हाथ से खाना खाने के महत्व के साथ जानें इंडियन फूड ट्रेडिशन

भारतीय क्यूज़ीन का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है। भारतीय खाना खाने की सभ्यता, ट्रडिशन पर आधारित है.

हाथ से खाना खाने के महत्व के साथ जानें इंडियन फूड ट्रेडिशन

नई दिल्ली:

अमेरिकन्स को टेबल पर धन्यवाद प्रदान करना अच्छा लगता है, चाइनीज़ को चोपस्टिक्स से खाना, ब्रिटिश लोगों को भोजन फॉर्मूल परंपराओं के साथ करना पसंद है। दुनिया के हर भाग में भोजन कनरे का अपना एक अलग कल्चर, क्यूज़ीन और आदत है।

देश में खाना खाने की परंपरा की अगर बात की जाए तो, भारतीय क्यूज़ीन का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है। भारतीय भोजन की सभ्यता, ट्रेडिशन पर आधारित है। हर परंपरा के पीछे सदियों का श्रद्धा, विश्वास, राजनीतिक बदलाव और सामाजिक रीति-रिवाज हैं।

सिंधु घाटी के लोग पौधे, जड़ी-बूटियों और अनाज को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते थे। मुगल, भोजन को एक कला की तरह देखते थे, जिन्होंने हमें गुलाब जल, दही, देसी घी और मसालों के साथ खाना पकाना सिखाया। उन्होंने हमें बताया कि खाना, एक तरह से आनन्द उठाने वाली चीज़ होती है। चाइनीज़ ने चाय की परंपरा शुरू की, पुर्तगाल ने लाल मिर्च को मशहूर किया और अंग्रेजों से हमने खाना खाने की सुंदरता और सभ्यता सिखी।

 

 


 


 


 


 


 


 


 


 

 

सबसे मज़ेदार बात यह है कि किस तरह परंपरा, आकार में लाते हुए विकसित हुई, जो समय के चलते बदल गई। यह मुख्य रूप से क्षेत्र और धर्म के हिसाब से अलग-अलग है। धरती पर लोगों को परोसे जाने वाले खाने ने कई तरह की परंपराओं को जन्म दिया है। जैसे मंदिर में बंटने वाला प्रसाद, गुरुद्वारे में लंगर, ईद के समय में परोसे जाने वाला इफ़्तारी खाना। ये सभी परंपराएं हमारी रसोई में आईं, जिन्हें हमने खाने में सम्मान दिया। कई जगह तो, लोग खाना खाने से पहले धन्यवाद की प्रार्थना करते हैं, इसके बाद खाते हैं।

भारत में खाना खाने के कई तरीके हैं, जिनमें से कई परंपराओं ने अपनी पहचान बनाई है। तो आइए आपको बताते हैं कुछ सदियों पुरानी खाने की परंपरा, जिसने खाने की शान बढ़ाते हुए कई तरह के कल्चरल क्यूज़ीन पर एक महत्वपूर्ण निशान छोड़ा है।

हाथ से खाना खाने का तरीका
यह परंपरा, आयुर्वेद से जुड़ी है। खाना खाने की क्रिया एक तरह से सेंसरी (संवेदिक) अनुभव होता है। खाने को अगर हाथ से खाया जाए, तो वह भावना और उत्साह पैदा करता है। वैदिक विद्या के मुताबिक, कार्य करने के लिए हाथ सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लेख है कि हाथ की पांचों उंगलियों का अपना महत्व होता है। अंगूठा-स्थान, फोरफिंगर (तर्जनी)- हवा, मध्यम उंगली- आग, रिंग फिंगर-पानी और आखिरी उंगली- पृथ्वी को दर्शाती है।


जब आप अपने हाथ से खाना खाते हैं तो, ये पांचों तत्व पेट में पाचक रस आगे लाने में मदद करते हैं। उंगलियों की नस पाचन क्रिया को बढ़ावा देती है। जब आप खाने को अपने हाथ की उंगलियों से महसूस करते हैं, तो पेट को संकेत मिलता है। ऐसे में आप स्वाद, बनावट और खुशबू को लेकर ज़्यादा सचेत हो जाते हैं। भारत के अलावा हाथ से खाना खाने की प्रक्रिया अफ्रीका और मीडिल ईस्ट में भी है।

 

 

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केले के पत्ते पर परोसा जाता भोजन

भारत के दक्षिण भाग में खाने को केले के पत्ते पर परोसा जाता है। ख़ासतौर से केरल में। ऐसा माना जाता है कि केले के पत्ते पर सर्व किया खाना काफी हेल्दी होता है। गर्मा-गर्म खाने को जब केले के पत्ते पर रखा जाता है, तो खाने में मौजूद पोषक तत्व उत्पन्न होते हैं, जो कि सही माइने में संपूर्ण खाना कहलाता है। केले के पत्ते में भारी मात्रा में पॉलीफिनोल होते है, जो एक तरह से खाने के पौधों में पाए जाने वाले प्राकृतिक एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह सिर्फ खाने को खुशबू ही नहीं, बल्कि स्वाद भी देते हैं। परंपरा के हिसाब से अगर देखा जाए, तो पवित्रता के लिए केले के पत्ते को खाना परोसने से पहले पानी से साफ किया जाता है।


केले के पत्ते पर तबसे खाना परोसा जा रहा है, जब बाज़ार में मेटल उपलब्ध नहीं था। लोग लकड़ी के बर्तन की जगह ताज़ा पत्ते पर खाना ज़्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि यह आसानी से नष्ट किया जा सकता है। कई हिंदू मंदिरों में तो कमल के पत्ते को पवित्र मानते हुए उस पर प्रसाद परोसा जाता है। लेकिन ये इतने बड़े नहीं होते कि इसमें खाना खाया जाए। वहीं, दूसरी ओर केले के पत्ते पर्याप्त, बड़े और मोटे होते हैं। इनमें छेद भी नहीं होते। इन पर आसानी से डिश जैसे करी और चटनी को रखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि ज़मीन पर बैठकर हाथ से खाने से आपकी रीढ़ की हड्डी मुड़ती रहती है, जिससे शरीर में रक्त प्रवाह बेहतर होता है।

सभी के लिए एक प्लेट
 


बोहरी मुस्लिम समुदाय, खाना एक बड़े थाल में खाते हैं। खाने की शुरुआत लोगों के थाल के चारों ओर बैठने से होती है। परिवार के हर व्यक्ति के नमक चख लेने के बाद, पहली डिश सर्व की जाती है। खाना परोसे जाने के बाद पूरा परिवार एक ही थाली में खाना खाता है। हर डिश को थाली के बीच में परोसा जाता है, जिसे सभी लोग चखते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि थाल में पहली डिश मीठे की या मीट की परोसी जाती है। खाने की शुरुआत इस तरह करना, उनके यहां शुभ माना जाता है।

 

 

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वाज़वान- शाही दावत


वाज़वान, एक तरह की मील नहीं है। यह अवसर है। यह कश्मीर के कल्चर और शाही क्यूज़ीन को समझने की फूडी की एक तरह से तीर्थयात्रा है। ऐसा माना जाता है कि यह 15वीं शताब्दी में प्रारंभ हुई थी। जहां कारीगरों, कपड़ा बनाने वालों, आर्किटेक्टों और खाना बनाने वालों को एक साथ इक्ट्ठा किया गया था, जिसे खाना बनाने वालों के वंश ने परंपरा बनाया। कश्मीरी बोली में ‘वाज़' का मतलब अत्याधिक कुशल कुक होता है और ‘वान' का मतलब दुकान होता है।

परंपरा के हिसाब से इसमें 36 क्रम होते हैं, जिसका हर हिस्सा आपको पुराने ज़माने की याद दिलाएगा। खाने की शुरुआत हाथ धोने से होती है। सेवक, तश्त-नरी (एक तरह का बर्तन) सभी की सुविधा के लिए पेश करते हैं। खाना चार के ग्रुप में परोसा जाता है। चावल की खुशबू, मुलायम कबाब और तीखी करी को सुंदर-सी थाली ‘तारामिस' में सर्व किया जाता है। कई डिश के स्वाद को यादगार बनाने के लिए उन्हें पूरी रात पकाया जाता है। ऐसे खाने की उलझन और वैरायटी को कहीं भी मिलाया नहीं जा सकता। खाना, मीठे से ख़त्म किया जाता है। जैसे काहवा (एक तरह की ग्रीन-टी, जो कि चांदी के वर्क चढ़े बादाम और मसालो से तैयार किया जाता है) के साथ फिरनी परोसकर।

 

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जौल पान
बंगाल और असम में फॉलो की जाने वाली एक ऐसी परंपरा है, जिसमें नाश्ते से पहले फुर्तीला स्नैक पेश किया जाता है। कुछ कल्चर में तो क्षेत्रीय चावल की वैरायटी को पारंपरिक तरीके से पकाकर दही, गुड़ या पीठा के साथ परोसा जाता है। पीठा, एक तरह का राइस केक होता है, जिसे तवे पर फ्राई किया जाता है। यह मेहमानों को शादी या किसी स्पेशल त्योहार पर सर्व किया जाता है। पूर्व क्षेत्र काफी गर्म होते हैं, इसलिए खाने में ठंडी तासीर रखने वाली दही को आराम देने के लिए परोसा जाता है। जौल पान के साथ कई बार लोग गर्मा-गर्म चाय भी सर्व करना पसंद करते हैं।

भारतीय थाली


थाली, एक तरह का पौष्टिक आहार माना जाता है। आपको यह राजस्थान, गुजरात और साउथ में सबसे ज़्यादा देखने को मिलेगी। इसमें कई तरह की करी, स्थानीय हरी सब्जी, दाल, चावल और भारतीय ब्रेड चखने को मिलेंगी, जिसे घर की बनी चटनी, आचार या कुरकुरे पापड़ के साथ परोसा जाता है। यह भारत में खाना पकाने और घरों में खाना खाने के सिस्टम को बताती है।

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थाली की सुंदरता सिर्फ भारत के कल्चर को नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से इसमें मौजूद खाना, शरीर को पोषण भी देता है। अगर आप इस पर ध्यान देंगे, तो यह आज के फूड पिरामिड को प्रस्तुत करेगी। जैसे अनाज में कार्बोहाइड्रेट, फल और सब्जियों में फाइबर, डेरी उत्पाद जैसे दही में न्यूट्रीयंट्स सभी थाली में एक साथ रखी दिखाई देंगी। यह एक तरह से संतुलित आहार माना जाता है, जिसमें मौजूद वैरायटी इसकी जान और शान है।

 

 

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