सबसे पहले कहां, कब और कैसे बनाया गया डोसा? जानिए इस साउथ इंडियन प्यार की पूरी कहानी

Story Behind Dosa: क्या कभी आपने सोचा है कि डोसा की शुरुआत कहां से हुई थी और कैसे यह आपकी थाली में परोसी जाने वाली खास डिश बन गई. इस लेख में जानिए पॉपुलर साउथ इंडियन डिश के बारे में सब कुछ.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
डोसा के अलग-अलग प्रकार हैं और हर किसी की पसंद भी अलग होती है.

डोसा का नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है, गरमा-गरम डोसा के साथ सांभर और चटनी का तड़का आत्मा को तृप्त करने वाला होता है. जब भी साउथ इंडियन खाने की बात आती है डोसा का नाम सबसे पहले लिया जाता है. डोसा आमतौर पर सभी फूड लवर्स की पहली पसंद होता है, प्लेट में डोसा दिखते ही भूख डबल हो जाती है. डोसा के अलग-अलग प्रकार हैं और हर किसी की पसंद भी अलग होती है, लेकिन क्या आप डोसा के इतिहास के बारे में जानते हैं? डोसा सबसे पहले किसने बनाया, क्या इस डिश का नाम पहले से ही डोसा है? डोसा कैसे अस्तित्व में आया, इसकी कुछ कहानियां हैं, चलिए जानते हैं इस पॉपुलर साउथ इंडियन डिश के बारे में सब कुछ...   

कब, कैसे और कहां से हुई डोसा की शुरुआत?

कहा जाता है कि, डोसा का सबसे पहला लिखित उल्लेख तमिलनाडु के 8वीं शताब्दी के शब्दकोश में मिलता है, जबकि कन्नड़ साहित्य में डोसा का सबसे पहला उल्लेख एक सदी बाद मिलता है. 10वीं शताब्दी में डोसा के दूसरे नाम के रूप में 'कंजम' का उल्लेख भी मिलता है.

यह भी पढ़ें: द ग्रेट खली ने रोड साइड स्टॉल पर इस चीज का बनाया जूस, यहां देखें वायरल पोस्ट

Advertisement

मंदिरों में भी मौजूद हैं डोसा के साक्ष्य:

कहा जा सकता है कि इस डिश का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है और इसे पहले कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता था. माना जाता है कि इसके सुराग न केवल तमिल साहित्य के इतिहास में बल्कि राज्य भर के मंदिरों में भी मौजूद हैं. विष्णु मंदिरों में देवताओं को दिए जाने वाले भोजन को अमुधु कहा जाता है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के कई शिलालेख में भी डोसा शब्द का संदर्भ मिलता है.

Advertisement

तिरूपति, श्रीरंगम और कांचीपुरम के विष्णु मंदिरों के शिलालेखों में उल्लेख है कि डोसा चढ़ाने के लिए धन दान करने की सेवा उस समय प्रचलित थी और इसे दोसापदी कहा जाता था. उनमें से एक कांचीपुरम वरदराजा पे रूमाल मंदिर (1524 ई.) में प्रसिद्ध विजयनगर राजा कृष्णदेवरायर द्वारा डोसा के लिए दिए गए दान का विवरण है.

Advertisement

रोज चढ़ाया जाता था देवताओं को डोसे का प्रसाद:

कहा गया है कि विजयनगर राजा कृष्णदेवरायर ने दोसापदी सेवा के लिए 3,000 पैनम का दान दिया था. इस दान से जमीन खरीदी गई और प्रतिदिन देवता को 15 डोसे का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा. उसी मंदिर में विजयनगर के राजा अच्युतराय के शासनकाल के एक शिलालेख में भगवान कृष्ण के जन्म के उत्सव के दौरान डोसा चढ़ाए जाने का उल्लेख है. चेन्नई के पार्थसारथी मंदिर में सत्रहवीं शताब्दी के शिलालेखों में भी मंदिर उत्सवों के लिए डोसा प्रसाद का उल्लेख है. इसका मतलब है कि 16वीं शताब्दी तक, तमिलभाषी क्षेत्र के प्रसिद्ध पेरुमल मंदिरों में डोसा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता था.

Advertisement

यह भी पढ़ें: कब्ज की समस्या ने कर रखा है परेशान तो इस साउथ इंडियन डिश का करें सेवन, पेट की इन समस्याओं में भी है मददगार

आज भी चढ़ाया जाता है मंदिरों में डोसा:

आज भी, अजगर कोविल, सिंगपेरुमल कोविल और वरदराज पेरुमल कोविल जैसे प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में डोसा चढ़ाना विशेष है. ज्यादातर मंदिरों के शिलालेखों में डोसा चढ़ाने के लिए दी गई सामग्री के माप का उल्लेख है. कुछ शिलालेखों पर अलग-अलग डोसे की रेसिपी भी बताई गई है. एक तिरूपति मंदिर में डोसे को प्रसाद के ऊपर छिड़कने का उल्लेख है. हर कोई जानता है कि डोसा चावल और उड़द दाल के घोल से बनाया जाता है, लेकिन कांचीपुरम के कुछ शिलालेखों में घोल में जीरा और काली मिर्च मिला कर मसालेदार डोसा बनाने का जिक्र है.

अभी तक 123 फीट सबसे लंबे डोसे का है वर्ल्ड रिकॉर्ड:

आजकल कई स्ट्रीट फूड वेंडर और रेस्तरां भी डोसा को अलग-अलग तरह से परोसने की कोशिश करते हैं. आजकल लंबे-लंबे डोसे परोसने का ट्रेंड चल रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 16वीं शताब्दी के तिरुपति के एक शिलालेख में 'पट्टनम डोसा', एक बड़ा डोसा का उल्लेख है, जो उन दिनों बनाया जाता था. हाल ही में एमटीआर फूड्स ने 123 फीट सबसे लंबे डोसे का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
Kailash Gahlot Quits AAP: ED और IT Raid की वजह से कैलाश गहलोत ने AAP छोड़ी- Durgesh Pathak