष्कर्ष एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करते हैं. कई किशोरों को पर्याप्त नींद नहीं मिल रही है, जो खराब एकाग्रता, भावनात्मक असंतुलन और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन से निकटता से जुड़ा हुआ है."

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि स्कूलों, परिवारों और नीति निर्माताओं को किशोरों के विकास के लिए नींद संबंधी स्वास्थ्य को जरूरी मानने की तत्काल जरूरत है. यह बच्चों और किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की तत्काल जरूरत पर भी प्रकाश डालता है.

Watch Video: वजन कम करने का सही तरीका, उम्र के हिसाब से कितना होना चाहिए, डॉक्टर से जानें

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
Adani Group: विकसित भारत का क्या है 'सीक्रेट' प्लान? | Chintan Research Foundation | NDTV India