सिलिकोसिस फेफड़ों से जुड़ी बीमारी है. यह आमतौर पर उन लोगों में देखी जाती है, जिन्हें काम के दौरान सिलिका युक्त धूल में सांस लेना पड़ता है. सिलिका बहुत छोटे आकार के क्रिस्टल होते हैं, जो रेत, चट्टान या क्वार्ट्ज जैसे चीजों में पाई जाती हैं. सिलिका की धूल सिलिकोसिस का कारण बन सकती है. लंबे समय तक ऐसी जगह पर काम करने से लोगों के लंग्स और श्वास नली में सिलिका की धूल जमा होने लगती है. इससे छिलने जैसे घाव बन जाते हैं. इन घावों के कारण सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. आइए जानते हैं क्या हैं सिलिकोसिस के लक्षण और किन लोगों को है इस बीमारी का खतरा.
सिलिकोसिस के प्रकार | Types of Silicosis
1. तीव्र (Acute)
बड़ी मात्रा में सिलिका के संपर्क में रहने के कारण एक हफ्ते से लेकर 2 साल के समय में एक्यूट सिलिकोसिस के लक्षण दिखाई देते हैं.
2. क्रॉनिक (Chronic)
सिलिका की कम या मध्यम मात्रा के संपर्क में आने के बाद लंबे समय तक समस्याएं दिखाई नहीं देती हैं, लेकिन इसके बाद लक्षण सामने आने लगते हैं. यह सिलिकोसिस का सबसे आम प्रकार है. लक्षण पहले हल्के होते हैं और धीरे-धीरे खराब होने लगते हैं.
3. त्वरित (Accelerated )
बहुत ज्यादा सिलिका वाली धूल के संपर्क में रहने के 5 से 10 साल बाद सिलिकोसिस के लक्षण सामने आते हैं और स्थिति तेजी से बिगड़ जाती है.
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किन लोगों को होता है सिलिकोसिस का खतरा?
काम के दौरान सिलिका के धूल के संपर्क में आने वाले लोगों को सिलिकोसिस का खतरा ज्यादा होता है. कुछ क्षेत्र की नौकरियों में यह जोखिम ज्यादा होता है. इनमें शामिल हैं-
- खुदाई
- स्टील उद्योग
- भवन निर्माण
- प्लास्टर या ड्राईवॉल इंस्टॉलेशन
- कांच निर्माण
- सड़क मरम्मत
- सैंड ब्लास्टिंग
- सीमेंट से काम
- छत बनाना
- खेती
सिलिकोसिस के लक्षण (Symptoms of Silicosis)
अगर आप सिलिका वाले वातावरण में रहते हैं तो शुरुआती लक्षण हैं:
- तेज खांसी
- कफ
- सांस लेने में परेशानी
बाद में दिखने वाले लक्षण
- सांस लेने में परेशानी
- थकान
- वजन कम होना
- छाती में दर्द
- अचानक बुखार आना
- सांस उखड़ना
- होठ नीले पड़ जाना
सिलिकोसिस का कारण (Causes of Silicosis)
लंग्स में सिलिका जमा होने पर बॉडी का रिएक्शन सिलिकोसिस का कारण होता है. सिलिका वाली धूल में सांस लेने के कारण सिलिका की महीन धूल श्वास नली में जम जाती है. इससे श्वास नली और फेफड़े में घाव बन जाते हैं जिससे लंग्स स्टिफ और डैमेज हो जाते हैं और सांस लेने में परेशानी होने लगती है.
कैसे लग सकता है सिलिकोसिस का पता (How Is Silicosis Diagnosed)
चेस्ट एक्स-रे या सीटी स्कैन: यह टेस्ट फेफड़ों में घावों की जांच करता हैं.
ब्रोंकोस्कोपी: एक लंबी, पतली ट्यूब, जिसके सिरे पर छोटा कैमरा लगा होता है से फेफड़ों की जांच की जाती है.
बायोप्सी: फेफड़े के टिश्यू की बायोप्सी करके सिलिकोसिस के लक्षणों के लिए माइक्रोस्कोपिक जांच की जाती है.
थूक परीक्षण: इससे फेफड़ों की बीमारियों जैसे टीबी आदि की जांच होती है.
सिलिकोसिस से बचाव (prevention of silicosis)
- सिलिका के संपर्क में आने वाले समय को कम से कम करने का प्रयास करें
- काम करने के समय मास्क का उपयोग करें
कार्यस्थल पर सिलिकोसिस से बचाव के उपाय
- ब्लास्टिंग कैबिनेट या उचित वेंटिलेशन का उपयोग.
- सिलिका युक्त ब्लास्टिंग सामग्री में बदलाव.
- ऐसे श्वासयंत्रों का उपयोग जो सिलिका को शरीर के अंदर जाने से रोकते हैं.
- सिलिका धूल के पास कुछ भी खाने पीने से बचें.
- खाने से पहले अपने हाथ और चेहरा धोएं.
सिलिकोसिस का उपचार ( Treatment of Silicosis)
अभी सिलिकोसिस का कोई सटीक उपचार नहीं है केवल लक्षणों को सीमित किया जा सकता है.
इनहेलर स्टेरॉयड फेफड़ों के बलगम को कम करते हैं और श्वास मार्ग को आराम देते हैं.
ऑक्सीजन थेरेपी छोटा ऑक्सीजन टैंक थकान कम करने के लिए एक्स्ट्रा ऑक्सीजन देता है.
बहुत ज्यादा डैमेज फेफड़ों को बदला जाता है.
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