Mother's Day Special: एक्सपर्ट ने बताया मां बनने के बाद होने वाले पोस्टमार्टम डिप्रेशन से कैसे बचें

Postpartum Depression: पोस्टपार्टम डिप्रेशन में चिड़चिड़ापन, थकावट की स्थिति बनी रहती है. इसका एक कारण नींद की कुर्बानी होती है. रातें बच्चों को संभालते निकल जाती हैं, उन्हें उठाना, दूध पिलाना, डाइपर बदलना और कई बार बस मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए ये जानने की कोशिश करना कि कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही- में समय निकल जाता है.

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Postpartum Depression: मां बनने के बाद अक्सर महिलाएं होती हैं इसकी शिकार.

Postpartum Depression: मां बनना ईश्वर की ओर से एक औरत को दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार है. इस उपहार के साथ कई बदलाव भी शरीर में आते हैं. स्किन पर भी असर पड़ता है. मां बनते ही जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है, रूटीन, प्राथमिकताएं और सबसे ज्यादा आपका नींद से रिश्ता कच्चा सा हो जाता है. ऐसी स्थिति में आखिर करें तो करें क्या? दादी मां के नुस्खे तो कारगर हैं ही, लेकिन इसके साथ ही मॉडर्न पैथी में भी इससे डील किया जाता है.

पोस्टपार्टम डिप्रेशन में चिड़चिड़ापन, थकावट की स्थिति बनी रहती है. इसका एक कारण नींद की कुर्बानी होती है. रातें बच्चों को संभालते निकल जाती हैं, उन्हें उठाना, दूध पिलाना, डाइपर बदलना और कई बार बस मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए ये जानने की कोशिश करना कि कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही- में समय निकल जाता है.

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित लेख के मुताबिक प्रसवकालीन अवसाद एक प्रचलित और संभावित रूप से गंभीर मनोदशा विकार है जो गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के बाद पहले वर्ष के दौरान लगभग 7 में से 1 महिला को प्रभावित करता है. प्रसवकालीन अवसाद हार्मोनल परिवर्तनों, आनुवंशिक प्रवृत्ति और पर्यावरणीय कारकों के मेल से उत्पन्न होता है.

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वहीं आयुर्वेद प्रसव के बाद की अवधि, या सूतिका काल को नई मां के लिए एक महत्वपूर्ण चरण मानता है. आयुर्वेद के अनुसार, प्रसव के बाद के पहले 42 दिन एक महिला के लंबे समय तक सेहतमंद रहने के लिए आवश्यक होते हैं. इस अवधि में मां को प्रसव से उबरने, ताकत हासिल करने और हार्मोनल संतुलन को बहाल करने में मदद करने के लिए विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. ठीक वैसा ही जैसी हमारी दादी-नानी करती भी आई हैं.

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आयुर्वेद के मुताबिक प्रसवोत्तर (प्रसव के बाद) में देखभाल जरूरी होती है क्योंकि गर्भावस्था और प्रसव के कारण वात में काफी वृद्धि होती है, जिससे थकान, पाचन संबंधी समस्याएं, शरीर में दर्द और भावनात्मक असंतुलन होता है. यदि उचित देखभाल नहीं की जाती है, तो बहुत दिक्कत हो सकती है. इस दौरान निद्रा अहम होती है.

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वहीं, मॉडर्न पैथी भी कुछ ऐसा ही कहती है. दिल्ली स्थित एक प्रतिष्ठित अस्पताल में ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी की लीड कंसल्टेंट डॉ. मंजूषा गोयल भी कुछ ऐसा ही सोचती हैं. बताती हैं कि नींद की कमी के पीछे कई वजहें होती हैं. बात सिर्फ थकान की नहीं है. जब नींद पूरी नहीं होती, तो उसका असर पूरे शरीर और दिमाग पर होता है. चिड़चिड़ापन बढ़ता है, मन अशांत रहता है, छोटी-छोटी बातों में उलझन होती है. धीरे-धीरे ये थकावट आपकी इम्युनिटी, मूड और सोचने-समझने की क्षमता पर असर डालती है. यहां तक कि हार्ट हेल्थ और मेटाबॉलिज़्म भी प्रभावित हो सकता है. इसलिए, न्यू मॉम्स के लिए ये जरूरी है कि जब भी मौका मिले, थोड़ा आराम कर लें.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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