President Election 2022: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का भारत में कैसे होता है चुनाव, 10 प्वाइंट्स में समझें पूरी प्रक्रिया

भारत के 15वें राष्ट्रपति के चयन के लिए होने वाले चुनाव के कार्यक्रम का चुनाव आयोग गुरुवार को एलान करेगा. दोपहर तीन बजे विज्ञान भवन में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन होगा, जिसमें तारीखों की घोषणा की जाएगी. मालूम हो कि नए राष्ट्रपति को 25 जुलाई तक शपथ लेनी है.

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दिल्ली स्थित राजभवन की तस्वीर (सोर्स - ट्विटर)
नई दिल्ली:

भारत के 15वें राष्ट्रपति के चयन के लिए होने वाले चुनाव के कार्यक्रम का चुनाव आयोग गुरुवार को एलान करेगा. दोपहर तीन बजे विज्ञान भवन में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन होगा, जिसमें तारीखों की घोषणा की जाएगी. मालूम हो कि नए राष्ट्रपति को 25 जुलाई तक शपथ लेनी है. ऐसे में जुलाई के दूसरे या तीसरे हफ्ते में चुनाव हो सकते हैं. 2017 में 17 जुलाई को चुनाव हुए थे. आइये चुनाव से पहले समझते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है, कौन-कौन इसमें मतदान करते हैं, मतों की गिनती कैसे होती है और प्रत्याशी रेस से बाहर कैसे हो जाते हैं.

  1. उपराष्ट्रपति को जहां लोकसभा और राज्यसभा के इलेक्टेड एमपी चुनते हैं, वहीं राष्ट्रपति को इलेक्टोरल कॉलेज चुनता है जिसमें लोकसभा, राज्यसभा और अलग अलग राज्यों के विधायक होते हैं. भारत में राष्ट्रपति का चुनाव यही इलेक्टोरल कॉलेज करता है, जिसमें इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातित होता है. यहां पर उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है. इस प्रक्रिया को ऐसे आसानी से समझा जा सकता है.
  2. कौन करता है वोट : भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद अपने वोट के माध्यम से करते हैं. उल्लेखनीय है कि सांविधानिक ताकत का प्रयोग कर जिन सांसदों को राष्ट्रपति नामित करते हैं वे सांसद राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं.
  3. इसके अलावा भारत में 9 राज्यों में विधानपरिषद भी हैं. इन विधान परिषद के सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते हैं. यहां से यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही करते हैं. इसलिए राष्ट्रपति परोक्ष रूप से जनता द्वारा ही चयनित होता है.
  4. भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में एक विशेष तरीके से वोटिंग होती है. इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं. यानी एकल स्थानंतर्णीय प्रणाली. सिंगल वोट यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है. यानी वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन. 
  5. वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का प्रमुखता अलग-अलग होती है. इसे वेटेज भी कहा जाता है. दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग अलग होता है. यह वेटेज राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है और यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.
  6. सांसदों के मतों के वेटेज का तरीका कुछ अलग है. सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्यों के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है. अब इस सामूहिक वेटेज को लोकसभा के चुने हुए सांसदों और राज्यसभा की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इस तरह जो अंक मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है. अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है.
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  8. ऐसे तय होती है विधायक के वोट की ताकत : राज्यों के विधायकों के मत के वेटेज के लिए उस राज्य की जनसंख्या देखी जाती है. इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है. वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है. इस तरह जो अंक मिलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है. अब जो अंक आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है. 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है.
  9. मतों की गिनती की प्रक्रिया : भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है. राष्ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे. यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट चाहिए.
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  11. इस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 है. जीत के लिए प्रत्याशी को हासिल 5,49,442 वोट करने होंगे. जो प्रत्याशी सबसे पहले यह वोट हासिल करता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा.
  12. रेस से कैसे बाहर हो जाते हैं प्रत्याशी : पहले उस कैंडिडेट को रेस से बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले. लेकिन उसको मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि उनकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं. फिर सिर्फ दूसरी पसंद के ये वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं. यदि ये वोट मिल जाने से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गए तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है. अन्यथा दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी. इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है.
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