दूसरों ने क्या खाया ये न देखें, अपने शरीर के हिसाब से लें डाइट, जानें क्या कहती है डाइट से जुडी रिसर्च

वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि वन-साइज-फिट्स-ऑल का दौर गुजर चुका है. यानी हर इंसान का शरीर अलग है, उसकी जरूरतें अलग हैं, और उसी हिसाब से उसका आहार भी अलग है. यही विचार आज व्यक्तिगत पोषण या डीएनए आधारित डाइट के रूप में सामने आ रहा है.

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कोई व्यक्ति चावल खाने से तुरंत थकान महसूस करता है जबकि दूसरे को वही चावल ऊर्जा देते हैं.

हमारे यहां शायद हर जेनरेशन को घोल कर पिलाया जाता है कि सेहतमंद रहने के लिए सबको एक जैसा खाना चाहिए. मतलब सुबह दूध, दोपहर को दाल-चावल और रात में हल्का और सुपाच्य भोजन.  इन सबके सेवन का समय भी फिक्स करने की सलाह दी जाती है. लेकिन बदलते समय में ये धारणा भी बदल रही है. यूं तो वैज्ञानिक रिसर्च कई होते हैं लेकिन एक ऐसा है जो पुख्ता तौर पर कहता है कि आपकी थाली में क्या हो, क्या नहीं, ये रिवायत नहीं, आपके डीएनए को तय करना होता है.

शरीर के हिसाब से लें डाइट

वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि वन-साइज-फिट्स-ऑल का दौर गुजर चुका है. यानी हर इंसान का शरीर अलग है, उसकी जरूरतें अलग हैं, और उसी हिसाब से उसका आहार भी अलग है. यही विचार आज व्यक्तिगत पोषण या डीएनए आधारित डाइट के रूप में सामने आ रहा है.

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आसान शब्दों में कहें तो यह ऐसा विज्ञान है जो बताता है कि आपकी जीन, आपका माइक्रोबायोम और आपकी जीवनशैली तय करेंगे कि आपके लिए कौन-सा भोजन सबसे फायदेमंद है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति चावल खाने से तुरंत थकान महसूस करता है जबकि दूसरे को वही चावल ऊर्जा देते हैं. इसका कारण शरीर की आंतरिक जैविक बनावट है.

हाल के वर्षों में माइक्रोबायोम टेस्ट और जीन टेस्ट इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं. माइक्रोबायोम टेस्ट से यह पता चलता है कि आपकी आंतों में कौन-से बैक्टीरिया ज्यादा सक्रिय हैं और वे आपके पाचन तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को कैसे प्रभावित कर रहे हैं. वहीं, जीन टेस्ट यह दिखाता है कि आपका शरीर कार्बोहाइड्रेट, फैट या प्रोटीन को किस तरह पचाता है और कौन-सा पोषक तत्व आपके लिए लाभकारी या हानिकारक हो सकता है.

2022 में नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जब लोगों को उनके जेनेटिक और माइक्रोबायोम डेटा के आधार पर व्यक्तिगत डाइट दी गई, तो उनकी ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल पर पारंपरिक डाइट की तुलना में कहीं बेहतर असर पड़ा. यानी, जो डाइट एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाती है, वही दूसरे को नुकसान भी पहुंचा सकती है.

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द अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2016) में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों को व्यक्तिगत पोषण संबंधी सलाह मिली, उनके एक विशिष्ट आहार (इस मामले में, मेडिटेरियन आहार) का पालन करने की संभावना अधिक थी. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित एक संबंधित शोधपत्र में पाया गया कि आहार, जीवनशैली और जीनोटाइप के आधार पर व्यक्तिगत पोषण संबंधी जानकारी प्रदान करने से "पारंपरिक दृष्टिकोण की तुलना में आहार व्यवहार में बड़े और अधिक उपयुक्त परिवर्तन हुए."

भारत में भी अब इस ट्रेंड की ओर झुकाव बढ़ रहा है. मेट्रो शहरों में कई हेल्थ स्टार्टअप्स जीन टेस्टिंग और गट-हेल्थ एनालिसिस के आधार पर डाइट प्लान देने लगे हैं. इससे लोग यह समझ पा रहे हैं कि 'लो-कार्ब,' 'कीटो' या 'हाई-प्रोटीन' डाइट किसे सचमुच सूट करती है और किसके लिए यह नुकसानदेह हो सकती है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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