कोरोनाकाल के बाद से लोग हर तकलीफ़ के लिए फ़ौरन टेस्ट कराने दौड़ते हैं. इलाज का पहला स्टेप टेस्टिंग ही है. पर कुछ बीमारियों की टेस्टिंग इतनी महँगी है कि कमज़ोर वर्ग के लोग इसे कराने से बचते हैं और बीमारी को बढ़ाते हैं ऐसे में 15 साल के एक छात्र ने एक जादुई बेल्ट, “ब्रीदफ़्री” का आविष्कार किया है.
15 साल के जयवीर कोचर की खोज ने स्वास्थ्य विभाग को चकित कर दिया है. इस नाज़ुक उम्र में जयवीर ने “ब्रीदफ्री” नाम के एक ऐसे बेल्ट का आविष्कार किया है जो साँस-फेफड़े संबंधी कई बीमारियों को पकड़ लेती है. इतना ही नहीं पीठ-रीढ़ की हड्डी-पसलियों-गर्दन को प्रभावित करने वाले एंकीलॉज़िंग स्पॉन्डीलाइटिस नाम की आर्थराइटिस बीमारी को भी भाँपती है. आपको बता दें कि जयवीर बचपन से ख़ुद अपने परिवार के सदस्यों को इन बीमारियों से जूझते देख रहे हैं. इसलिए चार साल पहले कोविड के दौरान अपनी खोज पर काम शुरू किया.
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जयवीर से हुई बातचीत में उन्होंने बताया, “चार साल पहले स्ट्रेस और एंजाइटी को लेकर मैंने मशीन का प्रोटोटाइप बेसिक डिवाइस बनाया था लॉकडाउन के दौरान, फिर मैंने इसपर और काम किया. मेरे परिवार में जेनेटिक बीमारी एंकीलॉज़िंग स्पॉन्डीलाइटिस के कुछ मरीज़ हैं जो आगे भी बढ़ सकती है हमारी पीढ़ियों में तो मुझे इसपर काम करने का आईडिया आया. साँस के ज़रिये क्या इसका पता लगा सकते हैं ये सोचते हुए काम किया. इसमें माइक्रो कंट्रोलर है. जो वाईफ़ाई का इस्तेमाल करता है. इंटरनल मेजरमेंट यूनिट है. आईएमयू बताता है वो कितना हिल रहा है. छाती और पीठ पर लगायेंगे तो वो कितनी हिल रही है. ये पूरा डेटा लैपटॉप पर जाता है. एआई के ज़रिये ये डेटा रीडिंग होती है और मशीन बताती है ये बीमारी है या नहीं”
बता दें कि मुंबई के सरकारी, बीएमसी और निजी अस्पतालों को मिलाकर कुल 1200 मरीज़ों पर इसे टेस्ट किया जा चुका है और 400 डॉक्टरों ने इस डिवाइस को मददगार माना है! डिटेक्शन एक्यूरेसी 95% बताई जा रही है. पेटेंट प्रोसेस में है.
इस बीमारी के बारे में बात करते हुए ऑर्थोपैडिक डॉ अमित जोशी ने कहा, “एंकीलॉज़िंग स्पॉन्डीलाइटिस ऐसी बीमारी है जिसमें केमिकल आपके ब्लड में बढ़ता है और हड्डी फ्यूज़ होना शुरू होती है इससे चेस्ट एक्सपेंशन होता है. छाती फूलती है. इलाज में देरी ना हो इसलिए एक टेस्ट लिखना पड़ता है. लेकिन ये 4000 का एक्सपेंसिव टेस्ट होता है इसलिए हर कोई इसे अफोर्ड नहीं कर सकता. ये डिवाइस एक्यूरेसी के साथ बता देता है कि क्या उस बीमारी के लक्षण हैं या नहीं. तो लोग उस महँगे टेस्ट से बच जाते हैं. कोविड के बाद लोग डर गये हैं. टेस्ट करवाने हर बात में आते हैं तो ये बिलकुल इकोनॉमिकल डिवाइस है, सस्ता डायग्निस्टिक टूल की तरह है जो बता देगा टेस्ट ज़रूरी है या नहीं. हर सरकारी अस्पताल, आयुर्वेद, होमियोपैथी हर जगह ये रखा जा सकता है. इसे सरकार को अप्रूवल मिलना चाहिए.”
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ग्याहरवीं के छात्र जयवीर कोचर अपना काफी समय बतौर रोबॉटिक्स स्टूडेंट इस ओमो टेक साइंस लैब में बिताते हैं, इसी उम्र में कइयों के मेंटर बन चुके हैं, देश विदेश में अपने आविष्कार का प्रदर्शन कर चुके हैं, और सम्मानित किए गए हैं. ओमोटेक की संस्थापक ऋतु जैन बताती हैं कि जयवीर जैसे कई युवा टैलेंट को अगर नाज़ुक उम्र में ही स्किल ट्रेनिंग की सही दिशा मिले तो इन छात्रों की उड़ान अविश्वसनीय रफ़्तार से आगे बढ़ेगी!
ऋतु जैन ने बताया, “भारत शिक्षा को बहुत इम्पोर्टेंस देता है. लेकिन बस एक चीज़ मुझे लगता है एक गैप है तो भरना चाहिए. जो ऐकडेमिक ज्ञान है उसे रियल नॉलेज में तब्दील करना चाहिए. जब तक ये गैप हम नहीं भरेंगे हमारे फिनिश प्रोडक्ट हम इंडिया में नहीं बना सकेंगे हमारा वो डिटेलिंग ज़रूरी है. स्टार्टअप के दौर में स्किल ट्रेनिंग पर, एक्सपीरिएंशियल ट्रेनिंग पर ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए.”
देश का हर कोना टटोलें तो भारत हुनरबाज़ों का सागर मालूम पड़ता है. और आविष्कार के पंख अगर नन्हें हाथों में ही लग जाये तो सोचिए इनका भविष्य देश को किस तरह रोशन करेगा!
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)