तो क्‍या गलत थी सुपरबग पर लैंसेट रिपोर्ट! NCDC ने क्‍यों कहा भारत में नहीं बढ़ा सुपरबग संक्रमण का खतरा

एनसीडीसी ने कहा कि शोध में बताए गए 83 फीसदी सुपरबग का आंकड़ा संक्रमण नहीं, बल्कि कॉलोनाइजेशन से जुड़ा है जिसका ये बिल्कुल मतलब नहीं हैं कि मरीज बीमार है या इलाज फेल हो गया.

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नई दिल्ली: हाल में आई लेंसट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में सुपरबग संक्रमण का जोखिम काफी ज्यादा बढ़ गया है. लेकिन राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) का कहना है कि अध्ययन को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है. एनसीडीसी ने कहा कि शोध में बताए गए 83 फीसदी सुपरबग का आंकड़ा संक्रमण नहीं, बल्कि कॉलोनाइजेशन से जुड़ा है जिसका ये बिल्कुल मतलब नहीं हैं कि मरीज बीमार है या इलाज फेल हो गया.

नई दिल्ली स्थित एनसीडीसी के अनुसार, यह अध्ययन सिर्फ एक खास तरह के उच्च जोखिम वाले मरीजों पर किया गया था जिन्हें पहले से कई बीमारियाँ हैं और जो अस्पतालों में बार-बार आते-जाते हैं. इसलिए इस डाटा को पूरे भारत की स्वास्थ्य स्थिति पर लागू करना गलत और भ्रामक है. अध्ययन में दिखाया गया आंकड़ा भारत की आम जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करता. भारत की तुलना में अमेरिका-यूरोप की स्थिति ज्यादा गंभीर है.

अमेरिका-यूरोप से भारत की स्थिति बेहतर

एनसीडीसी की एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत में मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टेफिलोकोकस ऑरियस (MRSA) जीवाणु से जुड़े संक्रमण के मामले बहुत कम हैं. संक्रमण के मामलों में इसका 1.40 फीसदी योगदान है जबकि अमेरिका और यूरोप में यह कहीं अधिक है. इसी तरह वैनकॉमायसिन-प्रतिरोधी जीवाणु (VRE) संक्रमण के मामले भी भारत में 7.4% हैं जो विकसित देशों की तुलना में भारत की बेहतर स्थिति बता रहे हैं.

लेंसट अध्ययन में क्या बताया गया?

मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन में चेतावनी दी है कि भारत में सुपरबग तेजी से बढ़ रहे हैं. इस अध्ययन में भारत, इटली, नीदरलैंड और अमेरिका के लगभग 1,200 मरीजों की जांच की गई, जिसमें दावा किया गया कि भारत में 83.1% मरीजों में कम से कम एक मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट जीव (MDRO) पाया जो अन्य तीनों देशों की तुलना में बहुत अधिक है.

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    कॉलोनाइजेशन क्या है?

    एनसीडीसी की मानें, तो अगर किसी में कॉलोनाइजेशन मिलता है तो वह सिर्फ शरीर पर बैक्टीरिया की मौजूदगी के बारे में बताता है. इसका मतलब यह नहीं कि सुपरबग का हमला हो गया. कई बार यह शरीर की सामान्य सतहों में बिना किसी लक्षणों के भी मिल सकता है.

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    राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने कहा कि यह अध्ययन भारत में “सुपरबग संकट” का सबूत नहीं है. यह सिर्फ एक छोटे, खास मरीज समूह में बैक्टीरिया की मौजूदगी दिखाता है. ऐसे में इस सीमित दायरे वाले अध्ययन के आधार पर पूरे भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल करना वैज्ञानिक रूप से सही नहीं.

    (अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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