उल्टे जवाब और रिस्की फैसले? जानिए क्यों ये टीन-एज बच्चों की ग्रोथ के लिए जरूरी हैं

टीन बच्चे जब सरकास्टिक बात करते हैं या ड्रामेटिक हो जाते हैं तो पेरेंट्स को लगता है कि वो जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं. असल में उनका ब्रेन इमोशनल कंट्रोल सीख रहा होता है.

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टीन-एज बच्चों की ये 7 आदतें पेरेंट्स को लगती हैं गड़बड़,

Habits of teenagers: टीन एज में बच्चों का बर्ताव कई बार पेरेंट्स को परेशान कर देता है. गुस्सा आना उल्टे जवाब देना रिस्की फैसले लेना या कमरा बिखरा छोड़ना ये सब देखकर पेरेंट्स मान लेते हैं कि बच्चा बिगड़ रहा है और तुरंत सज़ा देने लगते हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स की मानें तो ऐसे कई बिहेवियर्स दरअसल बच्चे के दिमाग के डेवलपमेंट का हिस्सा होते हैं. डॉ कैम कैसवेल जो एक टीन और पेरेंट कोच हैं और सोशल मीडिया पर पेरेंटिंग टिप्स देती हैं उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में ऐसे सात बिहेवियर्स बताए हैं जिन्हें पेरेंट्स अक्सर गलत समझते हैं जबकि ये बच्चों की नॉर्मल ग्रोथ के साइन हैं. आइए जानते हैं वो कौन से सात बिहेवियर्स हैं और पेरेंट्स को कैसे रिएक्ट करना चाहिए

टीनएजर्स की 7 आदतें (7 habits of teenagers)

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गुस्सैल या ताना मारने वाला एटीट्यूड

टीन बच्चे जब सरकास्टिक बात करते हैं या ड्रामेटिक हो जाते हैं तो पेरेंट्स को लगता है कि वो जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं. असल में उनका ब्रेन इमोशनल कंट्रोल सीख रहा होता है. दस से उन्नीस साल की उम्र में उनकी फीलिंग्स इतनी बड़ी होती हैं कि वो खुद उन्हें संभाल नहीं पाते. बेहतर तरीका है कि पेरेंट्स खुद शांत रहें बच्चों की फीलिंग्स को पहचानने में उनकी मदद करें और फ्रस्ट्रेशन को कैसे हैंडल किया जाता है ये खुद दिखाएं.

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घर का काम न करना जब तक कई बार टोका न जाए

जब टीन बच्चे घर का काम टालते हैं तो पेरेंट्स को लगता है कि वो आलसी हो रहे हैं. जबकि सच ये है कि ग्यारह से पच्चीस साल तक उनके दिमाग की प्लानिंग प्रायोरिटी और फॉलो थ्रू की स्किल्स बन रही होती हैं. बेहतर होगा कि काम को छोटे स्टेप्स में बांटें चेकलिस्ट बनाएं और रूटीन बच्चे के साथ मिलकर बनाएं.

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हर बात पर बहस करना

टीन एज में बच्चे हर बात पर सवाल उठाते हैं या बहस करते हैं. ये उनकी सोच और पहचान बनने का प्रोसेस होता है. बारह से अठारह साल तक वो अपनी बिलीफ्स और आईडेंटिटी को समझने की कोशिश करते हैं. पेरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चों की बात सुनें शांति से अपनी बात बताएं और शांत लेकिन सख्त रहें.

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बहुत खुदगर्ज़ जैसा बर्ताव

टीन बच्चों में कई बार इम्पैथी की कमी दिखती है या वो रूड लगते हैं. असल में वो इम्पैथी और दूसरे के नजरिए को समझना सीख रहे होते हैं. तेरह से सत्रह साल की उम्र में ये स्किल डेवलप होती है और कई बार वो इसमें गलती कर जाते हैं. पेरेंट्स पूछें कि तुम्हारे बर्ताव से दूसरे को कैसा लगा होगा और जब बच्चा इम्पैथी दिखाए तो उसकी तारीफ करें.

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गलत फैसले लेना

टीन बच्चे इम्पल्सिव डिसीजन लेते हैं या रिस्की बिहेवियर करते हैं. उनका रिवॉर्ड सिस्टम पूरी तरह एक्टिव हो जाता है लेकिन ब्रेक्स यानी इम्पल्स कंट्रोल थोड़ा पीछे रह जाता है. ये तेरह से उन्नीस साल की उम्र में होता है. पेरेंट्स बच्चों से फैसलों के नतीजों पर पहले बात करें उन्हें डिसीजन लेने की प्रैक्टिस दें ताकि उनकी स्किल बेहतर हो.

बात करते वक्त ध्यान न देना

कई बार बच्चे जब पेरेंट्स की बात सुनते हुए ब्लैंक स्टेयर देने लगते हैं या भूल जाते हैं तो लगता है कि वो इग्नोर कर रहे हैं. असल में उनका दिमाग कॉग्निटिव ओवरलोड से जूझ रहा होता है. बारह से अठारह साल की उम्र में उनका दिमाग स्ट्रेस इमोशन्स या ज्यादा इनपुट से जल्दी थक जाता है. पेरेंट्स को अपनी बात छोटी और साफ रखनी चाहिए और तब बात करनी चाहिए जब बच्चा थोड़ा शांत हो.

कमरा बिखरा छोड़ देना

टीन बच्चे जब अपना कमरा गंदा छोड़ते हैं तो पेरेंट्स को लगता है कि वो लापरवाह हो गए हैं. लेकिन ये ग्रोइंग इंडिपेंडेंस का साइन होता है. ग्यारह से उन्नीस साल में वो अपनी कम्फर्ट और प्रेफरेंस को पेरेंट्स की एक्सपेक्टेशन पर तरजीह देने लगते हैं. पेरेंट्स को शेयर की गई जगह के लिए रूल बनाने चाहिए लेकिन उनके रूम पर पूरी तरह कंट्रोल करने की कोशिश न करें.

दरअसल, पनिशमेंट से ज्यादा ज़रूरी है बच्चों को समझना और उनके ब्रेन के साथ मिलकर काम करना. अगर पेरेंट्स स्मार्ट तरीके से रिएक्ट करेंगे तो बच्चों से ट्रस्ट कनेक्शन और जरूरी स्किल्स डेवलप होंगी.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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