क्या है आयुर्वेद का इतिहास, किन किताबों में मिलता है इस विज्ञान का जिक्र जानिए विस्तार से

आयुर्वेद की जानकारी आज के लोगों को उसी दौर के वेदों से हुई है. जिसमें आयुर्वेद से जुड़ी पूरी जानकारी दी गई है.

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जानिए कैसे हुए थी आयुर्वेद की शुरुआत, कैसे हुआ विस्तार.

History Of Ayurveda: मेडिसिन की दुनिया में या यूं कहें कि उपचार के विज्ञान में एलोपैथिक की बातें तो कुछ ही साल पहले से शुरू हुई हैं. लेकिन आयुर्वेद का विज्ञान कई हजारों साल पुराना माना जाता है. भारत में ही जन्मे आयुर्वेद को पांच हजार साल पुराना माना जाता है. खासतौर से जब भारत में वेदों का पठन पाठन बहुत ज्यादा होता था और जब बहुत से संत पृथ्वी पर हुआ करते थे तब आयुर्वेद का हर ओर बोलबाला था. ये भी माना जाता है कि आयुर्वेद की जानकारी आज के लोगों को उसी दौर के वेदों से हुई है. जिसमें आयुर्वेद से जुड़ी पूरी जानकारी दी गई है.

आयुर्वेद की हिस्ट्री और बदलाव| History of Ayurveda And Its Evolution

आयुर्वेद का इतिहास

आयुर्वेद से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं तो कुछ मायथोलॉजिक्ल रिफ्रेंसेस भी मिलते है . ये माना जाता है कि दूसरी शताब्दी से ही भारत में आयुर्वेद के विज्ञान की प्रैक्टिस हो रही है. उस दौर में विषेशिका नाम की शाला में शास्त्र और आयुर्वेद पढ़ाया जाता था और प्रैक्टिस भी किया जाता था. इस स्कूल में हर विषय को छह अलग अलग भागों में बांटा जाता था.

  • द्रव्य
  • गुण
  • कर्म
  • सामान्य
  • विशेष
  • समन्वय

माना जाता है कि 1500 से 1000 बीसी के बीच भारत में आयुर्वेद सबसे ज्यादा फला फूला. जिस तरह से चायनीज मेडिसिन दुनिया में पहचान बना रही थी. उसी तेजी से आयुर्वेद भी विकसित हो रहा था. उस दौर में दो स्कूल थे जो आयुर्वेद पढ़ाते थे. एक स्कूल का नाम था अत्रेय और दूसरे स्कूल का नाम था धनवंतरी. स्वामी अग्निवेश ने आयुर्वेद के विज्ञान को थोड़ा व्यवस्थित रूप से वेदों से ग्रहण किया. जिसे बाद में चरक और दूसरे विद्वानों और संपादित किया. इसे ही अब चरकसंहिता के नाम से जाना जाता है. जिसमें आयुर्वेद के हर पहलू से जुड़ी अलग अलग जानकारी मौजूद है.

दूसरा इस तरह का साहित्य है सुश्रुता संहिता. ये संहिता सर्जरी के विज्ञान से जुड़ी हुई मानी जाती है. आज के दौर में भी यही दो प्राचीन साहित्य आयुर्वेद का मूल आधार माने जाते हैं.

क्या है आष्टांग संग्रह और आष्टांग हृद्यम

आष्टांग का अर्थ है आयुर्वेद के आठ सेक्शन

  • काया चिकित्सा
  • बाल चिकित्सा
  • ग्रह चिकित्सा
  • सल्क्य तंत्र
  • साल्य तंत्र
  • अगाडा तंत्र
  • जारा चिकित्सा
  • वजिकर्णा चिकित्सा

आष्टांग संग्रह को वृधा वागभट ने लिखा था. जो चरक के शिष्य थे. इसमें आयुर्वेद से मेडिकल और सर्जिकल दोनों तरह के उपचार के बारे में लिखा गया है. माना जाता है कि आष्टांग हृद्यम भी उन्होंने ही लिखा है. फर्क सिर्फ इतना है कि आष्टांग संग्रह में ज्यादा से ज्यादा श्लोक और मंत्रों का उपयोग किया गया है.

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आयुर्वेद में सुश्रुता, चरक और वागभट को द ट्रिनिटी के रूप में जाना जाता है.

ऐसे फैला आयुर्वेद

आयुर्वेद की किताबों का 1000 सीई और 1200 सीई में कुछ लेखकों से अरबी में अनुवाद भी किया. ताकि आयुर्वेद की ताकत को समझा जा सके. 1100 सीई में एक और महत्वपूर्ण किताब लिखी गई. इस किताब को लिखा माधवाचार्य ने. इसे ही माधव निदान के नाम से भी जाना गया. 1500 सीई में भावा मिश्रा ने भी आयुर्वेद पर काफी कुछ लिखा. बदलते दौर को ध्यान में रखते हुए उन्होंने लिखा कि आयुर्वेद का अर्थ ये भी है कि नए आइडियाज और थ्योरी को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ा जाए. अंग्रेजों के दौर में भी आयुर्वेद का प्रचलन हुआ. आज भी अधिकांश लोग आयुर्वेद को फॉलो करते हैं.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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