Research on human brain : अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ह्यूमन ब्रेन का पहला एटलस तैयार किया है, जिससे यह समझना आसान होगा कि दिमाग जन्म से जवानी तक कैसे विकसित होता है. यह रिसर्च ऑटिज्म, सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के इलाज में नई उम्मीद जगाता है. हाल ही में अमेरिकी वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलती हासिल हुई है. इस रिसर्च से अब ये चीज समझने में आसानी होगी कि आखिर इंसान का ब्रेन जन्म से लेकर बड़े होने तक कैसे विकसित होता है. इस रिसर्च से कई मानसिक बीमारियों जैसे ऑटिज्म, सिज़ोफ्रेनिया आदि के इलाज में मदद मिल सकेगी.
रिसर्चर्स ने क्या किया?
रिसर्चर्स ने ह्यूमन ब्रेन का पहला "एटलस" (नक्शा) तैयार किया है, जिसमें यह बताया गया है कि ब्रेन में अलग-अलग कोशिकाएं कैसे बनती हैं, कैसे काम करती हैं और उम्र बढ़ने के साथ कैसे बदलती हैं. इस रिसर्च को सिर्फ इंसानों पर नहीं, बल्कि चूहों और बंदरों पर भी किया गया ताकि तुलना की जा सके कि ब्रेन में क्या समानताएं और क्या फर्क हैं.
हमारे ब्रेन में होती हैं हजारों तरह की कोशिकाएं
रिसर्च के दौरान रिसर्चर्स ने पाया कि ब्रेन में हजारों तरह की कोशिकाएं होती हैं जो मिलकर हमारे इमोशन सोच, व्यवहार और मेमोरी जैसी चीज़ों को कंट्रोल करती हैं. उन्होंने बताया कि कुछ कोशिकाएं सिर्फ इंसानों के ब्रेन में होती हैं, जो ह्यूमन इंटेलिजेंस और क्रिएटिविटी को अलग बनाती हैं.
सिएटल के एलन इंस्टीट्यूट फॉर ब्रेन साइंस के वैज्ञानिक होंगकुई ज़ेंग के मुताबिक, “यह एटलस हमें समझने में मदद करेगा कि ब्रेन कैसे विकसित होता है और बीमारियों के दौरान उसमें क्या गड़बड़ी आती है.”
कैसे मिलेगी इससे मदद?
इस एटलस की मदद से रिसर्चर्स अब यह समझ पाएंगे कि ब्रेन की कौन सी कोशिकाएं कब और कैसे बदलती हैं, और ऑटिज्म, ADHD, या सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारियों में कौन से जीन प्रभावित होते हैं. यूसीएलए की न्यूरोसाइंटिस्ट अपर्णा भादुड़ी ने बताया, “पहले हमें सिर्फ इतना पता था कि ब्रेन तेजी से बदलता है, लेकिन अब हमें यह भी पता चल रहा है कि कौन-सी कोशिकाएं कब विकसित होती हैं.”
ब्रेन ट्यूमर और कैंसर में मिलेगी मदद - Help will be provided in brain tumor and cancer
एक और स्टडी से पता चला कि कुछ ब्रेन ट्यूमर की कोशिकाएं शुरुआती भ्रूणीय कोशिकाओं जैसी होती हैं. यानी ब्रेन कैंसर में भी वही डेवलपमेंट प्रोसेस फिर से शुरू हो सकता है, जो सामान्य विकास के समय होता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है. आगे हमें यह समझना है कि बीमारियों के दौरान कौन-सी कोशिकाएं और जीन बदलते हैं, ताकि उनका सही इलाज हो सके.
भादुड़ी ने कहा, "हमारा मकसद सिर्फ ब्रेन को समझना नहीं, बल्कि यह जानना है कि बीमारियों के वक्त उसमें क्या बिगड़ता है."
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)














