टुंडे कबाबी की कहानी: कबाब के स्वाद से दुनिया के 70 बेहतरीन पाक कला वाले शहरों में शामिल हुआ लखनऊ

Tunday Kababi Lucknow: लखनऊ की पाककला की जड़ें उसकी नवाबी विरासत में हैं. यहां खाना बनाना एक रचनात्मक प्रक्रिया है और परोसना एक संस्कार. हर व्यंजन में इतिहास की एक परत छिपी होती है. इन्हीं कहानियों में से एक है टुंडे कबाबी की कहानी.

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Tunday Kababi Lucknow: यूनेस्को ने यह सम्मान दुनिया के उन 70 शहरों को दिया गया है.

Tunday Kababi Story: लखनऊ एक ऐसा शहर जो अपने तहज़ीब, अदब और खासकर अपने लज़ीज़ खाने के लिए जाना जाता है. यहां की गलियों में घूमते हुए जो खुशबू आती है, वो किसी आम शहर की नहीं, बल्कि एक ऐसे शहर की है जहां खाना केवल भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि एक कला है. यही वजह है कि हाल ही में लखनऊ को UNESCO ने क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी की सूची में शामिल किया है. यह सम्मान दुनिया के उन 70 शहरों को दिया गया है जो अपनी पाककला, सांस्कृतिक विरासत और इनोवेशन के लिए जाने जाते हैं.

लखनऊ की पाककला की जड़ें उसकी नवाबी विरासत में हैं. यहां खाना बनाना एक रचनात्मक प्रक्रिया है और परोसना एक संस्कार. हर व्यंजन में इतिहास की एक परत छिपी होती है और हर स्वाद में एक कहानी. इन्हीं कहानियों में से एक है टुंडे कबाबी की कहानी, जिसने लखनऊ को वैश्विक मंच पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई.

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टुंडे कबाबी: एक स्वाद जो इतिहास बन गया

टुंडे कबाबी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है. यह सिर्फ एक रेस्त्रां नहीं, बल्कि लखनऊ की आत्मा का हिस्सा है. इसकी शुरुआत 1905 में हुई थी, जब हाजी मुराद अली ने अमीनाबाद में एक छोटा सा स्टॉल लगाया. खास बात यह थी कि हाजी मुराद अली के एक हाथ में विकलांगता थी, इसलिए उन्हें प्यार से ‘टुंडे' कहा जाने लगा और वहीं से नाम पड़ा टुंडे कबाबी.

उनका मकसद था ऐसा कबाब बनाना जो बिना चबाए ही मुंह में घुल जाए. कहते हैं कि उन्होंने 160 से ज्यादा मसालों का प्रयोग कर गालौटी कबाब तैयार किया एक ऐसा व्यंजन जो आज लखनऊ की पहचान बन चुका है.

कबाब से वैश्विक पहचान तक

लखनऊ की पाककला में टुंडे कबाबी का योगदान केवल स्वाद तक सीमित नहीं है. इसने लखनऊ को एक फूड डेस्टिनेशन के रूप में स्थापित किया. देश-विदेश से लोग सिर्फ इस कबाब का स्वाद लेने आते हैं. यही कारण है कि जब UNESCO ने लखनऊ को ‘Creative City of Gastronomy' का दर्जा दिया, तो टुंडे कबाबी जैसे संस्थानों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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UNESCO ने लखनऊ की पाककला को इसलिए सराहा क्योंकि:

यह स्थायी और पारंपरिक तकनीकों को आज भी जीवित रखे हुए है. दम पुख्त, तंदूरी और भुने मसालों की विधियां आज भी वैसे ही अपनाई जाती हैं जैसे नवाबी दौर में होती थीं. लखनऊ के व्यंजन स्थानीय सामग्री और संतुलित स्वाद पर आधारित होते हैं. यहां खाना संस्कृति और विरासत का प्रतीक है, न कि केवल भोजन.

टुंडे कबाबी का आज

आज टुंडे कबाबी केवल अमीनाबाद तक सीमित नहीं है. लखनऊ के कई हिस्सों में इसकी शाखाएं हैं और यह ब्रांड अब देश के अन्य शहरों तक भी पहुंच चुका है. लेकिन जो बात इसे खास बनाती है, वह है इसकी परंपरा से जुड़ी पाककला और स्वाद में निरंतरता.

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यहां का गालौटी कबाब आज भी उसी विधि से बनता है कोयले की धीमी आंच पर, खास मसालों के साथ और एक ऐसी नर्मी के साथ जो हर उम्र के लोगों को पसंद आती है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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