टेस्ट के दौरान डॉक्टरों की एक टीम मौजूद रहती है.
श्रद्धा मर्डर केस के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला (Aftab Ameen Poonawala) का दिल्ली पुलिस नार्को टेस्ट करवाने वाली है. दिल्ली पुलिस को नार्को टेस्ट के लिए साकेत कोर्ट से इजाजत गई है. दिल्ली पुलिस को उम्मीद है कि इस टेस्ट के जरिए सच पता लगाया जा सकेगा. आफताब के सारे राज खुल जाएंगे. आइए जानते हैं कि नार्को टेस्ट क्या होता है?
- कोर्ट के आदेश के बाद और आरोपी की सहमति मिलने पर ही नार्को टेस्ट किया जाता है. टेस्ट की प्रक्रिया सरकारी अस्पताल में होती है.
- सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते हैं.
- इस टेस्ट से कुछ शर्तें भी जुड़ी होती हैं. नार्को टेस्ट से पहले संबंधित व्यक्ति की जांच की जाती है. गंभीर बीमारी होने पर नार्को टेस्ट नहीं किया जाता. बुजुर्ग, बच्चों और मानसिक रूप से बीमार लोगों का ये टेस्ट नहीं किया जाता है.
- नार्को टेस्ट को ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर टेक्निक से बेहतर समझा जाता है. इस टेस्ट के दौरान व्यक्ति को ट्रुथ सीरम (Truth Serum) इंजेक्शन लगाया जाता है, जो कि एक साइकोऐक्टिव दवा है.
- ट्रुथ सीरम इंजेक्शन देने के बाद व्यक्ति आधी बेहोशी हालत में पहुंच जाता है. उसका दिमाग शून्य हो जाता है. उसके बाद डॉक्टर उससे सवाल पूछते हैं.
- ऐसा माना जाता है कि आधी बेहोशी हालत में इंसान झूठ नहीं बोल सकता है. ऐसे में उससे पूछे गए सवालों का वह केवल सही जवाब ही देता है.
- टेस्ट के दौरान डॉक्टरों की एक टीम मौजूद रहती है, जो कि व्यक्ति की पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को मॉनिटर करती है.
- फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के अधिकारियों के मुताबिक, टेस्ट के दौरान पहले जांचकर्ता केस को लैबोरेटरी में जमा करता है और उन्हें ब्रीफ करता है
- जांच एजेंसियां इस परीक्षण का उपयोग तब करती हैं जब उन्हें अपने सवालों के जवाब आरोपी से नहीं मिलते हैं.
- बता दें नार्को विश्लेषण परीक्षण के दौरान दिए गए बयान को अदालत में स्वीकार्य नहीं किया जाता है, हालांकि कुछ परिस्थितियों को छोड़कर जब अदालत को लगता है कि मामले के तथ्य और प्रकृति इसकी अनुमति देते हैं.
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