माताओं द्वारा इस्तेमाल किए गए लोशन और शैम्पू के कैमिकल से बच्चों में अस्थमा का खतरा

'एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन' पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला है कि प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान लोशन और शैंपू जैसे पर्सनल केयर के प्रोडक्ट्स में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल 'ब्यूटिलपैराबेन' के हाई लेवल के संपर्क में आने से बच्चों में अस्थमा के खतरे में 1.54 गुना वृद्धि होती है.

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टीम के शोधकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं से एकत्र मूत्र के नमूनों में 24 प्रकार के फिनोल को मापा.

एक शोध में यह बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान लोशन और शैंपू में मौजूद रसायनों के संपर्क में आने वाली माताओं से पैदा होने वाले शिशुओं में अस्थमा जैसी बीमारियां विकसित होने खतरा हो सकता है. कुमामोटो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था के दौरान कुछ रोजमर्रा के केमिकल के संपर्क में आने और बच्चों में अस्थमा के विकास के बीच संबंध का पता लगाने के लिए 3,500 से ज्यादा मां-बच्चे की जोड़ी के डेटा का विश्लेषण किया. 'एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन' पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला है कि प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान लोशन और शैंपू जैसे पर्सनल केयर के प्रोडक्ट्स में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल 'ब्यूटिलपैराबेन' के हाई लेवल के संपर्क में आने से बच्चों में अस्थमा के खतरे में 1.54 गुना वृद्धि होती है.

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शोध में पता चला कि 4-नोनिलफेनॉल नामक केमिकल के संपर्क में आने वाली माताओं से पैदा हुए लड़कों में अस्थमा विकसित होने की संभावना 2.09 गुना ज्यादा थी. हालांकि लड़कियों में ऐसा कोई संबंध नहीं देखा गया.

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कुमामोटो विश्वविद्यालय के डॉ. शोहेई कुराओका ने कहा, "ये परिणाम गर्भावस्था के दौरान केमिकल रिस्क के केयरफुल इवेलुएशन की जरूरत पर जोर देते हैं." कुराओका ने कहा, "इन जोखिमों को समझने से हमें मातृ और बाल स्वास्थ्य की रक्षा के लिए बेहतर दिशा-निर्देश विकसित करने में मदद मिलती है."

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टीम के शोधकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं से एकत्र मूत्र के नमूनों में 24 प्रकार के फिनोल को मापा. इसे बाद शोधकर्ताओं ने चार साल की उम्र तक बच्चों के स्वास्थ्य पर नजर रखी. यह निष्कर्ष इस बात को समझने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं कि रोजाना केमिकल्स का इस्तेमाल बच्चों में सांस और एलर्जी की स्थिति में कैसे योगदान दे सकता है.

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नॉनिलफेनोल को एंडोक्राइन सिस्टम को बाधित करने वाला माना जाता है. पिछले अध्ययनों से पता चला है कि इनके संपर्क में आने से हाल ही में अस्थमा जैसी बीमारियों में वृद्धि हुई है. हालांकि शोधकर्ता बच्चों में फिनोल लेवल को सीधे न मापने जैसी सीमाओं को स्वीकार करते हैं. उन्होंने इसके बारे में और ज्यादा पता लगाने के लिए भविष्य में अध्ययनों की जरूरत पर जोर दिया है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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