लंच के बाद शुगर की क्रेविंग क्यों होती है? जानिए वैज्ञानिक कारण और मीठे के देसी ऑप्शन्स

Craving Sweets After Lunch: सवाल यह है कि आखिर लंच के बाद मीठा खाने की क्रेविंग क्यों होती है? क्या यह शरीर की जरूरत है, दिमाग का खेल है या हमारी आदतों का असर?

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Craving Sweets After Lunch: खाना खाने के शुगर की क्रेविंग कारण

Why Do I Crave Sugar After Eating: कई लोगों ने यह महसूस किया होगा कि भरपेट लंच करने के बाद भी मन में अचानक कुछ मीठा खाने की इच्छा जाग जाती है. पेट कहता है बस हो गया, लेकिन दिमाग चुपचाप याद दिलाता है कुछ मीठा हो जाए? यह आदत सिर्फ स्वाद की नहीं, बल्कि शरीर और दिमाग के बीच चलने वाले जटिल तालमेल का नतीजा है. भारत में तो यह परंपरा-सी बन गई है कि खाने के बाद गुड़, मिठाई या थोड़ी-सी खीर जरूर हो. लेकिन, सवाल यह है कि आखिर लंच के बाद मीठा खाने की क्रेविंग क्यों होती है? क्या यह शरीर की जरूरत है, दिमाग का खेल है या हमारी आदतों का असर?

इस लेख में हम आसान भाषा में समझेंगे कि विज्ञान इस बारे में क्या कहता है, हार्मोन और ब्लड शुगर कैसे भूमिका निभाते हैं और देसी तरीकों से इस क्रेविंग को हेल्दी ढंग से कैसे संभाला जा सकता है.

क्यों होने लगती है मीठे की क्रेविंग? | Why Do We Start Craving Sweets?

1. ब्लड शुगर का खेल

लंच में अक्सर कार्बोहाइड्रेट (चावल, रोटी) होते हैं. खाना खाने के बाद ब्लड शुगर बढ़ता है और शरीर इंसुलिन छोड़ता है ताकि शुगर कोशिकाओं में जा सके. कई बार इंसुलिन थोड़ा ज्यादा एक्टिव हो जाता है, जिससे ब्लड शुगर तेजी से गिरने लगता है. दिमाग इसे खतरे की घंटी समझता है और तुरंत एनर्जी के आसान स्रोत यानी मीठा की मांग करता है. यही वजह है कि भोजन के 30-60 मिनट बाद मिठाई की याद आती है.

देसी ऑप्शन: लंच में प्रोटीन (दाल, दही, पनीर) और फाइबर (सब्जियां, सलाद) बढ़ाएं. इससे शुगर धीरे-धीरे रिलीज होगी और क्रेविंग कम होगी.

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2. दिमाग का रिवॉर्ड सिस्टम: मीठा यानि खुशी

मीठा खाने से दिमाग में डोपामिन नाम का खुशी हार्मोन रिलीज होता है. अगर रोज लंच के बाद मिठाई खाई जाती है, तो दिमाग इस पैटर्न को सीख लेता है. फिर पेट भरा होने के बावजूद आदत के कारण मीठे की तलब होती है.

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देसी ऑप्शन्स: आदत बदलें. मिठाई की जगह सौंफ, इलायची या थोड़ा-सा गुड़ लें. स्वाद भी मिलेगा और दिमाग को संकेत भी.

3. प्रोटीन और फाइबर की कमी

अगर लंच में सब्ज़ियां कम और रिफाइंड कार्ब ज्यादा हों, तो पेट जल्दी खाली होने का संकेत देता है. प्रोटीन और फाइबर तृप्ति (सैटायटी) बढ़ाते हैं. उनकी कमी से शरीर अक्सर मीठे की मांग करता है.

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देसी ऑप्शन: हर थाली में आधी प्लेट सब्ज़ी, एक कटोरी दाल, दही और साबुत अनाज रखें.

4. स्ट्रेस और थकान का असर

तनाव या नींद की कमी में शरीर कोर्टिसोल हार्मोन बढ़ाता है, जो शुगर क्रेविंग को बढ़ाता है. दोपहर में काम का दबाव हो तो मीठा तुरंत राहत देता हुआ लगता है.

देसी जवाब: लंच के बाद 5-10 मिनट की वॉक, गहरी सांस या सौंफ-धनिया की चाय. ये तनाव घटाकर क्रेविंग शांत करते हैं.

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5. स्वाद का संतुलन: नमक-तीखा के बाद मीठा

भारतीय भोजन में नमक और मसाले ज्यादा होते हैं. स्वाद को पूरा करने के लिए दिमाग मीठा मांगता है. यह एक तरह का टेस्ट बैलेंस है.

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देसी ऑप्शन्स: खाने के बाद थोड़ी-सी सौंफ, मिश्री नहीं, बल्कि भुनी सौंफ या अजवाइन लें. स्वाद संतुलन बनेगा.

6. पाचन से जुड़ा संकेत

आयुर्वेद मानता है कि भोजन के बाद हल्का-सा मीठा पाचन अग्नि को शांत करता है. पर समस्या तब होती है जब मात्रा बढ़ जाती है.

देसी ऑप्शन: पूरा रसगुल्ला नहीं, एक छोटा टुकड़ा गुड़ या खजूर काफी है. 

7. डिहाइड्रेशन

कई बार शरीर पानी मांग रहा होता है, लेकिन संकेत मीठे की क्रेविंग के रूप में आता है. इसलिए जब भी मीठा खाने का मन करे तो पहले एक गिलास पानी पी लें.

देसी ऑप्शन: लंच के 15-20 मिनट बाद एक गिलास गुनगुना पानी पिएं.

8. माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी

मैग्नीशियम और क्रोमियम जैसे मिनरल्स की कमी से शुगर क्रेविंग बढ़ सकती है. अगर आपको बहुत ज्यादा क्रेविंग हो तो समझ जाएं कि शरीर में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की भी हो सकती है.

देसी जवाब: कद्दू के बीज, मूंगफली, हरी सब्जियां और साबुत अनाज शामिल करें.

मीठे के सबसे हेल्दी ऑप्शन्स:

  • फल (पपीता, सेब, अमरूद)
  • दही में दालचीनी
  • खजूर, किशमिश 1-2
  • गुड़ की छोटी-सी मात्रा
  • डार्क चॉकलेट (70 प्रतिशत कोको) का छोटा टुकड़ा.

लंच के बाद मीठा खाने की क्रेविंग सिर्फ लालच नहीं, बल्कि ब्लड शुगर, हार्मोन, आदत और पाचन का मिला-जुला असर है. अच्छी खबर यह है कि थोड़े-से बदलाव-संतुलित थाली, पर्याप्त पानी, हल्की वॉक और देसी विकल्प से इस क्रेविंग को कंट्रोल किया जा सकता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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