2050 तक हर दूसरा बच्चा बनेगा ‘चश्मिश’? बढ़ता स्क्रीन टाइम बन रहा है आंखों का दुश्मन

हाल ही में जापान के एक शहर ने बड़ा फैसला लिया, ये कि बच्चों और वयस्कों के स्क्रीन टाइम को घटाया जाएगा. जापान के आइची प्रांत के टोयोआके शहर की स्थानीय असेंबली ने इसी साल 30 सितंबर को एक अध्यादेश पारित किया जिसके तहत लोग रोज काम या पढ़ाई के अलावा सिर्फ दो घंटे ही मोबाइल, कंप्यूटर या टैबलेट चला पाएंगे. इस आदेश ने 2024 की एक रिपोर्ट की याद दिला दी!

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हाल ही में जापान के एक शहर ने बड़ा फैसला लिया, ये कि बच्चों और वयस्कों के स्क्रीन टाइम को घटाया जाएगा. जापान के आइची प्रांत के टोयोआके शहर की स्थानीय असेंबली ने इसी साल 30 सितंबर को एक अध्यादेश पारित किया जिसके तहत लोग रोज काम या पढ़ाई के अलावा सिर्फ दो घंटे ही मोबाइल, कंप्यूटर या टैबलेट चला पाएंगे. इस आदेश ने 2024 की एक रिपोर्ट की याद दिला दी!

 ये रिपोर्ट स्क्रीन टाइम के नुकसान की ओर इशारा करती है. 2024 में प्रकाशित (ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी) एक अध्ययन के अनुसार, 1990 में 24 फीसदी बच्चों में नजदीकी दृष्टि दोष यानी मायोपिया था, जो 2023 में बढ़कर 36 फीसदी हो गया. यह आंकड़ा 2050 तक 40 फीसदी तक पहुंच सकता है, जिसका मतलब है कि लगभग 740 मिलियन बच्चे और किशोर नजदीक की चीज देखने में थोड़ा असहज होंगे और उन्हें चश्मा लगेगा. कुल 276 अध्ययनों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया, जिनमें यूरोप, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के 50 देशों के पांच मिलियन से अधिक बच्चे और किशोरों को शामिल किया गया था. इनमें लगभग 2 मिलियन को मायोपिया था.

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जापान में इसी साल जुलाई-अगस्त में डेटाबेस स्टडी के आधार पर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. ये स्टडी अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित हुई. पता चला कि जापान में, 6 से 11 वर्ष के बच्चों में 77 फीसदी और 12 से 14 वर्ष के बच्चों में 95 फीसदी मायोपिया के शिकार हैं. यह वृद्धि मुख्यतः बच्चों के आउटडोर गतिविधियों में कमी और डिजिटल डिवाइस के बढ़ते उपयोग के कारण हो रही है.

ये सभी तथ्य दुनिया भर में चिंता का कारण हैं. एक अध्ययन में पाया गया कि प्रतिदिन एक घंटे का अतिरिक्त स्क्रीन टाइम बच्चों में मायोपिया के जोखिम को 21फीसदी बढ़ा देता है. जापानी एक्सपर्ट्स ने अपने अध्ययन में जेनेटिक के अलावा आउटडोर खेलों में कमी और स्क्रीन टाइम में वृद्धि को सेहत के लिए खतरनाक माना. उन्होंने कहा कि इससे नींद की कमी आती है, मानसिक तौर पर आप थके हुए रहते हैं, और शारीरिक गतिविधियों में कमी जैसी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, जो मायोपिया के जोखिम को और बढ़ाती हैं.

अध्ययन और जापान के शहर टोयोआके में उठाए गए कदम वाकई आंखें खोलने वाले हैं. उन अभिभावकों के लिए जो रोते हुए या फिर बच्चे की जिद का सम्मान करते हुए मोबाइल थमा देते हैं. बच्चे की आंखें रोशन रहें इसका उपाय भी ये अध्ययन देते हैं. बस इसके लिए करना ये है कि उन्हें आउटडोर गेम्स के लिए भेजना है. कम से कम दो घंटे उन्हें इंटरनेट की दुनिया से दूर रखें. इसके अलावा, जैसे जापान ने किया है, स्क्रीन टाइम सीमित करना है, आंखों का रेगुलर चेकअप कराना है और सबसे जरूरी बात, आंखों की अहमियत बड़े प्यार से उन्हें समझानी है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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