How to Reduce Your Child's Mobile Phone Addiction: आज स्मार्टफोन हर एक घर में नजर आते हैं. एक ओर जहां मोबाइल ने हमारे कई कामों को आसान बना दिया है वहीं इसकी लत से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी नुकसान भी हो रहे हैं, खास तौर से बच्चों को. आजकल के बच्चे सबसे पहले हाथ में मोबाइल पकड़ना सीख लेते हैं. आज अमूमन हर घर में बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते, रील्स देखते या शॉर्ट वीडियो देखते नजर आ जाएंगे. ये बच्चों का फेवरेट टाइम पास बना गया है. लेकिन क्या आपको पता है कि ये आदत बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास दोनों के लिए काफी खतरनाक है. अगर आपके बच्चे को भी मोबाइल पर घंटों बैठकर रील्स और शॉर्ट्स वीडियोज देखने की आदत लग गई है तो जान लें कि इससे उसके दिमाग यानी ब्रेन पर क्या असर पड़ सकता है.
ज्यादा समय तक फोन इस्तेमाल करने से बच्चों को होने वाला नुकसान | Harmful Effects Of Mobile | The Impact of Excessive Reels and Short Videos on Children's brain
ज्यादा समय तक रील्स/ शॉर्ट्स देखने से बच्चे की मेमोरी (Memory) कम होती जाती है. उनका पढ़ाई में फोकस (Focus) कम हो जाता है. बच्चे के अंटेशन स्पैन (Attention Span) और क्रिएटिविटी (Creativity) पर भी इसका असर पड़ता है.
शॉर्ट वीडियोज देखने से बच्चे कें अंदर इंस्टेंट इमोशनल चेंजेस आते हैं. जैसे बच्चा कोई कॉमेडी वीडियो देख रहा है तो वो अचानक खुश हो जाएगा. कुछ सेकेंड बाद कोई सेड वीडियो उसने देखा तो वो दुखी हो जाएगा. यानी वीडियो के हिसाब से बहुत जल्दी-जल्दी उसमें इमोशनल चेंज होते हैं. एडल्ट लोग भी जब इस तरह के वीडियो देखते हैं तो वो भी अपने माइंड को कंट्रोल नहीं कर पाते. तो सोचिए एक बच्चा जिसका ब्रेन पूरी तरह से विकसित भी नहीं हुआ है, वो इस तरह के वीडियो देखेगा तो उसके ब्रेन पर कितना ज्यादा असर पड़ेगा.
फोन देखते हुए भावनात्मक रूप से जूझते हैं बच्चे
वीडियो की वजह से बच्चे में जल्दी-जल्दी होने वाले इन इमोशनल चेंज से वो कन्फ्यूज हो जाता है, जिसकी वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है, गुस्सा करने लग सकता है और छोटी-छोटी बातों पर रोने लग सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चों के दिमाग का एक बहुत अहम हिस्सा जिसे prefrontal cortex कहते हैं, जो डिसीजन मेकिंग और इंपल्स कंट्रोल के लिए रिस्पांसिबल होता है, वो अब तक डेवलप नहीं हुआ होता है.
बच्चों की आंखों पर फोन के नुकसान
नेत्र चिकित्सकों (Ophthalmologists) का मानना है कि खराब लाइफस्टाइल और स्क्रीन का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से 2030 तक भारत के शहरों में 5-15 साल की उम्र के एक-तिहाई बच्चों के मायोपिया से पीड़ित होने की संभावना है.
इसलिए बहुत जरूरी है कि पेरेंट्स इस बात पर खास ध्यान दें कि उनका बच्चा कहीं ज्यादा देर तक रील्स या शॉर्ट वीडियो तो नहीं देख रहा.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)